Wednesday, May 19, 2021

महत्वाकांक्षा कितनी विशाल …

 

महत्वाकांक्षा कितनी विशाल … 

मुझे अपनी योग्यता एवं अपनी बुद्धिमत्ता का अभिमान रहता था। मैं अपनी पत्नी, रसिका को इस कसौटी पर अपने से हीन मानता था। 

इसलिए जब रसिका ने मुझे दवाओं के काले धंधे में पड़ने से, मुझ पर अपनी रुखाई के जरिए दबाव बनाकर दृढ़ता से रोका तो मुझे, अपनी इस धारणा की पुष्टि हो गई थी। मैं सोचता था ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’, इसी को कहते हैं। जब यह अवसर था कि जिन औषधियों की कमी पड़ रहीं थीं, उनकी अधिक मांग पर, उसका प्रयोग अतिरिक्त लाभ कमाने में किया जाए। तब स्कूली मास्टर की टीचर बेटी (रसिका) ने अपने सिद्धांत का, अवरोध मेरे सामने खड़ा किया था। यह हमारे घर आती लक्ष्मी के मार्ग में बाधा भी थी।

मेरी लाचारी थी मुझे, जिसके साथ नित दिन रात पूरे जीवन रहना था उसे, रुष्ट करके मैं, अपने मन की शांति नहीं खोना चाहता था। अपनी ऐसी विवशता में, मैंने उन औषधियों को स्टॉक करने का विचार त्याग दिया था। जो भी स्टॉक, तब मेरे पास था उसे भी मैंने डीलर को वापिस कर दिया था। 

यह दवाएं लौटाते समय डीलर, मुझे ऐसी दृष्टि से देख रहा था कि जैसे मैं कोई विचित्र या लुप्तप्राय प्राणी हूँ। मुझे मन मसोस कर रह जाना पड़ा था। फिर कुछ दिनों बाद ही मेरे घर-दुकान पर पुलिस ने छापा मारा था। सात दिन पहले अगर यह छापा पड़ा होता तो मेरे पास से नकली दवाओं की जब्ती होती और शायद मैं रासुका में धर लिया जाता। मुझे जमानत के लाले पड़ जाते। तब मेरी रसिका और मेरा बेटा सिद्धांत दर दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाते। 

छापे वाली रात, जब रसिका शांत चित्त सो चुकी थी तब मैं स्वयं को उसका बड़ा आभारी अनुभव कर रहा था। हल्की रौशनी में सोते हुए उसका निश्छल मुखड़ा देख मेरा मन कर रहा था कि जिस श्रद्धा से मैं, अपनी माँ के चरण स्पर्श करता था वैसे ही मैं, रसिका के चरण छूलूं। 

बड़ा विचित्र होता है पति होने वाला यह अभिमान! इस विचार के तुरंत बाद, इसके  विपरीत विचार भी मेरे मन में आ गया था। मैं खुद से पूछने लगा कि क्या तेरा इरादा ‘जोरू का गुलाम’ होने का है? 

रसिका को लेकर भावावेश में मन में उमड़ी श्रद्धा को, इस बात ने नियंत्रित कर दिया था। मैंने चरण तो नहीं छुए थे मगर अपने आभार बोध के वशीभूत, रसिका के सोते हुए खुल गए अधरों पर, प्यार से एक हल्का चुंबन ले लिया था। यह क्रिया मैंने अत्यंत सावधानी और हल्के से की थी। मैं चाहता था कि रसिका की नींद में कोई विघ्न ना पड़े। 

रसिका के अर्धचेतन मन ने मगर, इसका नोटिस ले लिया था। उसके हाथ किसी की अनाधिकृत हरकत को रोकने वाले अंदाज से, मेरे सिर पर आए थे उसने मुझे परे धकेला था। फिर नींद में ही रसिका ने दूसरी ओर करवट ले ली थी। इससे मुझे हँसी आ गई थी। फिर मैं, स्वयं सोने की चेष्टा करने लगा था। 

अगले दिन ही मैंने अपनी शॉप में बैनर टांग दिया था। जिसमें लिखा था कि यहां “दवाओं पर बीस प्रतिशत का डिस्काउंट दिया जाता है”।

इस बात को फैलने में देर नहीं लगी थी। मेरी दुकान पर ग्राहकों की नित दिन भीड़ बढ़ने लगी थी। रसिका को मेरे द्वारा यह बात बताने पर, उसने मुझे शॉप में पीपीई में रहने को कहा था। अब तक रसिका के सामने मुझमें अपनी बौद्धिक रूप से श्रेष्ठ होने वाली मनोग्रन्थि (Superiority complex) समाप्त हो गई थी। मैंने इस समय के खतरे पर उसके विज़न को महत्व दिया था। अब मैं शॉप में दिन भर पीपीई में रहता था। 

पंद्रह दिन हुए मेरी दुकान में बिक्री इतनी बड़ी थी कि कम लाभ में व्यापार करने पर भी मेरी आय, कालाबाजारी से होने वाली आय के बराबर होने लगी थी। मैंने एक रात रसिका से कहा - रसिका अब मैं, अवैध व्यापार नहीं करने पर भी उतना ही कमा सकने में समर्थ हो रहा हूँ। 

रसिका ने खुश होकर कहा - यह कितनी अच्छी बात है। ग्राहकों की सेवा का पुण्य भी मिल रहा है और लक्ष्मी जी भी हम पर खुश हैं। 

तब मैंने दुखी होने का अभिनय करते हुए कहा - मगर इस सब में हमारे साथ, एक बात बड़ी दुखदाई हो रही है।  

रसिका ने चिंतित हो मेरा मुख देखा था फिर पूछा - क्या बात दुखदाई है? मुझे बताइए। हम अभी ही उसका समाधान खोजते हैं। 

मैंने कहा - दिन भर पीपीई में रहने और इतने अधिक ग्राहकों से लेनदेन करने में मैं बुरी तरह थक जाता हूँ। जिससे घर आने पर मुझमें, तुम्हें प्यार करने की शक्ति ही नहीं बच पाती है । 

मेरी बात सुनकर रसिका हँस पड़ी, बोली - हमारे विवाह को अब दस साल हो गए हैं। अब आप का, मेरे साथ होना ही मुझे, आपके प्यार का अनुभव करा देता है। धैर्य मुझमें है थोड़ा धैर्य आप भी रखिए। हमारे देश पर से यह संकट जल्द दूर हो जाएगा। तब तक आप अपने ग्राहकों को प्यार से दवाएं उपलब्ध कराएं। अभी यह बात ही आपके, बेटे सिद्धांत के और मेरे लिए सुखद है। 

यद्यपि रसिका का कोई अन्यथा प्रयोजन नहीं था मगर मुझे स्मरण आ गया था कि नकली दवाओं के स्टॉक सहित अगर मैं, धर लिया जाता तो आज रसिका और सिद्धांत से दूर मैं, जेल की हवा खा रहा होता। मैंने अनुभव किया कि पत्नी-बच्चे के साथ रह पाना भी प्यार ही है और सुखद भी है। 

प्यार से मैंने रसिका को अपने आलिंगन में लिया था। फिर थकान की अधिकता से उसके इर्दगिर्द, मेरी बांहो की पकड़ स्वमेव ढ़ीली पड़ गई थी। तब गहरी निद्रा के आगोश में जाने के पहले मैंने अनुभव किया था कि रसिका ने, किसी बच्चे जैसे, मेरे हाथ पाँव को व्यवस्थित करते हुए मुझे करवट से सुलाया था। फिर मुझ पर चादर ओढ़ा कर मेरे बाजू में स्वयं लेट गई थी। शायद तब रसिका मोबाइल पर कुछ पढ़ने लगी थी।      

अगली सुबह रसिका ने मुझसे कहा - सिद्धांत को खिला पिला दिया जाए और पढ़ने लिखने के कार्य सहित खाने की कुछ उसकी मन पसंद सामग्री, उसे दे दी जाए तो वह पाँच छह घंटे घर में अकेला रह सकता है। 

मैंने बोला कुछ नहीं था, प्रश्न पूछती दृष्टि से रसिका को निहारा था। उसने मेरा प्रश्न समझा था वह बोली - 

मैं यह कहना चाहती हूँ कि अभी मेरी छुट्टियाँ चल रही हैं। मैं शॉप पर रहकर आपका हाथ बँटा सकती हूँ। आपका साथ देने से, रोगियों के लिए कम दर पर दवाएं बेचने का पुण्य, थोड़ा मुझे भी मिलेगा। इससे आप पर कार्य का भार भी कुछ घट जाएगा। 

मैंने सहमति देते हुए कहा - हाँ यह ठीक रहेगा। कुछ दिनों में तुम शॉप का काम समझ जाओगी तो समय असमय आवश्यकता पड़ने पर अकेले भी दुकान का काम देख और कर सकोगी। चलो कल से 12 बजे से पांच छह घंटे के लिए, तुम शॉप पर आ जाया करना। 

रसिका ने कहा - अच्छे काम में देर क्यों करना, मैं आज से ही आ जाउंगी। 

फिर मैं पहले, शॉप पर आ गया था। लगभग दो घंटे बाद सिद्धांत को भोजन आदि करा कर और उसे पढ़ने को कार्य देकर, अपनी स्कूटी से पीपीई में रसिका शॉप पर आ गई थी। 

पहला दिन होने से मैंने, उसे दाम गणना कर, कैश या गूगल पे से भुगतान लेने के लिए काउंटर पर बिठाया था। स्वयं अध्यापन कार्य करती होने से, रसिका को यह कार्य सही और त्वरित गति से कर लेने में अधिक समय नहीं लगा था। अगले कुछ ही दिनों में उसने रैक्स में दवाएं कैसी रखी गई हैं, यह बात भी समझ ली थी। 

अब उसके सामने एक ही समस्या रह गई थी कि जो प्रिस्क्रिप्शन, प्रिंटेड नहीं होते थे और डॉक्टर की लपेटा लिखावट में होते थे उसमें से दवाओं के नाम समझने में रसिका को कठिनाई होती थी। पंद्रह दिन लगातार आने के बाद, रसिका इस कार्य में भी दक्ष हो गई थी। 

अब रसिका के सहयोग से हर ग्राहक पर लगने वाला औसत समय कम हो गया और हमारे ग्राहक संख्या में और वृद्धि हो गई थी। 

इस अवधि में कमाई तो और बढ़ी ही थी साथ ही जीवन में अब से अधिक संतुष्टि वाला कोई समय, मुझे स्मरण नहीं आता था। यह देश पर आपदा के समय में हमारी बड़ी उपलब्धि थी। 

18+ को वैक्सीन मिलने लगने से दस दिन पूर्व, बारी बारी से जाकर हम दोनों ने वैक्सीन का पहला डोज भी ले लिया था। मेरी ओर से कोई असावधानी हो जाने से, ग्यारहवें दिन मुझ पर तकलीफ आई थी। मुझे स्वास्थ्य संबंधी परेशानी अनुभव हुई थी। लक्षण कोरोना वाले होने से मैंने, अपने को घर में अपने कमरे में बंद कर लिया था। 

शॉप पर रसिका को अकेला जाना पड़ा था। हम दोनों के कोरोना टेस्ट में रसिका की रिपोर्ट नेगेटिव और मेरी पॉजिटिव आई थी। डॉक्टर से कंसल्ट करने पर उन्होंने कहा था कि ‘वैक्सीन की एक डोज’ लगी होने से, आप का कोरोना संक्रमण घर पर ही ठीक किया जा सकता है। डॉक्टर के परामर्श अनुसार मैं, घर पर निर्देशित परहेज एवं दवाओं के सेवन में रहने लगा था। तब शॉप का सारा काम रसिका को अकेले ही देखना पड़ रहा था। 

रसिका को परहित की लगन ऐसी लगी हुई थी कि हर दिन 16-16 घंटे काम करते हुए उसने रसोई, सिद्धांत, मुझे और शॉप के काम की बड़ी निपुणता से संतुलन रख देखरेख कर ली थी। 

15 दिनों बाद जब मैं कोरोना नेगेटिव हुआ तब तक देश में कोरोना दूसरी लहर पर अच्छा नियंत्रण किया जा चुका था। अब तक शॉप के सभी काम में रसिका मेरे समतुल्य ही निपुण हो चुकी थी। एक रात मैंने रसिका से कहा - 

रसिका तुम्हारा साथ मिलने से मेडिकल शॉप पर, हमारे काम और आय में काफी वृद्धि हो गई है। तुम टीचिंग छोड़ो और मेरा साथ दो। इससे हमारा जीवन स्तर बहुत सुधर जाएगा। 

रसिका ने नहीं में सिर हिलाया था। मैं हैरत में था कि रसिका, धन की ओर यूँ उदासीन क्यों रहती है। धन की तरफ वह, अन्य जैसे आकृष्ट क्यों नहीं हो पाती है। मैंने पूछा - इस इनकार का कारण मुझे बताओगी, रसिका?

रसिका ने कहा - धन के पीछा करने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो कितना ही हो जाने पर वह कभी भी पर्याप्त नहीं लगता है। मैं अभी ही हमारे पास जितना है उससे संतुष्ट हूँ। 

फिर वह कुछ कहते हुए रुक गई थी। मैंने पूछा - तुम क्या कहते कहते रुक गई हो, रसिका? 

रसिका ने कहा - आपको कारण समझाने का प्रयास करूंगी तो आप, मेरा हर जगह टीचर बन जाने का मजाक बनाओगे। 

मैंने हँसते हुए कहा - चलो बता भी दो, अभी मैं मजाक नहीं करूंगा। 

रसिका ने कहा - 

आज देश के बच्चों को समर्पित टीचर की उपलब्धता कम है। ऐसे में मैं टीचिंग छोड़ दूँ तो एक और ऐसा टीचर कम हो जाएगा। इसलिए मैं टीचिंग करते रहना चाहती हूँ। मुझे देश की नई पीढ़ी के जरिए अपने देश का कल, स्वर्णिम होते देखने की अभिलाषा है।  

उसका मुखड़ा देखते हुए मैं सोचने लगा था कि एक साधारण सी इस अध्यापिका की महत्वाकांक्षा कितनी विशाल है …  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

19-05-2021


 



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