Friday, June 15, 2012

सराहना की अपेक्षा

सराहना की अपेक्षा


                                            हमारे हर कार्य के पीछे प्रयोजन और अपेक्षाएं निहित होती हैं.हमारे कार्य के प्रयोजन स्वयं के साथ अन्य के भलाई के होने चाहिए.गलत प्रयोजनों से किये जाने वाले कार्य आत्मनियंत्रण रख हमें रोक लेने चाहिए .अपेक्षाएं भी हमारा प्रयोजन किसी  कर्म के पीछे हो सकती हैं .
                                              हम दुकान पर बैठते हैं हमारी अपेक्षा ग्राहक से लेनदेन में आर्थिक लाभ की होती है.अच्छे व्यापारी का इस अपेक्षा के साथ यह प्रयोजन भी होता है की उचित कीमत पर गुणवत्ता पूर्ण सामग्री देकर अपने ग्राहकों की संतुष्टि सुनिश्चित करे. हम धर्मालय जाते हैं अपेक्षा पुण्य कार्य  से जीवन में अनुकूलताएँ पाने की होती है.हम विद्यालय जाते हैं अपेक्षा ज्ञानार्जन की होती है.खेल और दूरदर्शन  के दर्शक बनते हैं अपेक्षा मनोरंजन की होती है.इस तरह अन्य और लगभग सभी कार्य अपेक्षा रख किये जाते हैं .कुछ अपेक्षाएं सोची समझी होती हैं जबकि कुछ हमारी पृष्ट चेतना में छिपी होतीं हैं,जिनका ठीकठाक ज्ञान कभी -कभी हमें ही नहीं होता है.मनुष्य परोपकार और समाज सेवा के कार्य भी करता है.यहाँ उसकी अपेक्षाएं अत्यंत कम हो सकतीं हैं लेकिन अपनी सराहना और सम्मान की अपेक्षा कुछ न कुछ मात्रा में होती है.जैसे कोई रक्तदान करता है (बदले में कोई पैसा कमाना नहीं चाहता ) किसी के जीवन रक्षा की  की पवित्र अपेक्षा के साथ अपने नाम का उल्लेख और प्रशंसा की भी थोड़ी कुछ अपेक्षा कई बार नहीं रोक पाता है.
                                        आज के मानव के ज्यादा कार्य स्वार्थपरक  हैं. हम एक दूसरे को स्वार्थी बताते कई आलोचना युक्त चर्चाएँ भी करते हैं. स्वार्थ की अधिकता से किये जाने वाले कार्य समाज में कई तरह की बुराइयों के कारक हैं . निस्वार्थ हो समाज और व्यवस्थाओं में हमारा योगदान क्रमश शून्यता की तरफ जा रहा है.जो सामाजिक समस्याओं को और बढ़ाने वाला है.हमें उन कुछ मनुष्यों की वह भावना बनाये रखने में सहायक होना चाहिए जिसके अंतर्गत वे बहुत कार्य कम स्वार्थ भावना से करते हैं. उनका उत्साहवर्धन किया जाना चाहिए .साथ ही जो ज्यादा स्वार्थी हो कर्म कर रहे हैं उन्हें इस हेतु प्रेरित करना चाहिए कि वे स्वार्थ अपेक्षा धीरे- धीरे थोड़ी -थोड़ी कम करते चलें.ज्यादातर निस्वार्थ हो कर्म करने के  आदी मानवों में से कुछ को ऐसा बनने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे भलाई के उनके कर्मों के बदले अपनी सराहना के अपेक्षा ना निहित हो .निस्वार्थी और इस तरह के मानव समाज की धारा और दिशा मोड़ने की द्रष्टि  से आवश्यक हैं. आज हम सामाजिक और व्यवस्थागत समस्याओं से पीड़ित हैं और उन्हें देख और भुगत हमारा ह्रदय आहत है.हम वास्तव में इससे सहमत हैं तो हमें ही स्वयं को आत्मनियंत्रित हो कर्म करने के लिए स्वप्रेरित करना है और भले ही कठिनता लगे और थोडा त्याग भी करना पड़े तो भी इस पवित्र उद्देश्य और कर्मों से विचलित नहीं होना चाहिए.
                                 शारीरिक स्वास्थ्य लिपिड प्रोफाइल और अन्य तरह के परिक्षण  के बाद पाए गए आवश्यक तत्वों का हमारे शरीर तंत्र में विद्यमान स्तर से ज्ञात कर लिया जाता है.जांच के परिणामों अनुसार उपाय और चिकित्सा से आवश्यक होने पर इन्हें सुधार लिया जाता है . पर हमारे ह्रदय में समाज उपयोगी तत्वों के साथ भावनाएं और सोचविचार का उचित स्तर विद्यमान है या नहीं , इस हेतु कोई पध्दति ज्यादा कोई चलन में नहीं हैं . इसकी प्रक्रियाएं और मानदंड बनाये जाने चाहिए जिससे इनका आवश्यक स्तर किसी भी मनुष्य में बनाये रखने के उपाय कर सकें .किसी मनुष्य का शारीरिक स्वास्थ्य तो सिर्फ उस मनुष्य विशेष और उसके परिजनों को प्रभावित करता है किन्तु उसकी मानसिक अवस्था समाज के बड़े वर्ग को प्रभावित कर सकती है.
                                 हमारे कर्म और आचरण यदि हम 40 के आसपास या उससे अधिक के हो गए हैं, तो धीरे-धीरे दिशा बदलते हुए सही तरफ बढ़ाने चाहिए.हमारा ऐसा परिवर्तन और त्याग हमारी अगली पीढ़ियों का उचित पथ प्रदर्शन कर सकेगा और सामाजिक समस्याओं का स्थायी और दीर्घकालिक समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा .आइये हम अपने कर्म और आचरण में अपने लिए सराहना तक की अपेक्षा छोड़ना प्रारम्भ करें.

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