Friday, February 7, 2014

टूट गिरे ना कोई तारा

टूट गिरे ना कोई तारा
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सामर्थ्य हरेक इंसान का
ऊँचा उठने का होता है
जगमग करते तारे जैसे
गगन पर छाने का होता है

प्रदर्शन ऐसा न करता तो
इंसान से संवेदना होती है
खेद देख दुर्गति, हमें वह
आकाश से टूटा तारा लगता है  

स्थापित अनेक सितारे हैं
आसमान पर प्यारे लगते हैं 
प्रखर बन सकते वे भी किन्तु
प्रखर हो सूरज एक ही बनता है

भूलकर अपना सामर्थ्य इंसान
एड़ियां रगड़ मर जाता है
कुछ चमकते सितारे बनते
पर सूरज बनने से रह जाते हैं

सितारे बनकर दूसरों की 
नयनों में ही बस रह जाते हैं
आगे भी प्रगति हो सकती
भूल, वहाँ कैदी बने चले जाते हैं

अन्धकार में भटक गया और
आज आपस में ही टकराता है
इंसान को आलोक दे ऐसा
एक सूरज तुरंत चाहिए है

सितारे बन स्थापित हो गए
इंसानी समाज के आसमान में
टूटा तारा ना बने कम से कम 
एक छाये सूरज सा आसमान में

आलोक से जिसके प्रकाशित होये
समाज पृथ्वी पर के इंसानों का
आपस में ना टकराए इंसान
छाये हुए आज के अन्धकार में

अगर कैदी हुए सितारे को
निकालें अपनी आँखों की कैद से
स्मरण तब होगी उसे क्षमता
बनकर चमकेगा सूरज जैसा

नहीं बनाना हमें नया सितारा
हश्र जो उसका यों होता है
या तो स्वयं हम बने सूरज या
करें मदद उसकी बन सकता जो सूरज है

--राजेश जैन
08-02-2014

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