Monday, February 3, 2014

मन से सच्चा

मन से सच्चा
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तन पर क्या ,
तन कैसा है ?
जो यही निहारे
ज्ञान में बच्चा है

मन में क्या है
पढ़ मानवता नापे
ज्ञान से वो सच्चा है

सबके तन निहारता
ललचाता रहता
वासना भूख बढाता
वयस्क तो हो गया
मानवता में बच्चा है

तन और मन के
बीच संतुलन से
जीवन स्वयं का
और साथियों का
जो निखारे वह
ज्ञान में पक्का है

कैमरा पाया
वीडियो बनाया
प्रमुखता से तन
पर ही केन्द्रित है

सबकी दृष्टि अब
भड़कते तन और
भड़काऊ वस्त्रों पर
सीमित रह गई है

वासना ,स्वाद के
पीछे अगर हम
जिंदगी भर भागेंगे
इस मूर्छा में हम
जीवन यों ही
अपना व्यर्थ करेंगे   

तन चित्र उकेरता
अपूर्ण वह कैमरा है
मन के अन्दर के
रूप को उकेरेगा
उपकरण वह
हमें चाहिये है

मनरूप के फ़ोटो
उतर जायेंगे
मन की बुराई
जगजाहिर होगी
इस भय से
मानव घबराएगा

मन को सच्चा
मन को सुन्दर
बनाये रखने के
वह उपाय करेगा

मन से अच्छा
मन से सच्चा
जिस समाज में
मानव होगा

वह समाज
सभ्य बन पायेगा

आदिकाल से विकसित हो
बहुत दूर हम
आ चुके हैं
किन्तु बहुत दूर
इस लक्ष्य के पीछे
हमें चलना है

तन से सुन्दर
सुन्दर वस्त्रों से
कीमती आभूषणों से
हम सज चुके हैं

इनके साथ जब
मन से सुन्दर
मन आभूषण से
भी सज पाएंगे
तब ही सभ्य और
परिपूर्ण मानव
हम कहलायेंगे

--राजेश जैन
04-02-2014

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