Monday, August 26, 2013

आखिर भूल कहाँ हो रही है?

आखिर भूल कहाँ हो रही है?
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लगभग हमारी बातों , वार्तालापों , fb पोस्ट , कमेंट्स, लेख , कविता और भाषणों में बुराई का होना और उसकी आलोचना होती है .
कथा -कहानियों और विभिन्न मंचों से प्रस्तुतियों में भी बुराइयों को लक्ष्य करते उनके मिटाने के उपाय और प्रेरणाओं की शिक्षा और सीख होती है .
ऐसा अगर है तो कारण स्पष्ट है कि बुराइयों से हमारा , बच्चों का और सामान्य जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है . लेखक भी सहमत है ये बुराइयाँ कम होनी चाहिए , मिटनी चाहिए या मिटायी जानी चाहिए .

इतने हृदयों में बुराई के प्रति चिंता और उनके अनेकों समाधान होने पर भी यदि बुराई कम होने की अपेक्षा बढती जाती हैं तो हम सोचने को बाध्य होते हैं, "आखिर भूल कहाँ हो रही है ?"

हमें जीवन अनुभव बहुत है ,विद्वान भी हम बहुत हैं , अपनी अच्छी परम्पराओं और उत्कृष्ट "भव्य संस्कृति " का गौरव बोध हम रखते हैं . परिवार , धर्म ,देश और समाज को हम अपना मानते हैं . अपने परिवार , धर्म ,देश और समाज की उन्नति का स्वप्न अपने ह्रदय में बसाये हुए हैं .
 
सारी बातों के लिए जितना गंभीर हमें होना चाहिए लगता है उतनी गंभीरता ना दे पाने के कारण ऐसा हो रहा लगता है .

वस्तुतः आसपास की बुराइयों से सर्वप्रथम अपने परिवार और अपना बचाव करने की सहज प्रवृत्ति हममें भी है , और इस के वशीभूत अनजाने ही कभी हम बुराइयों से बचने के लिए कुछ बुराई का सहारा लेकर अपना योगदान बुराई को बढाने में कर देते हैं . इस कारण बुराई घटने की जगह बढती है .

एक छोटा सा उदाहरण लें . हमें आशंकित रहते हैं , धन की कमी से कभी हमारा सामान्य जीवन यापन ,रोग -उपचार यहाँ तक की हमारी उदरपूर्ति भी कठिन हो जायेगी (जो एक सभ्य मनुष्य समाज के लिए या मानवता के आदर्शों के दृष्टिकोण से बुराई ही है) . इससे बचने के लिए हम धन संग्रह प्रवृत्ति को अपने ऊपर इस तरह हावी हो जाने देते हैं कि आयकर कम भरने , बिजली के बिल भरने से बचने तक की बुराई करने लगते हैं (हमारा तर्क होता है सब ऐसा कर रहे हैं ) .

स्वतः स्पष्ट है बुराई उस दिन तक अस्तित्व में रहेंगी जब तक स्वयं हमारे में ये विद्यमान रहेंगी .

अगर सच में हम बुराई उन्मूलन चाहते हैं . तो गंभीरता अपनी पहचान उन्हें तिलान्जित करने की पहल हममें से प्रत्येक को करनी होगी . जिस दिन तक अपने समाज के प्रति या मानवता के प्रति अपनी यह नैतिकता हम नहीं निभाएंगे हम अपने परिवार और बच्चों सहित बुराई के इस समुद्र में व्यथित होते रहेंगे . मनुष्य होते हुए सच्चे मनुष्य जीवन के सुख और आनंद उठाने से वंचित रहेंगे, अपने दूसरे साथियों को भी इससे वंचित करेंगे .
 
हम बुराई छाँटने के सद्कार्य का शुभारम्भ अपनी बुराई छाँट कर आज से ही करें .
 
--राजेश जैन
27-08-2013

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