Saturday, May 30, 2020

परामर्शदात्री ..

परामर्शदात्री ..

गाँव में सरोज को यूँ ख्याति मिलने लगी थी कि वह, औरतों-लड़कियों की भलाई की फिक्रमंद एवं सुलझे विचार रखने वाली, स्त्री है। ऐसे में ही एक दिन, एक 14-15 वर्ष की लड़की उसके पास आई।
उससे बोली- चाची, मुझे आप से बात करनी है।
सरोज ने कहा- बताओ।
वह बोली- चाची, मेरा नाम अनुपमा है। मुझे जो कहना है वह अकेले में कहना चाहती हूँ।
गर्मी के दिन होने से दोपहर में बच्चे सोते हैं और घर के मर्द काम काज में बाहर गए होते हैं। उस समय को उपयुक्त मानकर, सरोज बोली- ठीक है, तुम आज दोपहर, दो बजे आओ।
अनुपमा बोली- ठीक है चाची, मैं दोपहर दो बजे आती हूँ। आज मेरे स्कूल की छुट्टी भी है।
जब अनुपमा, दोपहर सरोज के घर पहुँची तब बच्चे सोये हुए थे। सरोज ने, नीलम को उनके पास लेटने के लिए कहा और खुद अनुपमा के साथ, आँगन में लगे आम के वृक्ष की छाया में, चबूतरे पर दरी बिछा कर, अनुपमा के साथ आ बैठी।
अनुपमा सकुचाते हुए कहने लगी- चाची, आप किसी से कहना नहीं, मुझे एक परेशानी पर आप से सलाह चाहिए।
फिर दोनों के बीच का वार्तालाप यूँ हुआ-
सरोज: अनुपमा, तुम चिंता न करो और बिना भय के, जो मन में है सब कहो।
अनुपमा: चाची, पिछले 15-20 दिनों से जब मैं, साइकिल से सहेलियों के साथ स्कूल जाती-आती हूँ तब रास्ते में रविंद्र नाम का एक 20 साल का युवक रास्ते में खड़ा मिलने लगा है। सहेलियों ने मुझे बताया कि वह तुझे देखा करता है तो मैं भी उसे देखने लगी। वह सुंदर और अच्छे कपड़ों में होने से, मुझे अच्छा लगने लगा। दो दिन पहले, मैं स्कूल से लौटते हुए, एक सहेली के घर टीचर का दिया, गृहकार्य को करने के लिए रुक गई थी। बाद में, मैं जब अकेली लौट रही थी, तो रविंद्र ने, वीरान रास्ते पर 1 जगह, अपनी बाइक मेरे साईकिल के सामने अड़ा कर रोकी। और मुझसे कहने लगा, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम शाम के समय मेरे खेत पर आना, मैं तुम्हें मोबाइल पर, प्यार वाली अच्छी फिल्म दिखाउंगा।
उसकी इस हरकत से मैं सकपका गई। मैंने हाँ, आऊँगी कह कर पीछा छुड़ाया। फिर डर के मारे, मैं कल स्कूल भी नहीं गई। चाची, आप बताओ, मैं इस समस्या से कैसे बचूँ? (फिर कुछ रूककर, आगे बोली)  चाची, सब नाराज होंगे इसलिए मैंने घर में किसी को, यह सब नहीं बताया और किसी सहेली को भी नहीं बताया है।
तब, अनुपमा चुप हुई तो कुछ मिनट सरोज भी चुप रही। अनुपमा, सरोज की शक्ल देखते रही और सरोज इस उम्र की लड़की के मनोविज्ञान की समझने की कोशिश करते हुए सोचने लगी कि कैसे उसे समझाया और परामर्श दिया जाये। 
फिर सरोज ने कहना आरंभ किया-
तुमने अच्छी समझदारी दिखाई है, अनुपमा! वास्तव में समस्या आरंभ होते ही सुलझाना आसान होता है जबकि बढ़ने पर कठिन हो जाता है। तुमने ऐसे समय उपाय खोजना शुरू किया है, जब परेशानी छोटी है या यूँ कहें कि अभी परेशानी ही नहीं है।
(यह अनुपमा के डर को दूर करने और उसका आत्मविश्वास बढ़ाने की दृष्टि से सरोज ने कहा, जबकि सरोज सोच रही थी कि अनुपमा ने रविंद्र से आँखे मिलाने की गलती की है, जिससे रविंद्र को यह हौंसला मिला कि उसे खेत पर बुलाने का दुस्साहस करने लगा)
अनुपमा खुश हुई, पूछने लगी कि-  फिर क्या करना चाहिए? 
सरोज: तुम कल से स्कूल जाओ। सहेलियों को साथ रखो। और जहाँ आभास हो कि रविंद्र आसपास है या पीछे है, तुम सतर्क रहो मगर, प्रत्यक्ष में यह दिखाओ कि तुमने उसे देखा नहीं है। 
अनुपमा : यदि वह रोकने लगे तो? 
सरोज : मुझे नहीं लगता कि सहेलियों की उपस्थिति में वह ऐसा कुछ कर पायेगा। अगर तब भी यह दुस्साहस करे तो उसे कह देना कि मैंने, घर में तुम्हारी बात बताई है तो मुझे, डाँटा गया है और तुमसे मिलने को मना किया गया है। 
अनुपमा (चिंता से) : मगर उसने सबके सामने, कोई जबरदस्ती की तो मेरी बदनामी हो जायेगी। 
सरोज : नहीं, अभी बदनामी जैसा कुछ नहीं है। तुमने उसके बुलावे पर खेत नहीं जाकर ऐसे खतरे से स्वयं को बचा लिया है। (फिर प्रश्न के लहजे में) अनुपमा, तुम टीवी में, क्या देखती हो?
अनुपमा : जो फिल्में आतीं हैं मुझे वह देखना अच्छा लगता है। 
सरोज : अनुपमा, अभी फिल्में देखना बंद कर दो। फ़िल्में किशोरवय बच्चों के मन को हवा देतीं हैं और अगर खेत पर तुम चली जातीं तो रविंद्र तुम्हें वो दिखाता जो तन को हवा देती हैं। और ऐसा होता तो यह बदनामी की बात हो सकती थी। 
अनुपमा: (विचारणीय मुद्रा में) - चाची, वह क्या? 
सरोज : अनुपमा, आजकल ऐसी सामग्री बहुत है जिनसे दैहिक उत्तेजना पैदा हो जाती है। वह सब, इस उम्र के बच्चों के लिए फिल्मों से ज्यादा ख़राब है। एकांत में किसी युवक द्वारा, तुम जैसी किसी कम वय किशोरी को, बुलाने की नीयत, कोई अच्छी नहीं होती है। वह पक्का तुम्हारे शरीर से खिलवाड़ करता। फिर तुम्हारी इस गलती को, सबको बताने के नाम पर, तुम को आगे भी, अपनी मनमानी को बाध्य करता। अगर ऐसा हो गया होता तब, तुम्हारी बदनामी वाली बात हो जाती।
कोई हमारे अकारण, हम पर आ पड़े तो इसमें, हमारा कोई दोष नहीं होता है। तुम, पढ़ने के लिए ही तो घर से निकल रही हो। किसी लड़के को आमंत्रित नहीं कर रही हो, तुम निर्भय रहो। 
अनुपमा ने यूँ सिर हिलाया कि जैसे उसे सब समझ आ गया है कि, उसने बदनामी जैसा कोई काम नहीं किया है। वह बोली- चाची, आप बहुत अच्छी हैं।
(तब, एक स्टेज की वक्ता की भाव भंगिमा सहित ओजस्वी स्वर में) सरोज: बेटी, अब हम चेतना बढ़ाकर यही बदलाव लायेंगे। हमें, अर्थात स्त्रीजात को, मर्दजात जबरन अपनी ख़राब नीयत की जद में लेता है तो भी समाज में बदनामी, हमारी होती है। दोष ऐसे खराब मर्द का कम, हमारा ज्यादा बताने की, ये सामाजिक व्यवस्था पक्षपात पूर्ण है।
अगर कोई युवती ऐसे बदनीयत मर्द का प्रतिरोध करती है तो उसे सबक सिखाने के लिए हैवानियत पूर्ण एसिड अटैक की प्रवृत्ति, हम पर मानसिक दबाव और बढ़ा देती है। अगर, रूप और हमारा यौवन काल है तो इसमें, हमारा दोष कुछ नहीं होता है। फिर क्यों, हम नारी, अपने में छिपी-दुबकी रहने को बाध्य रहें?
अब हम बदलाव लाएंगे। आगे से बदनाम वह पुरुष ही होगा, जो हम पर यूँ बदनीयती से हाथ डालने की कोशिश करेगा। हम निर्दोष होते हुए अब और नहीं दबेंगे।
ऐसे सामाजिक बदलाव अब आरंभ हो चुके हैं। आशा है, जल्द ही पूरे समाज में मूर्तरूप ले लेंगे। तब तक लड़कियों को सावधान रहना है।
लड़कियों को अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना है। किसी लड़के की शक्ल एवं दौलत के प्रति आकृष्ट होने से बचना है। उसे वह मौका नहीं देना है, जिसे समाज गलत मानता है। अर्थात ख़राब लोगों के बहकावे में, खुद पर, उन्हें शारीरिक शोषण के मौके देने की गलती नहीं करना है।
ऐसी गलती से कोई लड़की उनके ब्लैकमेलिंग के जाल में फँस जाती है और अपना जीवन दुरूह कर लेती है। ऐसे जाल में उलझना, अपने पर विकट समस्या ले लेना होता है। ऐसा होने पर लड़की का प्रतिरोध, उस पर एसिड अटैक की आशंका उत्पन्न करता है तथा ख़राब उद्देश्य से बना लिए गए, अश्लील वीडियो के पब्लिश किये जाने से, लड़की को अवसादग्रस्त जीवन जीने को मजबूर करता है।
अब हम वह बदलाव लाएंगे जिनमे ऐसे वीडियो में संलिप्त पुरुष को ही दोषी माना जायेगा एवं समाज में बदनामी लड़की की नहीं, उस व्यभिचारी युवक/लड़के की होगी।
हमें, इस हेतु आरंभ अपने भाई, पति और बेटे के सही सँस्कार और न्यायप्रियता की शिक्षा/प्रेरणा से करना है ।
किसी लड़की पर बुरी नीयत रखने वाला, ऐसा कोई लड़का या पुरुष हम जैसे घर का ही भाई, बेटा या पति होता है। ऐसी बुरी नीयत रखने वाला कोई पुरुष, किसी विशिष्ट वर्ग से नहीं होता अपितु हम जैसे परिवारों में ही होता है। जो छिपे रूप में, अवैध संबंध की जद में, किसी लड़की या युवती को लेता है। 
(अब, सरोज का स्वर धीमा होता है, आगे कहती है)
बेटी, तुम जाओ और जैसा तुम्हें बताया है उस अनुसार ही तुम करो। और कोई बात होती है तो तुरंत मुझे आकर बताओ। अगर रविन्द्र कोई जबरदस्ती पर आता है, यद्यपि इसकी संभावना नहीं है, मगर वह ऐसा करता है, तो आगे क्या जरूरी है हम करेंगे।
और हाँ अब तक जो हुआ है उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। तुम अपने मम्मी-पापा को भी, यही सब आज बता दो।
वास्तव में, किसी बच्चे के मम्मी-पापा, उसके सबमें बड़े हितैषी होते हैं। बच्चे उनसे छुपा लेने की गलती करके ही, अपने पर ज्यादा बड़ी तकलीफ बुला लेते हैं। 
फिर सरोज चुप हुई।
सभी बातें तन्मयता से सुन रही, अनुपमा, अब विचारों में लीन सी दिख रही थी, बोली चाची- आपने मेरा साहस बढ़ा दिया है। मैं, व्यर्थ ही इसे अपनी भूल मान, ग्लानि बोध से भर रही थी। जबकि यह रविन्द्र की खराबी है। मैं अब, सब आपके बताये अनुसार ही करूंगी।
तब सरोज ने, ममता उसके सिर पर हाथ फेरा, फिर अनुपमा मुस्कुराते हुए चली गई थी।
सरोज सोचने लगी थी- मालूम नहीं यह छोटी सी लड़की, उसके भाषण तरह की बातें, कितनी समझ सकी है ..         
     
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
30-05-2020

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