Tuesday, August 27, 2013

सुन्दरता वरदान है अभिशाप ना बने

सुन्दरता वरदान है अभिशाप ना बने
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सारे मनुष्य सुन्दर नहीं होते .कुछ सामान्य और कुछ अति सुन्दर होते हैं . निशंक रूप से सुन्दरता सभी को आकर्षित करती है . अतः कोई सुन्दर है तो दिखने मात्र से उसे हर कहीं प्रथम उपस्थिति या पहली मुलाक़ात में सभी पसंद करते हैं . ऐसी अनुकूलता कहीं मिलना वरदान होता है . जो सुन्दर नारी -पुरुष को सहज मिलता है . जबकि कम सुन्दर को अपनी प्रथम उपस्थिति या पहली मुलाक़ात में इस प्रकार पसंद किया जाएगा इसकी सम्भावना कम होती है . उसे ऐसी अनुकूलता पाने के लिए अपनी अन्य प्रतिभा का परिचय देना होता है . वह अपने विषय का पारंगत हो , सदगुण संपन्न हो ,सदाचारी हो अथवा व्यवहारकुशल हो या अति धनवान हो इत्यादि . इन बातों के अनुभव किये जाने के पूर्व तक सुन्दरता को जो सहज लाभकारी वातावरण मिलता उसे नहीं मिल पाता . इन बातों की कमी के बाद भी सुन्दर ,कम सुन्दर से अधिक सुविधा जनक स्थिति में होता है . इसलिये सुन्दरता का होना वरदान कहा जा सकता है .

लेकिन सुन्दरता सतर्क ना हो तो ऐसी स्थिति भी निर्मित हो सकती है जो अभिशाप जैसी हो जाती है . सुन्दरता का वरदान तो नारी -पुरुष दोनों को लगभग समान मिलते हैं . लेकिन सुन्दरता अभिशप्त होते नारी के लिए ज्यादा अनुभव होती है . अतः इस लेख में नारी सुन्दरता लेखन केंद्र है .

वास्तव में सुन्दर नारी पर बचपन से ही अधिक खतरे होते हैं और किशोरावस्था से लेकर प्रौढ़ वय तक उसे खतरे से अपने बचाव के लिए निरंतर सतर्क रहना पड़ता है . नारी सुन्दरता हर पुरुष चाहे वह सुन्दर हो अथवा  नहीं , किशोर से लेकर वृध्द ,धनहीन से लेकर धनवान और दास(नौकर-अधिनस्थ ) से
लेकर मालिक (या बॉस ) सभी को आकर्षित करती है . ऐसे में इनमें से कोई भी कभी भी नीयत से डोल सकता है . और अवसर मिलने पर नारी पर दैहिक शोषण हेतु हमला कर सकता है . यदि नारी अतिरिक्त रूप से सतर्क ना हो तो वह अवसर उसे घर ,कार्यालय, बाजार , यात्रा यहाँ तक धर्मालयों कहीं भी मिल सकता है  .

ऐसे हमले में मर्यादा उल्लंघन का दोषी तो पुरुष होता है किन्तु अभिशाप नारी को निर्दोष होने पर भी भुगतना होता है . इसके लिए दोषी परंपरागत वह मानसिकता है जिसमें दैहिक शोषण की शिकार नारी को भी धिक्कार की दृष्टि से देखा जाता है . हालांकि मानसिकता में परिवर्तन तो आ रहा है . कुछ साहसी पुरुषों और नारियों ने इस तरह निर्दोष और छली गई नारी का भी ससम्मान साथ निभाने की भलमनसाहत और दृढ़ता प्रदर्शित तो की है लेकिन संख्या बिरली ही है . इसलिए असतर्क नारी सुन्दरता अभिशाप बन सकती है . नारी का पूरा जीवन मुश्किलों से भरा हो सकता है  .

नारी की ऐसी स्थिति के लिए शरीर संरचना और शारीरिक कमजोर शक्ति कारण है . लेकिन यह उसे प्राकृतिक रूप से मिली है जिसमें ज्यादा बदलाव मनुष्य नहीं कर सकता . पुरुष जबरदस्ती इसलिए कर पाता है क्योंकि नारी प्रतिरोध बचाव में शक्ति की कमी से पर्याप्त नहीं होता . और जबरदस्ती किये दैहिक शोषण से गर्भ ठहर जाए तब भी मानसिक ,शारीरिक और प्रतिष्ठा हानि नारी की ही होती है .

इन सब कारणों को ध्यान में रख सुन्दरता का वरदान बने रहे वह अभिशाप सिध्द न हो नारी को सतर्क और सूझबूझ से रहने की आवश्यकता होती है .

बालिका जब तक है माँ -पिता (विशेषकर माँ ) का ये दायित्व होता है . युवती से प्रौढ़ होते तक स्वयं और विवाहित होने पर स्वयं के साथ पति का दायित्व बनता है . वे घर , कार्यालय ,बाहर और यात्रा में
सुरक्षित रूप से कैसे रहें .

हो सके तो जब बालिका स्वयं समझदार ना हो सकी है तब तक उसे कन्या शाला में ही शिक्षा दिलवाई जाए . स्कूल -कॉलेज तक जाने आने के साधन भले मँहगे हों सुरक्षित चुनें . माँ (संभव हो तो पिता भी ) उनसे दोस्ताना रूप से वैचारिक आदान प्रदान और वार्तालाप रखें . उनमें (बेटी में ) सभी छोटी -बड़ी बात उनसे कहने और स्वयं सुनने की प्रवृत्ति डालें .

किशोरवय और उपरांत उन्हें पुरुष साथियों से भी सहयोग और चर्चाओं में रहना होता है . उसमें  सब
आवश्यक चर्चा तो करें . किन्तु व्यवहार और हावभाव से उनकी सीमा का अहसास दिलाये रखें . किसी पुरुष को सीमा से आगे बढ़ने की छूट ना मिले और किसी को इतना भी उपेक्षित या हेय व्यवहार ना दें जिससे उसमें बैर भाव इतने उत्पन्न हो जो उसे क्षति पहुँचाने को प्रेरित करे .

अपने बचाव के लिए उन विद्या का प्रशिक्षण लें जो किसी के ऐसी नीयत से हमले में कारगर हो . ऐसा कोई हथियार इस तरह से रखें जिसका बचाव में प्रयोग किया जा सके . जहाँ नशा किया जा रहा हो वहां ना रहें . क्योंकि वहाँ धोखे से नशे का सेवन नारी को भी कराया जा सकता है . फिल्मों ,टेलीविजन और नेट पर स्वछंदता जो दिखाई जाती है .उसे मनोरंजन से ज्यादा महत्त्व ना दें . वे पीढ़ी और समाज को शिक्षित करने की दृष्टि से निर्मित नहीं की जाती बल्कि व्यवसायिक लाभ के लिए बनाई जाती है . उनसे शिक्षा लेना उसकी नक़ल करना अपने प्रदत्त वरदान को अभिशाप बनाना होगा .  


कभी पुरुष सहयोग की आवश्यकता पड़ती है . नारी को परेशानी में देख नारी के अतिरिक्त पुरुष भी सहयोग को तत्पर होते मिलते हैं .(लेखक स्वयं यह तत्परता और भावना रखता है ). कुछ पुरुष वास्तव में सहयोगी भावना रखते हैं . स्थान और परिस्थिति अनुसार सतर्कता से उनसे सहयोग लेना बुरा नहीं है . किन्तु सहयोग के बदले बाद में उनपर अति विश्वास  कभी छले जाने का कारण (की आशंका ) हो सकता है .

अंत में पुरुष और आज के वैज्ञानिक पर उस उपाय और आविष्कार का दायित्व है जिसके प्रयोग से  असुरक्षित वातावरण में अपने पर हमले की दशा में बराबर की शक्ति से
नारी दुस्साहसी का जबाब दे . अपने बचाव में समर्थ हो . वह साधन इस प्रकार से डिजाईन हो जिसका  आक्रमणकारी नारी से प्राप्त कर नारी पर ही प्रयोग ना कर सके . अर्थात नारी को शक्ति में पुरुष से समानता इस प्रकार मिले जहाँ उसी के साधन से पुरुष अपनी शक्ति से बढ़कर उसपर हानिकारी ना बने .

जब तक ऐसा नहीं और हमारी सुरक्षा व्यवस्था इतनी समर्थ नहीं है . अपनी सूझबूझ और सावधानी से अपनी सुन्दरता का प्रयोग स्वहित ,नारी हित और समाज हित के करें उसे वरदान रूप में जीवन में हासिल रखें . उसे अभिशाप ना बनने दें .



नारी हमारे घर -परिवार और समाज का अभिन्न अंग है . अपनी सूझबूझ से अपना बचाव वह करे . इस तरह स्वयं को सुरक्षित नारी करेगी तो पुरुष और नारी के रिश्तों में कटुता और अविश्वास को विलोपित कर मानवता और समाजहित भी करेगी .
(क्षमा कीजयेगा लेखक मत कहीं यह दावा नहीं है कि नारी चेतना और सम्मान रक्षा के लिए यही सर्वोत्कृष्ट है  )
--राजेश जैन
28-08-2013





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