Friday, May 8, 2020

शायद यह हमारे पूर्वाग्रह हैं जिसमें हम कोई न कोई मुद्दा बनाकर सरकार के तरफ अँगुली उठाया करते हैं। सरकार कोई भी हो, उसके किये को अनदेखा करते हुए जो वह नहीं कर पा रही है उसे लिख/कह देना आसान होता है। 
हम, हमेशा इस देश के प्रति अपने दायित्वों से उदासीन रहते हैं। दायित्वों की बात हो तो हममें से हर किसी की अपेक्षा यह होती है कि उसे हमारे अलावा हर कोई निभाए। ऐसे ही औरों का मुँह देखते हुए फिर अधिकाँश हम अपने समाज दायित्व निभाते ही नहीं है। जिससे इस देश में जीना, हमें मजबूरी सा लगता है।
अगर हम ही अपनी राष्ट्र निष्ठा बढ़ाएं तो देश की सरकार भी ज्यादा अच्छी हो सकती है।
अन्य शब्दों में ऐसा लिखा जा सकता है कि सरकार में शामिल जन प्रतिनिधि हममें से ही कोई होते हैं, जब सभी नागरिक राष्ट्रनिष्ठा को सर्वोपरि रखेंगे तो कोई भ्रष्टाचार, कोई मिलावट, कोई अन्यायपूर्ण मुनाफाखोरी करने की भावना न रखेगा। जब सबकी ऐसी भावना रहेगी तो जन प्रतिनिधि भी अच्छे होंगे।
हमें याद रखना होगा 100 में 5-10 चोर उचक्कों को तो कोई सिस्टम सही रास्ते पर ला सकता है। लेकिन ऐसे लोग जब 100 में 70-75 हो जायें तो उन्हें सिस्टम सुधार नहीं सकता, अपितु सिस्टम भी ऐसा ही हो जाता है।   
रहा प्रश्न उन करुणाजनक दृश्यों का जो अभी बढ़ी अफरा तफरी में कुछ ज्यादा दिखाई पड़ रहे हैं, तो हमें यह समझना होगा कि ऐसे हृदय द्रवित करने वाले दृश्य जब कोरोना विपदा नहीं थी, तब भी होते थे। तब भी होते थे, जब यह सरकार नहीं थी। तब भी हुए थे, जब कुछ व्यक्तियों की सत्ता लोलुपताओं में यह देश बँट गया था।
आशा है हम सभी कुछेक दृश्य को देखने की जगह हालात को समग्रता में देखेंगे। और हम क्या कर सकते हैं ऐसे, अपने सामर्थ्य की पहचान करेंगे। जिस दिन हम अपने सामर्थ्य अनुरूप अपने कर्म एवं व्यवहार करने लगेंगे, देश के समक्ष समस्यायें चौथाई रह जायेंगी। जिसे सरकार, न्यायपालिका और कार्यपालिका सुधार सकने में समर्थ हो जायेगी।   

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