Monday, May 25, 2020

मजदूर की विदुषी पत्नी ..

मजदूर की विदुषी पत्नी ..

दिन भर खिन्न रही सरोज ने, जगन को रात में देवरानी की कुयें पर दिये ताने की बात बताई।
इतनी लंबी दूरी से थकी माँदी गाँव पहुँची पत्नी पर, बहू के मर्माहत करने वाले शब्द बाणों के प्रहार की जानकारी से, एकबारगी तो जगन को क्रोध आया। फिर उसने खुद को नियंत्रित किया। सरोज की मनोव्यथा का अनुमान करते हुए उसने, पहली जरूरत उसके आहत मन पर, प्यार-व्यवहार की मलहम से राहत, पहुँचाने की समझी।
इसी भावना से जगन ने कहा- दस साल पहले गाँव से मैं, मुंबई गया था तो कारण कुछ मायानगरी का आकर्षण था और कुछ अधिक धन कमाने का सपना। वहाँ रहते हुए मैंने, एक बड़ा अंतर अनुभव किया है।
सरोज को सुनने की जिज्ञासा हुई, उसने अपनी व्यथा पर से ध्यान हटा, पूछा- कैसा अंतर?
जगन ने उत्तर दिया- यहाँ की धीमी जीवनशैली में, लोगों का अधिकाँश समय में, दिमाग खाली रहता है। जिसमें, संकीर्णता रूपी शैतान घर कर लेता है। उस शैतान को, खुद की ढँक - दूसरों की उघाड़ने में, बड़ा आनंद आता है। बहू का ऐसा ही शैतान, खुद अपने को देखने की जगह, तुम्हें देख रहा, लगता है।
सरोज (सहमति में सिर हिलाते हुए) - जी, मुझे भी यही लगता है। जबकि मुंबई की तेज भागती ज़िंदगी में, लोगों को दूसरों की तो छोडो, खुद अपनी ही को, देखने का समय नहीं!
जगन (पत्नी के सामने ज्ञानी दिखने की कोशिश सहित) - हाँ, यह विपरीत दो बातों की पराकाष्ठा है। गाँव, छोड़ने में यह बात ही सर्वाधिक राहत देती है कि यहाँ, लोग अपनी संकीर्ण सोच और अपने मूर्खता पूर्ण अंधविश्वास, औरों पर लादते हैं। इससे हम मुंबई में रहते हुए मुक्त रहते हैं। जबकि मुंबई में, किसी की मूर्खता और अन्धविश्वास को, उसकी समस्या मान कर झटक दिया जाता है।
(फिर जगन को तसल्ली होती है कि सरोज का ध्यान उसने बातों में बँटा दिया है फिर आगे कहा) - हालात ठीक होने दो, हम डॉक्टरी जाँच करवाएंगे। आज बच्चे न हो पाने की बात, कोई बड़ी समस्या नहीं।
इस पर सरोज ने बोला - नहीं, मुझे आपमें कोई कमी नहीं दिखती और रहा सवाल मेरा तो मुझे, अब निपूती रहना ही पसंद होगा।
जगन को लगा कि देवरानी के ताने से सरोज कुछ ज्यादा कुपित है। उसने कहा - अरे सरोज, किसी मूरख की बात, ऐसे दिल पर लेना ठीक नहीं।
सरोज ने उत्तर दिया - नहीं, मेरे निपूते रहने की चाहत का, देवरानी की बात से कोई ताल्लुक नहीं है।
जगन (उत्सुकता से) - तो फिर क्या बात है?
सरोज- पिछले कई दिनों लगातार चलते चलते, मेरे दिमाग में कई बातों को लेकर मंथन चलते रहे हैं। इसे, कोरोना से मिली विपरीत परिस्थितियों में मेरा कोरोना जनित ज्ञान कह सकते हैं। (फिर कुछ पलों की चुप्पी के बाद फिर कहती है) 
मैंने सड़कों पर हम लोगों की, लाचार भीड़ देखी है। हम हर जगह याचना से हाथ फैलाते आये हैं। हमारी गरजी में, हम औरतों के माँसल अंगों को निहारते हुए प्रदाताओं की आँखों में, मैंने वासना के डोरे देखे हैं। यही नहीं, सटे सटे सफर में, हमारी ही भीड़ के गैर मर्दों ने, पेट भर जाने के बाद, हम पर कामुकतापूर्ण हरकतें की हैं। 
जगन (विचार पूर्ण मुद्रा में) - भीड़ की इन खराबियों से, बच्चों का क्या संबंध है?
सरोज- संबंध है, मैं बताती हूँ, पर यदि आप, बुरा न मानें तो एक बात आपसे पूछूँ?
जगन (तत्परता से) - हाँ-हाँ, पूछो। 
सरोज (उत्सुकता से जगन को निहारते हुए) - आप शराब नहीं पीते और हम जैसे परिवार में औरों के मर्द जैसे, नशे की हालत में, मुझे आपने कभी पीटा नहीं, इससे हिम्मत करते हुए मैं जानना चाहती हूँ कि भीड़ में, दूसरी औरतों, लड़कियों के साथ, क्या आप भी ऐसा ही करते हैं?
जगन (तर्क पूर्ण स्वर में) - जब तुम्हारे साथ दूसरे ऐसा करते हैं तो, उनकी औरतों के साथ, मैं ऐसा क्यों ना करूँ?    
सरोज (किसी विदुषी सी मुद्रा में) - यही मानसिकता तो दुरुस्त नहीं। ऐसे ही तो हम औरतें, हर किसी के दैहिक शोषण को अभिशप्त हैं। 
जगन विचार करने लगा। उसे लगा कि उसने गलत कह दिया है। उसे अपनी स्थिति असुविधाजनक अनुभव हुई। वह चुप ही रहा तब सरोज फिर कहने लगी - 
मैं ऐसी निम्न मानसिकता वाली, याचना से फैलाये हाथों सहित, हर जगह मुफ्त और सब्सिडी की अभिलाषी भीड़ तथा नारी उत्पीड़न देने वाली पुरुष भीड़ या सहने वाली नारियों की भीड़, अपने तरफ से नहीं बढ़ाना चाहती। इसलिए निपूती ही रह जाना चाहती हूँ। 
(फिर कुछ रुककर, प्रश्न पूर्ण से जगन को निहारते हुए) अगर हम निपूते रहें तो, क्या आपको बुरा लगेगा?
जगन सोचने लगा कि एक तरफ धनाढ्य लोगों में, भोग-उपभोग प्रधान जीवनशैली के कारण, बच्चे पैदा नहीं करने का विचार हावी हुआ है। इसके विपरीत ऐसा न करने का, सरोज का विचार ज्यादा तार्किक है। जिसमें नकारात्मकता नहीं है। फिर बोला-
बात ऐसी नहीं, जब हम लोगों के हाथ पैर चलने योग्य न रहेंगे। तब क्या होगा, यह तो सोचना पड़ेगा ना!
सरोज (उत्साह में भरकर) - हम अनाथाश्रम से किसी बच्चे को ले आएंगे। उसके सिर पर अपना हाथ रखेंगे। उसे रही उपेक्षा को दूर करने का परोपकार करेंगे। और कोशिश करेंगे कि उसे, इस योग्य बनायें कि वह मुफ्त या सब्सिडी का अभिलाषी न हो। साथ ही वह बेटी नहीं यदि बेटा हो तो नारी को आदर देने वाला बने, उसका शोषक नहीं। 
अपने को कम बुध्दिमान अनुभव करते हुए खिसियाये से जगन ने कहा - कहती तो तुम ठीक हो!
फिर जगन सो गया और सरोज आगे के जीवन के सपने सजाने लगी ..

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-05-2020

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