प्रस्तावित नई विधि से आत्महत्या
कल एक चर्चा सुनी कि एक किशोरी ने अपनी कम सुन्दरता से हीनता के कारण
स्वयं को जलाकर आत्महत्या कर ली .दुखदायी इस तरह की बातें व्यथित करने
वाली होती हैं .आगे पूरा जीवन (60-70) वर्ष का गुजारना शेष होता है
.धैर्य खो बच्चे और युवा छोटी-छोटी बातों से असमय जीवन समाप्त कर लेते हैं
.इसके उलट हम देखते हैं जीवन ललक उन वृध्दों में जो रोग से अपनी आसन्न
मृत्यु से बचने ,कुछ वर्ष और जीवन जी लेने के लिए तरह तरह के उपाय और
उपचार करते हैं.उम्र के इस पड़ाव में उन्हें मालूम रहता है कि एक बार खो
देने के बाद मनुष्य जीवन का यह संस्करण कभी न लौट सकेगा .
तमाम
शोधों के बाद मनुष्य ने मनुष्य जैसा यंत्र (रोबोट ) तो बना पाया है
लेकिन कल पुर्जों से उसमे जीव या चेतना का संचार नहीं हो सका है. ऐसा
असंभव सा जीव जो मनुष्य रूप में सहज पाया हुआ होता है जिसे किशोर या युवा
अवस्था तक ला देने के लिए पालकों या माता -पिता ने अपने को युवा से अध-
बूढ़ा कर लिया होता है .ऐसे में पाल्य या बच्चे को मनुष्य जीवन की ख़ुशी
और व्यक्तित्व की संभावनाओं की जो उत्सुकता उनके ह्रदय में होती है ,नासमझी
से कायरता की यह हरकत एकबारगी उनकी आशाओं को नष्ट कर उन्हें घोर निराशा
के काले सागर में डुबा देती है.ऐसे किशोर या युवा जीवन के महत्त्व को समझे
बिना सर्वस्व ही खो देते हैं.
भ्रमण में एक
सज्जन 55-56 वर्ष के होंगे उन्हें देखता हूँ .आँखे नामालूम किस दुर्घटना
या रोग में गवां बैठे हैं .राह में लकड़ी टेकते आते हैं ,जो उन्हें जानते
हैं उनकी आवश्यकता को समझ उनकी लकड़ी थामते हैं फिर 5-6 किमी का भ्रमण अपनी
गति और चर्चाओं में उनका दैनिक रूप से पूरा करवा देते हैं. उनका सहारा ले
इस तरह वे अपनी फिटनेस और वैचारिकता को पुष्ट कर अपनी इतनी बड़ी कमजोरी
को बेहद धीरता और बुध्दिमत्ता से निभाते अपना जीवन सफ़र आगे बढा रहे हैं
.आत्महत्या को छोटी छोटी कमियों के कारण बाध्य होते हमारे बच्चे और युवा
अगर इन सज्जन को देखें और समझें और उनसे प्रेरणा ले आत्महत्या से बचें तो दुखद ये हादसे जो परिजनों को जीते जी
मार देते हैं और अनमोल स्वयं के मनुष्य जीवन का हनन कर लेने वाली
पुनराव्रतियाँ समाज को न देखनी पड़ेंगी.
95 %
score करने वाला अपने प्रतिद्वंदी से पिछड़ने पर, कोई प्रेम में असफल होने
पर, रूप हीनता या गरीबी से त्रस्त कोई,
छोटी से डांट फटकार से व्यथित कोई गुस्से में आकर और किसी के तानों उलाहनों से दुखी हो कोई, आत्महत्या करता है जबकि उन्हें शारीरिक सम्पूर्णता मिली हुई होती है. कम वय /युवा होने से जीवन ऊर्जा भी अधिकतम स्तर पर होती है. यह देख और पढ़ कर कैसा अनुभव करते होंगे वे विकलांग जो दुर्भाग्य-वश शारीरिक कमी पाते हैं पर जो जीवन कामनाओं को बरक़रार रख, इन हालातों में भी, जो संभव है वह जीवन सुख पा लेना चाहते हैं और अपने सामर्थ्य अनुसार समाज को अपना योगदान दे देना चाहते हैं.
छोटी से डांट फटकार से व्यथित कोई गुस्से में आकर और किसी के तानों उलाहनों से दुखी हो कोई, आत्महत्या करता है जबकि उन्हें शारीरिक सम्पूर्णता मिली हुई होती है. कम वय /युवा होने से जीवन ऊर्जा भी अधिकतम स्तर पर होती है. यह देख और पढ़ कर कैसा अनुभव करते होंगे वे विकलांग जो दुर्भाग्य-वश शारीरिक कमी पाते हैं पर जो जीवन कामनाओं को बरक़रार रख, इन हालातों में भी, जो संभव है वह जीवन सुख पा लेना चाहते हैं और अपने सामर्थ्य अनुसार समाज को अपना योगदान दे देना चाहते हैं.
इन
जीवन यथार्थ को समझे बिना जीवन कामनाएं खोता कोई भी मनुष्य धीर चिंतन
-मनन से यह समझे कि कितनी भी बिगड़ी जीवन परिस्थितियां बन गयीं हों, कितना
भी कुछ खो दिया हो, पर शरीर में जीव विद्यमान है तो हमेशा बहुत संभावनाएं शेष रहती हैं. क्षति के बाद भी कुछ न कुछ हासिल हमेशा होता है. जो जीवन
स्वयं खोने की तुलना में हमेशा अधिक होता है. कुछ न हुआ, तो भी कुछ अधिक वर्षों
का मनुष्य जीवन और उसका साक्षात्कार मिलता ही है.
हम वे मानव, जिन्होंने उत्कृष्ट मानसिक संतुलन की उपलब्धि पाई हुई है, का
भी दायित्व है कि पुनर्विचार/विश्लेषण करें कठिन उन प्रतिस्पर्धात्मक परिस्थितियों
के बनने के कारणों का, जिसमें अत्यंत प्रतिभावान भी इस हद तक अवसादग्रस्त
और निराशा में चले जाते हैं. भौतिकता और उपभोग के प्रति इतना आसक्त होते
ज़माने से तिरस्कार और उपेक्षा पाने की हीनता युवाओं में जीवन नष्ट कर लेने तक
को प्रेरित कर डालती है. अपने परिजनों एवं साथी मानवों के मनोविज्ञान को
यथा रूप समझाने का और उचित पथ प्रदर्शन का दायित्व हमारा ही है, जो किसी को
निराशा के इस बिंदु तक जाने से रोक दे. यह बिंदु जहाँ आगे जीवन बचता नहीं
है, कम अनुभवी इन बच्चों और युवाओं की पहुँच से हमें दूर कर देना है.
हमारे
तमाम उपायों के व्यर्थ होने पर भी कोई आत्महत्या के नतीजे पर पहुँच जाता
है तो उससे हमारी मार्मिक अपील है "करो आत्महत्या पर वैसी नहीं, जिसमें मनुष्य जीवन ही समाप्त हो जाता है". यहाँ आत्म हत्या का नया ढंग प्रस्तावित है
जिसमें अपना जीवन अस्तित्व बचाए रखना है, अपनी आत्मिक अपेक्षाओं कि हत्या कर
लेना है , इसे आत्महत्या मान अब जो बचा है उसे नया मनुष्य जन्म जिसमें
स्वार्थ अपेक्षाएं शून्य हो गयी मिला मान लेना है. उसे अब समर्पित करना है
दूसरों कि लाठी बन जाने में. मनुष्य समाज में बहुत ही ज़रूरत मंद हैं जो
दूसरों से सहारा अपेक्षित करते, हर समय, हर स्थान पर मिल जाते हैं. जो भी आपका
सामर्थ्य है, पूरा कर सकने का उस अनुसार ज़रूरतमंद थोड़ी ही तलाश में आपको
मिल जायेंगे. ऐसों कि निस्वार्थ सेवा आपको करना और उनका सहारा बनना है. कुछ
ही समय लगेगा जब आपको इस जीवन यथार्थ कि समझ आ जाएगी कि आत्महत्या को
प्रवृत्त होते समय जो सम्भावना शून्यता आप समझ रहे थे वैसा नहीं है. जिन
ज़रूरतमंद को आपकी सेवाओं और सहारे से लाभ मिलेगा उनके आँखों में आपके
प्रति कृतज्ञता और सम्मान के भाव आप में स्वाभिमान पैदा कर देंगे. इससे
जिनके जीवन में आत्महत्या का विचार कभी नहीं आया हो, ऐसों की जीवन कामनाओं
से बढ़कर आपमें जीवन ललक उत्पन्न हो सकती है.
इन सहयोगात्मक आपके
कार्य के लिए ना तो खास उपाधि, ना ही रूप सौंदर्य और ना ही धन बहुत जरुरी
होगा. खास भाषा ज्ञान भी आवश्यक नहीं होगा. ज़रूरतमंद और आपके बीच सहयोग
आँखों और चेहरे के हावभाव से मूक ही समझा जा सकेगा. दूसरों के निस्वार्थ सेवा सहयोग संपन्न करने के लिए. आपको सम्मानीय और
प्रतिष्ठित होने की भी कोई शर्त नहीं मिलेगी.
किसी भी तरह की आत्महत्या के प्रोत्साहन
(उपरोक्त कथित भी नहीं) और सलाह किसी को हमें नहीं देना है. लेकिन
जीवन समाप्ति पर ही कोई तुल जाये तो उसे यह सलाह बाध्यता में देना है,
संपूर्ण रूप से मनुष्य निस्वार्थ हो यह काल्पनिक ही हो सकता है हकीक़त नहीं. अवसाद ग्रस्त ऐसे बच्चे/युवा अगर आत्महत्या को इस तरह परिवर्तित
करें और 1000 भी ऐसी आत्महत्या परिवर्तित पूरे विश्व में प्रति वर्ष हुयीं तो अगले 20 वर्ष में विश्व मानव परिदृश्य में अच्छी दिशा में परिवर्तन परिलक्षित
होगा .
आज आव्हान ऐसे कमज़ोर पल देखने वाले हर मनुष्य से है. समाज में
निस्वार्थ योगदान अत्यंत अपेक्षित है. बहुत स्कोप है. जिसमे जितना
सामर्थ्य और समय है लगा दें. सामाजिक परिस्थितियां थोड़ी भी बदलीं तो आप
आत्महत्या नहीं समाज हत्या बचाने वाले सिध्द होंगे.
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