Sunday, August 25, 2013

हमारी पीढ़ी इतिहास के प्रष्ठों पर

हमारी पीढ़ी इतिहास के प्रष्ठों पर
------------------------------------

आज का काल जब बीत जाएगा और इतिहास में सम्मिलित किया जाएगा तो कुछ निम्न तरह उल्लेखित होगा ..
इक्कीसवीं शताब्दी में तकनीक -विज्ञान और अध्यापन और विषय वस्तु बहुत उन्नत हो गए थे . जिनका ज्ञान अर्जित कर अधिकांश मनुष्यों ने अपना जीवन स्तर और सुविधा साधन अपनी पूर्व पीढ़ियों से बहुत ऊँचा कर लिया था .
अर्जित नई तकनीकों और उन्नत शिक्षा के सहारे अधिकांश ने स्वहित सिध्द किये थे . लेकिन व्यक्तिगत सुविधा को प्रधानता की सोच और समझ ने उन्हें स्वयं को तो प्रौन्नत (promote) किया था . लेकिन इस तरह की सोच और समझ सभी की हो जाने से अधिकांश व्यक्तिगत प्रौन्नति की कोशिशों में लग गए थे .सभी इस हेतु चतुराई कर अपनी ओर खींचतान में व्यस्त हो गए . तब उपलब्ध उच्च तकनीक -विज्ञान और अध्यापन और विषय वस्तु का लाभ मानवता और समाज के हित में प्रयोग नहीं हो पाया .
उपलब्ध उच्च तकनीक -विज्ञान और शिक्षा से जिन्होंने धन और प्रभाव अर्जित किया उन्होंने संचार साधनों को अपने पक्ष में प्रयोग की परम्परा स्थापित कर दी . और उस पर प्रस्तुतियाँ उनके दोषपूर्ण जीवनशैली से प्रभावित दिखाई जाने लगीं . देखे जाने के लिए सुलभ दूषित विचार और जीवनशैली से दुषप्रभावित दर्शक समूह पथ भ्रमित हुआ . जिससे इस काल में बाह्य आडम्बरों को प्रमुखता मिली . दैहिक सौन्दर्य और देह पर सुन्दर वस्त्रों (परिधानों ) और अभूषणों से तो मनुष्य आकर्षक दिखने लगा था . पर देह के अन्दर ह्रदय में चलने वाले विचार , भाव ,सिध्दांत और आस्थाएं पूर्व काल की तुलना में सुन्दर नहीं रह गयी थीं .
इस काल में आपसी विश्वास , स्नेह और परस्पर त्याग भावना निरंतर कम होते गयीं . पूर्व काल के तुलना में सार्वजानिक मेलजोल और उल्लास के पर्व फीके पड़ते गये . रात्रिकालीन (तामसिक पेय -भोज्य) आयोजनों में भाग लेने की प्रवृत्ति बढ़ी .  आम जन अपने परिवार में सिमटते गए . परिवार का भी सयुंक्त अस्तित्व समाप्त हो गया . जिस भी सदस्य की धन अर्जन क्षमता ना रही या वृध्दावस्था में रोगी हुआ वह उपेक्षित छोड़ा जाने लगा .
उन्नत ज्ञान -विज्ञान और तकनीक इस तरह व्यर्थ हुईं जिन्हें मानवता और समाजहित में परिणित नहीं किया जा सका .
इस काल के मनुष्यों ने समाज को वह रूप दिया जिसमें मनुष्य प्रजाति के अस्तित्व को बनाये रखना चुनौती पूर्ण हो गया

--राजेश जैन
25-08-2013

No comments:

Post a Comment