Wednesday, June 20, 2012

समस्या अपनी ही है

समस्या अपनी ही है

                                                  दुर्भाग्य से बस्ती की किसी दुकान या मकान में आग  भड़क जाए तो आग पर काबू पाना सिर्फ उसके मालिक की ही अकेले चिंता होगी ? चूँकि आग की चपेट में उसकी संपत्ति है अतः सर्वप्रथम समस्या उसकी है . पर उसके उपाय या प्रयास से आग काबू न की जा सकी तो आस पास के मानव चिंता न करेंगे? अग्नि भीषण हुयी तो सभी चिंता करेंगे क्योंकि वह उनका भी नुकसान कर सकती है .अतः प्रारंभ में व्यक्तिगत सी लगती समस्या एक नहीं बहुतों की होती है. 
                                              समाज में जिधर तिधर समस्याओं की छोटी या बड़ी चिंगारियां सुलग रहीं हैं.इन्हें हम परायी मानने का खतरा न उठायें तो अच्छा होगा .आज या कल ये हमें भी चपेट में ले सकतीं हैं .ये चिंगारी जब तब भीषण अग्नि में तब्दील होती रहीं हैं .भीषण हो जाने पर इनको काबू करना अत्यंत कठिन हुआ है ,और नियंत्रित करने तक काफी क्षति भी उठानी पड़ी है.जन हानि ,संपत्ति हानि से बढकर इन सामाजिक समस्याओं की ज्वाला ने समाज के बड़े वर्ग को ऐसा भावनात्मक ठेस /आघात पंहुचाया है जिससे मानव ह्रदय इस बुरी तरह झुलसा है जिससे उनका  जीवन ही सिर्फ प्रभावित नहीं हुआ है अपितु उनकी कई कई पीढ़ियों की भावना और मानसिकता प्रभावित रही है.
                                             ऊपर से सामान्य दिखने वाले मानवों के मनो -मस्तिष्क में इन कटु स्मर्तियों की विद्यमानता किसी सामान्य से दिखने वाले प्रश्न के सर्वमान्य हल में बाधक हो जाती है . सामाजिक अव्यवस्था और समस्याओं का इतिहास पुराना है, इनके उपायों में महामानवों ने जीवन समर्पित किया है पर मिला जनसमर्थन बहुत होने पर भी अपर्याप्त रहा है ,कई बार त्याग और बलिदान का असर तो हुआ है पर उसका असर सामयिक सिध्द हुआ है ,और कालांतर में पुनः वही समस्या  फिर और कभी उससे भी विकट स्वरुप में उभर सामने आई हैं . रोग की भांति ही समस्या भी हैं ,जो पुरानी होने से कष्टकर और कष्ट-साध्य  हो जाती हैं.इससे यह भी सिध्द होता है कि कुछ मानवों का जागरूक हो जाना और उनका प्रयत्न सर्वकालिक निदान की द्रष्टि से अपर्याप्त होताहै .अतः समग्र जागरूकता और सामूहिक प्रयत्न आवश्यक होते हैं ,अगर हम इसे गंभीरता से  ले कोई समाधान नहीं निकालते हैं तो ये समस्याएँ 1 और पीढ़ी पुरानी हो जाएँगी और आगामी पीढ़ी को और अधिक जटिल विरासत होंगी ,वह नई पीढ़ी हमारी ही तो संतानें होंगी.
                            हमें समस्याओं को अन्य की बताने या अपने लिए ही कुछ बचाव के उपाय करने की संकीर्णता से निकल इन्हें अपनी मानना और जागरूकता लाने के लिए हर मनुष्य में आत्मचिंतन और आत्मावलोकन की की प्रवत्ति बढ़ानी होगी , इन तरीकों से ही मनुष्य स्वयं के गुण-दोषों को सही पहचानता सकता है और अन्य के द्वारा दोषारोपण से अपमानित होने के भाव से मुक्त रहकर दोष अनुभव कर सुधारने के प्रयास कर धीरे धीरे आचरण से दोष मुक्त हो सकता है .
                              हर मानव यदि अरुचिकर घटनाएँ/यादें अपने मन में रख खेद करता रहे तो अपने वर्तमान और भविष्य की प्रगति में स्वयं बाधक बनता है .आवश्यकता है उन्हें धीरे धीरे विस्मृत कर उनकी कटुता से अपने ह्रदय का बचाव कर अपनी ऊर्जा अपने और अन्य के विकास में लगाये.हम रातोंरात बदल जायेंगे ऐसी खुशफहमी ना रखनी होगी .पहले कुछ मानव स्वयं के आत्ममंथन से बदलेंगे फिर वे दूसरों को प्रेरणा दे उनमे परिवर्तन लाने का कार्य करेंगे इस क्रम को जारी रख कुछ वर्षों में समाधान की दिशा में मानव समाज अग्रसर हो समस्याओं का स्थायी हल प्राप्त कर सकेगा.मनुष्यों के व्यवहार और आचरण में इस तरह होने वाले परिवर्तन सर्व व्यापी होने से खुशहाली बढ़ेगी
                               आज दुनिया में हर कहीं मानव आचरण व्यवस्था लागू  कर नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है. नियम विपरीत कार्यों के लिए दण्डित करने के प्रावधान होते हैं अतः भय से कुछ अनुशासित रहते हैं पर कुछ चतुराई से बचते हुए अपने स्वार्थ सिध्द कर लेते हैं ,अगर वे कभी पकडे भी जाते हैं तो उसके पूर्व वे अपने कई कृत्यों से दूसरों को (इस तरह समाज को ) क्षति पहुंचा चुकते हैं .इस प्रकार व्यवस्थाएं कुछ हद तक तो प्रभावकारी हो सकतीं हैं पर समस्याओं के अस्तित्व से मिटाने में कारगर नहीं हो पाती .अपने आप में धीरे धीरे ही सही पर हरेक को परिवर्तन लाना ही हमारे उस स्वप्न को पूरा कर सकता है जिसमे हम या हमारे बच्चे या कोई भी दुनिया में कहीं भी किसी भी समय बेखटके विचरण कर सकता है .
                              न्यायसंगत या नैतिकता की द्रष्टि से वर्जित अपनी लालसाओं से हमें संकल्प ले मुक्त होना होगा . जब हम अपने आचरणों में बदलाव ला लेंगे तो हमें देखते हमारी नक़ल करते हमारे बच्चों में सही संस्कारों की सुनिश्चितता होगी .और कल का समाज बेहतर संभावनाओं का होगा .हम नहीं पर हमारी संतति ज्यादा सुरक्षित तथा बेहतर मानवीय जीवन का सुख तो ले सकेंगी .

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