Wednesday, May 5, 2021

मानव प्रेम ….

 

मानव प्रेम …. 

उसका, मुझसे यह प्यार बचपन से रहा था। जबकि मुझे घर से मिली प्रेरणाएं अलग थीं। अतः किशोर वय के आकर्षण को प्यार मानकर, मुझे इसमें समय व्यर्थ नहीं करना था। मुझे पढ़ना था, मुझे कुछ बनना था। पता नहीं और भी किसी को रहा हो मुझसे प्यार मगर उसे समझने और उसके चक्कर में पड़ने का मेरे पास समय नहीं होता था।  

मैंने मानव के मुझसे प्यार को तब जाना था, जब मुझे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रवेश हेतु सफलता मिली थी। मानव प्रवेश परीक्षा में विफल रहा था। तब एक दिन उसने, पहली एवं अंतिम बार मुझसे, अकेले में भेंट कर कहा था -

पिछले छह वर्षों से मैंने, पढ़ने से ज्यादा मन, तुमसे प्यार की अपनी अनुभूतियों में लगाया है। तुम मेरे प्यार से अनभिज्ञ पढ़ते रहीं और आज वहाँ पहुंच रही हो, जहाँ मुझ जैसे पिछड़ गए लड़के के हृदय में रह गए, तुमसे प्यार का कोई महत्व नहीं रह जाता है। तुम्हें, वहाँ से तुम्हारे समतुल्य प्रतिभा वाले लड़के मिलेंगे, जिनका साथ तुम्हें ज्यादा अच्छा लगेगा। मेरा यह बताने का प्रयोजन मात्र इतना है कि तुमसे, हुए प्यार को, मुझे कुछ बनने की प्रेरणा बनाना चाहिए था। वह मैं नहीं कर पाया हूँ। मैं वह प्रेमी बन गया जो प्यार में बर्बाद हो जाता है। 

मुझे उसके ऊपर दया आई थी। मैंने पूछा - मैं सब समझ गई हूँ। अब बताओ कि यह बताने के बाद क्या चाहिये है तुम्हें, मुझसे?

उसके नेत्र सजल हुए थे। उसने कहा - कुछ नहीं, अपनी शुभकामनाएं ही कहने आया हूँ। तुम, जिसके प्रति प्यार में मेरा ह्रदय कई वर्षों तक भरा रहा, मेरे उस  हृदय की हर स्पंदन कामना करती है कि तुम उन्नति करो और जीवन भर सुखी रहो। 

तब उसके लिए मेरे हृदय में, प्यार तो नहीं मगर करुणा अवश्य आई थी। मैंने कहा था - अपना ख्याल रखना। तुम अभी भी बहुत कुछ पा सकते हो और कुछ अच्छा बन भी सकते हो। मुझसे प्यार करते रहे हो तो अब कुछ बनकर दिखा सकोगे तो मुझे ख़ुशी होगी। शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। 

फिर मैं शिक्षण संस्थान में पढ़ने चली गई थी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में अध्ययन एवं वातावरण में ,मैं मानव को बिल्कुल ही भूल गई थी। पढ़ने के बाद मैंने डॉक्टरेट भी की और प्रौद्योगिकी संस्थान में ही प्रोफेसर होकर पढ़ाने लगी। मेरे जीवन के लिए अनुकूलता, इसमें ही थी कि अपने लिए वर भी मैं किसी प्रोफेसर को चुनूँ।  

ऐसा ही मैंने किया भी था। सह प्राध्यापक, अभिषेक मेरे पति हो गए थे। देखते ही देखते जीवन के 30 वर्ष बीत गए। एक मानव था मुझे प्यार करने वाला, 40 वर्ष हो जाने से इस बात का, मुझे कोई स्मरण भी शेष नहीं रहा था।   

फिर आया कोरोना का दुखद समय। मुझे कोरोना संक्रमण हुआ। मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रही थी। संक्रमण माइल्ड लेवल का रहा और मैं घर पर ही ठीक हो गई थी। बहुत सावधानी के बाद भी संक्रमण मेरे पति, बेटे एवं बहू को भी हो गया। 

घर में संक्रमण से अछूती सिर्फ मेरी 2 वर्षीय पोती रह सकी थी। मेरे बेटे, बहू भी उपचार घर में लेते रहे थे और उनका संक्रमण नियंत्रित हो गया था। मगर मेरे पतिदेव, अभिषेक की हालत चिंताजनक हो गई थी। बड़ी कठिनाई से उन्हें अस्पताल में आईसीयू बेड मिल सका था। हम सब उन्हें लेकर बहुत चिंतित थे। डॉक्टर ने बताया कि अगर ‘बी-’ प्लाज़्मा मिल सके तो, अभिषेक को संक्रमण की दूसरी से तीसरी स्टेज में जाने से बचाया जा सकता है। 

मेरे बेटा-बहू भी संक्रमित होने से होम आइसोलेशन में थे। कोई और कुछ नहीं कर सकता था। जो कुछ कर सकती थी वह मुझे ही करना था। मुझ पर अबोध पोती का दायित्व भी था। आसपास परिचित, रिश्तेदार और दोस्त सब इतने भयाक्रांत थे कि कॉल पर बात तो कर रहे थे मगर अपने घरों से निकल कर हमारी सहायता करने नहीं आ पाए थे। लाचारी में मुझ से सिर्फ इतना हुआ कि मैंने फेसबुक पर यह पोस्ट लिख दी- 

#urgent_help  #Plasma #Bnegative

Plasma needed (‘B-’ blood group)

Name: Abhishek Sinha

Age: 57 

O2 Level: 85-87 (with constant oxygen support)

Hospital's name: Continental

mobile  No.: 98###23###

मैं, हॉस्पिटल में अभिषेक के पास रह नहीं सकती थी। उनसे दूर उनकी स्थिति से घबराई मैं, रात भर सो नहीं पाई थी। मैंने अगले दिन पूरी कोशिश कर ली थी। हमारे रिश्तेदार, दोस्त एवं परिचित जो भी प्रभावशाली थे, सबसे कॉल पर बात कर ली थी। सबसे सहायता उपलब्ध कराने हेतु याचना कर ली थी। सभी ने आश्वासन भी दिया मगर कोई बात बन नहीं पाई थी। 

हॉस्पिटल से शाम सात बजे बताया गया कि अभिषेक की हालत सुधर नहीं पा रही है। आज ही प्लाज्मा की व्यवस्था जरूरी है। अन्यथा सुबह तक उनके स्वास्थ्य में और गिरावट आ जाएगी। 

मैं विवश थी कुछ हो नहीं पा रहा था। घर में बैठी रो रही थी। नन्हीं पोती मेरा मुख देख, समझ नहीं पा रही थी कि दादी उसके जैसे क्यों रो रही है। तब रिंग सुनाई दी। किस का कॉल है देखने के लिए मैंने मोबाइल उठाया। कॉल मेरे स्टोर्ड नं. से नहीं आ रहा था। ट्रू कॉलर में कॉलर नेम, मानव खरे दिख रहा था। मैंने निराशा में ही रिप्लाई किया था। दूसरी और से कहा गया - 

मैं, इस समय कॉन्टिनेंटल हॉस्पिटल के सामने हूँ। भीड़ के कारण हॉस्पिटल से कोई, रिस्पांस नहीं दे रहा है। मैं, आपकी पोस्ट से प्रेरित होकर प्लाज़्मा देना चाहता हूँ। आप बताएं कि मैं क्या करूं? 

मैं सुनकर स्फूर्ति से भर गई। मैंने कहा - कृपया आप वहां ठहरिए। मैं डॉक्टर को आपका नं. दे रही हूँ। डॉक्टर खुद, आपसे आपके नं. पर संपर्क करेंगे। 

मैंने डॉक्टर को फोन लगाया। उन्हें विवरण बताए थे। डॉक्टर ने कहा आप चिंता ना करें। मैं अभी ही सब अरेंज करता हूँ। 

फिर किसी का कोई फोन नहीं आया था। मैं आशा कर रही थी कि सब ठीक हो जाने वाला है। मैं पिछली रात सो ना सकी थी। अतः आज मुझे नींद गाढ़ी लग गई थी। 

सबेरे डॉक्टर से बात करने पर पता चला कि मैचिंग प्लाज़्मा मिल गया है। अब आशा है अभिषेक को बचा लिया जा सकेगा। मैं पिछले 20 दिनों में पहली बार ख़ुशी अनुभव कर रही थी। स्नान आदि के बाद सब में पहला काम, घंटे भर श्री राम जी आराधना और पूजा में बिताया था। 

10 दिन बाद अभिषेक अत्यंत कमजोर मगर स्वस्थ होकर घर लौट आए थे। डॉक्टर ने बताया था वीकनेस दूर होने में कुछ समय लगेगा मगर अब चिंता की कोई बात नहीं रही है। इस बीच बहू-बेटा भी ठीक हो गए थे। परिवार पर चलते खतरे टल गए थे। हम सब खुश हो ड्राइंग रूम में बैठे थे। 

अभिषेक ने बताया - मुझे ऐसे लग रहा था कि मुझे ले जाने के लिए यमदूत आ गए हैं। अचानक तब एक देवदूत आ गया था। वह पिछले महीने ही कोरोना से ठीक हुआ था। मेरे हृदय को अभी और धड़कते रहना था। अतः उसका ब्लड ग्रुप ‘बी-’ ही था। अस्पताल से छुट्टी देने के समय डॉ. ने मुझे बताया वह देवदूत प्लाज़्मा देने नहीं आया होता तो मेरा बच पाना संदिग्ध हो गया था। 

तब मैंने खुश होकर बताया - यह मेरी फेसबुक पर सहायता की पुकार से संभव हुआ था। 

अभिषेक ने अचंभित होकर पूछा - वह , तुम्हारी प्रार्थना पर आया था?

मैंने बताया - हाँ, उसने मुझे कॉल कर बताया था कि हॉस्पिटल में कोई रिस्पांस नहीं मिल पा रहा है। 

अभिषेक के मुख पर आश्चर्य के भाव आए, पूछा - वह तुम्हारा कोई परिचित था? तुमने, उसको, हमारा कृतज्ञ होना बताया और उसका धन्यवाद किया है? 

मैंने कहा - नहीं, वह कोई परिचित नहीं था। हाँ, मगर उसका नं. कॉल हिस्ट्री से पता चल सकता है। 

अभिषेक ने कहा - तो देखो, मैं उससे बात करता हूँ। जिसने मेरा जीवन बचाया है, और कुछ नहीं तो कम से कम हमें, उसका आभार तो मानना ही चाहिए । 

मैंने तब डेट एंड टाइम याद की थी और कॉल हिस्ट्री से उसका नं. निकाल के अभिषेक को दिया था। अभिषेक ने कमजोरी के कारण, मुझसे ही कॉल करने कहा था। मैंने, कॉल लगते ही स्पीकर ऑन कर दिया ताकि सभी की जा रही बातें सुन सकें। 

उसने मेरे कहने से पहले ही पूछा था - आपके पति अभिषेक, अब ठीक तो हो गए हैं ना?

स्पष्ट था, मेरी फोन बुक में उसका नहीं मगर उस की में मेरा नं. स्टोर्ड था। इसलिए मेरे परिचय दिए बिना उसने, मुझे पहचान लिया था। 

मैंने पूछा - आप, मुझे कैसे जानते हैं?

उसने कहा - याद कीजिए, मैं मानव हूँ। स्कूल में हम साथ पढ़ते थे। मैं फेसबुक पर आपको खोज कर, फॉलो करता रहा हूँ। 

अब मुझे स्मरण आया था उस लड़के का जिसने, मुझसे अपना प्यार व्यक्त करते हुए एक दिन शुभकामनाएं दीं थीं। 

मैंने कहा - मैं, अभिषेक की हालत से इतनी घबराई हुई थी कि उस दिन मैं, आपसे कुछ और बात नहीं कर सकी थी। 

तब उसने कहा - अगली ही सुबह मेरी नागपुर वापसी की फ्लाइट थी तो मैं खुद भी आपसे बात नहीं कर सका था। 

मैंने कहा - आप इतनी दूर से अभिषेक को प्लाज़्मा देने आए थे? आपका हृदय तल से आभार, अभिषेक स्वस्थ होकर कल ही अस्पताल से लौटे हैं। 

मानव ने कहा - यह मेरा भाग्य है कि मैं, आपकी कोई सहायता कर सका। 

मैंने कहा - अब आप यहाँ जब भी आएं, तब हमारे घर पर ही ठहरिए। 

मानव ने कहा - जी, अवश्य। कृपया आप भी सपरिवार कभी नागपुर मेरे घर पधारिए। 

मैंने कहा - जी हाँ, यह आपदा का समय बीतने दीजिए हम आएंगे।    

फोन डिस्कनेक्ट होने के बाद, 40 वर्ष पूर्व का स्मरण करते हुए मैंने, मानव से अपनी एकांत में हुई एकमात्र मुलाकात की बात, परिवार में सभी के सामने कही थी। 

अभिषेक ने तब कहा - जिसमें कोई भी अपेक्षा नहीं, ऐसा निर्मल होता है ‘मानव प्रेम’ ….                   

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

05-05-2021

 

 



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