Monday, June 4, 2012

अहसानों का विज्ञान

अहसानों का विज्ञान


                                            हम मनुष्य रूप जब जन्मते हैं तो सब को अलग अलग परिवेश मिले होते हैं. कुछ को अत्यंत ज्यादा कुछ को कामचलाऊ अनुकूलता मिलती हैं तो कुछ को प्रतिकूलताएं मिलती हैं .   कुछ की तो  प्रतिकूलताएं इतनी ज्यादा होती हैं कि वह सोचने लगता है कि जन्म देने वाले ने उसको पैदा ही क्यों किया .ऐसे हालातों में जो अनुकूलताओं से वंचित होते हैं उसे पाने कि दिशा में मेहनत और कर्म करते हैं .सिर्फ इन इमानदार प्रयत्नों से कुछ लोग सफलता प्राप्त करते हैं .लेकिन अधीरता से कुछ बीच में ही मेहनत छोड़ देते हैं और कुछ बेईमानी का संक्षिप्त मार्ग से जल्दी ही अनुकूल परिस्थिति अपने जीवन में ला लेना चाहते हैं.
                                            ऐसे लोग समर्थ लोगों से संपर्क करने का प्रयास करने लगते हैं . इसमें सफल होने पर उनसे अपेक्षा और याचना के साथ मिलने लगते हैं.समर्थ दो तरह के हो सकते हैं एक जो समर्थता के साथ चरित्रवान भी होते हैं .दूसरों का चरित्र ,सिध्दांत और ईमानदारी पर कम विश्वास होता है ,वे स्वार्थी ,बेईमान और दुश्चरित्र हो सकते हैं. जब अपेक्षा से  कोई इनके संपर्क में आता है तो चतुरता से ये विश्लेषण करते हैं कि उससे अपने किस तरह के स्वार्थ कि पूर्ती कर सकते हैं या किन जरूरतों के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं.जरूरतमंद उनके चरित्र से अंजन हो सकता है और सिर्फ आर्थिक हैसियत से प्रभावित हो अपनी अपेक्षा कि पूर्णता चाहता है.उसकी  अज्ञानता  और अपने प्रति आदर का प्रयोग धूर्तता से कर पहले कुछ सहायता और कुछ अहसान इस पर करते हैं.और जब लगता है अहसान से वह इतना लद गया है कि अब विद्रोह न कर पायेगा तो उसका तरह-तरह का शोषण प्रारंभ करते हैं .कुछ को धूर्तता से ये इतने मानसिक भ्रम में डालते हैं  कि वे इसी में अपना हित देखने लगते हैं .कुछ यह जान जाते हैं कि उनका इस्तेमाल वस्तु कि तरह उपभोग में किया जा रह है.कुछ शर्मवश इस शोषण कि चर्चा न कर किसी तरह इन्ही हालातों से समझौता कर लेते हैं या धीरे धीरे अपना रास्ता अलग कर लेते हैं. कुछ विद्रोह करने कि हिम्मत जुटाते हैं पर समर्थ अपने प्रभावों का प्रयोग कर उनकी चलने नहीं देते हैं और उनकी हिम्मत कि कमर तोड़ देते हैं.
                                              जब इस तरह के किस्से बहुतायत में हैं तो कौन और कितनों कि मदद सम्भव हो पायेगी . प्रत्येक मनुष्य को स्वयं के बल पर अपनी सहायता करनी होगी .बात बात पर याचक भाव और अहसान स्वीकार कर लेने की प्रवत्ति छोडनी होगी .सफलता के लिए अधीरता छोडनी होगी कड़ा परिश्रम और जीवन की विपरीतताओं को हिम्मत से जूझना होगा 
                                      फालतू  किस्म  की  नारेबाजी  से  अप्रभावित रहना होगा जैसे कुछ चर्चित तर्क सुनने मिलते हैं ---"मज़े न किये  तो क्या किया जीवन में "  और दूसरा " जीवन में उपभोग के वगैर मरे तो भगवान  कहेगा  उपभोग कर ने वापस जाओ धरती पर और वापस लौटा देगा  ". ऐसे नारे समाज में अपसंस्कृति बढ़ाते हैं . समझना होगा की मनुष्य जीवन इतनी हलकी सम्भावना वाला नहीं है .मनुष्य का ज्ञान और विवेक की शक्ति असीमित है .सच्चे इरादों से और और संकल्पों से जूझने पर जीवन में वह हासिल होता है जिसके सम्मुख उपभोग , सुविधा ,भोगलिप्सा और यहाँ तक की प्रसिध्दी बहुत हलकी बातें लगने लगती हैं. शोषित हो विलाप करना अश्रु बहाना अच्छा नहीं .अपने को कमजोर ,निर्धन मानके भी अश्रु बहाना अच्छा नहीं .जिन्होंने बेकार में अश्रु बहाने और विलाप की प्रवत्ति छोड़ी . उनमें बहुत अपंग हो गए बहादुर मनुष्यों ने उपलब्धियों के कीर्तिमान ऐसे प्रस्तुत किये हैं जो कई बार बलिष्ठ शारीरिक गठन वाले न कर सके.
                                                   हमारे अश्रु अवश्य बहें जब अबलाओं (नारियों ) या निर्दोष (पर गरीब ) या लाचारों पर ज़ुल्म और अत्याचार देखने मिलें ,हमें इस बात पर भी अश्रु बहा लेने चाहिए कि ऐसी घटनाएँ हमारे समाज में होती हैं और हम रोकने के लिए प्रयास न कर सकें , खुद में और दूसरों में जाग्रति  न जगा सकें .अश्रु तब भी बहाने चाहिए जब पछतावा हो कि वृध्दावस्था आ गयी अब ज्यादा सामर्थ्य नहीं रह गया बाकी, पर जब सामर्थ्य  था तब न कर सका अपनी चेष्टा समाज कि इन अस्वस्थ परम्पराओं और दूषित वातावरण को बदलने में.
                                यहाँ भावना यह है कि ऐसे पछतावे का समय न देखना पड़े किसी को ,ऐसे समय के पहले ही हमें अपने आप और संपर्क के मानवों की सुविधा लिप्सा की निद्रा से झिझोंड़कर जगा देना  चाहिए .कहाँ याचना कर झुकने जाते हो क्यों अहसानों का बोझ अपने पर ले उसके नीचे दबे चले जाते हो .अगर जीवन में विपरीतता मिली है तो यह अवसर उपलब्ध है आपके समक्ष  कि महापुरुष हो सकते हो इनसे जूझ कर क्योंकि कुंदन निखरता है प्रखर अग्नि कि आंच में तपकर .
 हमें प्राप्त   ऐसे अवसर को व्यर्थ नहीं गवां चाहिए.

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