Wednesday, May 26, 2021

बेटी ही होना …

 

बेटी ही होना … 

मैं जब कॉलेज में पढ़ता था तब साथ में पढ़ने वाली एक लड़की रागिनी से मेरे हृदय में प्रेम अनुभूति जन्मी थी। रागिनी मेरे प्रेम से अनभिज्ञ रही थी। मैंने कभी नहीं देखा था कि रागिनी किसी लड़के में, अपना दोस्त होने जैसा भी कुछ व्यवहार करती हो। 

कदाचित रागिनी के मन में किसी सहपाठी लड़के की परिभाषा, मात्र पाठ्यक्रम विषयों को लेकर चर्चा करने की ही थी। मुझे लगता था कि वह कभी किसी लड़के को अपना मित्र या प्रेमी का स्थान नहीं देती थी। 

यह समझने पर मैंने, रागिनी से उसे लेकर अपने एकतरफा प्रेम को कभी भी व्यक्त नहीं कर सका था। यद्यपि तब घर में मैं, सुबह-रात जब भी अपने अध्ययन से ऊब जाया करता तब अपने हृदय पटल पर (कल्पना में) रागिनी को ले आया करता था। अपनी जागी आँखों से देखे ऐसे सपनों में मैं, उस से अपना परिणय होना भी देखा करता था। मेरे ये सपने यहाँ पर ही नहीं रुक जाते थे। बल्कि मैं इससे आगे भी देखा करता था। मैं, रागिनी को अपनी, एक बेटी की माँ होते देखा करता था। मेरी कल्पना में, अपनी एकलौती संतान का ‘बेटी ही होना’, मेरी रागिनी के प्रति अपनी पसंद के कारण से होता था। 

समय बीता था। मेरी महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण हुई थी। 

रागिनी कभी भी मेरे मन में रहे उसके प्रति मूक प्रेम का, तनिक भी आभास नहीं पा सकी थी। इस तरह तब, रागिनी को लेकर मेरे सपनों पर विराम लग गया था। मैं अपने जॉब के लिए, अपने गृह नगर से 1200 किमी दूर महानगर में आ गया था। महानगर के लंबे चौड़े क्षेत्र में किन्हीं कामों में लगते अधिक समय और मेरे जॉब की व्यस्तताओं में, मुझे घर से औसतन 13-14 घंटे बाहर रहना होता था। ऐसे में घर पहुँच कर खुद को आराम देने के अतिरिक्त मुझे कोई विचार नहीं रह जाता था। तब वर्षों मनो मस्तिष्क पर छाई रही रागिनी, अप्रत्याशित शीघ्रता से मेरी कल्पना से बाहर चली गई थी। वह कॉलेज के बाद क्या कर रही है? कहाँ रहती है? इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं रही थी। 

फिर चार वर्ष का समय तेजी से बीत गया था। इस बीच मेरी बहन का विवाह हो गया था। बहन के विवाह के बाद मेरे मम्मी, पापा चाहते थे कि मुझे भी अब अपनी पसंद की कोई लड़की देख कर विवाह कर लेना चाहिए। 

एक दिन मेरी मम्मी ने पूछा था - बेटे, क्या कोई सहकर्मी या महानगर की कोई अन्य लड़की, तुमने अपने विवाह के लिए देखी है?

मैंने कहा था - मम्मी, कई लड़कियाँ मेरे ऑफिस में हैं। कई लड़कियाँ, कई कई बार मेरी सोसाइटी या ऑफिस-घर के बीच आने जाने में मुझे, बार बार मिला करती हैं। उनमें अच्छी भी बहुत हैं। मगर अपने व्यस्त दिनचर्या में मैं, गृहस्थी बसाने की हिम्मत नहीं कर पाता हूँ। अतः इस दृष्टि से मैंने, उनमें से किसी को देखा नहीं है। 

मम्मी ने फिर कुछ नहीं पूछा था। उन्होंने इस उत्तर में ही, अपने अनुसार अर्थ लगा लिया था। तब चार महीने बाद मैं ऑफिस में ही था तब मुझे, मम्मी ने एक लिंक व्हाट्सएप की थी। उसके साथ लिखा था - तुम्हारे लिए हमारे पास एक रिश्ता आया है। यह लिंक उस कन्या के फेसबुक की है। तुम इसमें से देख-समझ लो और अपना उत्तर बताओ तो हम, उन लोगों को अपनी ‘हाँ अथवा नहीं’ कह सकें। हमें, लड़की का घर परिवार अच्छा लगा है। 

मैं अपने कार्य में व्यस्त था। मैंने लिंक पर जाने की कोई कोशिश नहीं की थी। फिर वीकेंड आया था। मैं, उस दिन देर से सो कर उठा था। मैंने, आये हुए टिफ़िन में से भर पेट खाया था। उपरान्त मैं, फिर सो गया था। दोपहर बाद चार बजे उठा था। फिर मैंने बहुत देर तक शॉवर लिया था। तत्पश्चात तरोताजा होकर, अब क्या किया जाए सोच रहा था। तब मुझे मम्मी के व्हाट्सएप का स्मरण आया था। मैंने लैपटॉप में खोल कर, मम्मी की भेजी गई लिंक पर क्लिक किया था। 

मेरी आँखों के सामने तब जो खुला था वह मुझे सुखद आश्चर्य प्रदान करने वाला सुसंयोग था। यह लिंक रागिनी के फेसबुक प्रोफाइल की थी। फौरन ही अधिक कुछ नहीं देखते हुए मैंने, मम्मी को कॉल किया और कहा - 

मम्मी, यह लड़की मुझे पसंद है। 

मम्मी खुश हुईं थीं। फिर दो महीने में ही रागिनी और मेरा विवाह हो गया था। 

रागिनी ने अपनी कंपनी में अनुरोध करते हुए ट्रांसफर लिया था। वह मेरे साथ महानगर आ गई थी। एक दिन प्रणय सुख लेने के बाद रागिनी ने मुझसे कहा - 

मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कॉलेज बाद हम कभी फिर मिलेंगे और अगर मिलेंगे भी तो ऐसे परिणय सूत्र में आबद्ध होकर।

इस पर, ना जाने क्यों अपने मन की ना बताते हुए मैंने, रागिनी के मनमोहक रूप को देखते हुए, मुस्कुरा भर दिया था। तब मुझे लग रहा था इसके पीछे कारण कदाचित मेरा पुरुषोचित मनोविज्ञान था। जिसमें, कोई पुरुष प्रेमी होकर तो अपनी प्रेमिका से छोटा बन कर, उसके आगे पीछे घूम सकता है मगर वही, पति होकर अपनी पत्नी के सामने स्वयं को छोटा नहीं दिखा सकता है। 

दिन बीते थे। तीन वर्ष बाद हमारे घर, पुत्र ने जन्म लिया था। हमारे कॉलेज समय में, मैंने रागिनी से अपनी बेटी होने का सपना देखा था। मन ही मन मुझे निराशा हुई थी। फिर भी यह पुत्र हमारा था। अतः उस मासूम से कुछ ही दिनों में मुझे, अपने प्राणों से बढ़कर प्यार हो गया था। 

हमारे सुखमय मधुर साथ में तीन साल और बीत गए थे। एक रात मैंने, रागिनी से कहा - मेरी प्रिय रागिनी, अपनी पहली संतान बेटी होती तो मैं दूसरे के लिए कभी नहीं कहता। 

रागिनी ने आधी कही बात से ही मेरा पूरा आशय समझ लिया था। उसने, मुझे बात पूरी करने नहीं दिया था बीच में ही कहा था - 

ना बाबा, यह मुझसे नहीं हो सकेगा। और, आप भी बड़े अनूठे पति हो, सब बेटे की इच्छा करते हैं, आप को बेटी चाहिए है। 

मैं क्या कहता। तब मैंने रागिनी को, कॉलेज के समय के अपनी जागी आँखों से देखे गए सपने का सच बताया था। 

रागिनी ने तब हँसते हुए कहा - बड़े बंद किस्म के पुरुष हैं, आप! कभी आभास ही नहीं होने दिया मुझे, आपने। और तो और यह बताया भी तो विवाह होने के छह साल बाद। यदि पहली ही, हमारी बेटी हो जाती तो मुझे लेकर अपने तब के प्यार की बात, आप शायद मुझे जीवन भर नहीं बताते। आप के मन में यदि यह भय है कि कुछ कहने-करने से आप मुझसे छोटे हो जाएंगे तो उसे त्याग दीजिए। मैं जीवन में कभी आपको, अपने सामने छोटा नहीं पड़ने दूँगी। 

मैं झेंपते हुए हँसा था। मैंने उत्तर दिया - रागिनी, आप ऐसी लड़की थी कि आपमें गरिमा बोध (डिगनिटी) देख कर मैं तो क्या कोई अन्य लड़का भी, आपसे ऐसा कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता था। मुझे, आपसे, आपकी जैसी ही एक अपनी बेटी चाहिए है।  

रागिनी ने इसे अपनी प्रशंसा की तरह लिया था। अपनी प्रशंसा भले किसे पसंद नहीं होती है। वह बहुत खुश हुई थी। साथ ही लजा भी रही थी। उसने अपना सिर मेरे सीने में छुपाया था फिर कहा - 

अगर दूसरा भी बेटा हुआ तो फिर आप, मुझसे अगले बच्चे की नहीं कहना। 

मैं रागिनी की इस स्वीकारोक्ति से खुश हुआ था। मैंने कहा - 

हाँ प्रिय, यह एक ही बार है। ऐसा ना हुआ तो भी मैं फिर नहीं कहूंगा। माय प्रॉमिस। तब आपकी और देश की सोचते हुए मैं, अपनी अपूर्ण रह गई एक अभिलाषा मानते हुए उसे त्याग दूँगा। हमारी जनसंख्या चीनियों से अधिक हो जाए ऐसा मैं कभी नहीं चाहूंगा। मैं जानता हूँ की भारत से क्षेत्रफल में चीन तिगुना बड़ा है। 

समय बीता था। 

आज रागिनी प्रसूति कक्ष (लेबर रूम) से अस्पताल के कमरे में लाई गई तो प्रसव वेदना सहन करने के बाद अत्यंत थकी हुई थी। वह मुझे सामने देखते ही बोली - भगवान नहीं चाहता तो यह मुझसे नहीं हो पाता कि मैं बेटी को जन्म देती। अब आप खुश हो जाओ कि आज मैंने, आपको एक बेटी ला दी है। 

मैंने रागिनी के माथे पर हाथ रखते हुए प्यार से देखा था। फिर कहा - 

मेरी प्रिय रागिनी, भगवान भी चाहते तो मुझे बेटी नहीं दे सकते थे अगर आप तैयार न हुईं होतीं। 

रागिनी मुस्कुरा दी थी। फिर होंठों पर प्यारी मुस्कान लिए हुए ही, उसने आँख मूँद ली थी थी। अब वह सोना चाहती थी ... 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

26-05-2021


        

 

         


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