Saturday, February 15, 2014

संकोच

संकोच 
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अनायास घुसपैठ कहीं कर जाते हैं ,जीवन में
तौर तरीके वहाँ के हमें नहीं आते हैं ,अज्ञान में
वे और हम धर्मसंकट में पड़ जाते हैं ,संकोच में
कटु पर बाहर का रास्ता दिखलाते हैं ,विकल्प में
या वे हमसे कुछ कहने से कतराते हैं ,संकोच में
निकल बाहर हमें स्वयं आना होता है ,बेहतरी में
या तौर तरीके सीख पेश आना होता है ,भलाई में
त्याग दम्भ हठधर्मिता रहना होता है ,समाज में


--राजेश जैन

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