Friday, May 15, 2020

हेतल और मेरा दिव्य प्रेम .. (1)

हेतल और मेरा दिव्य प्रेम  .. (1)

बात उन दिनों की है जब मैं, 21 वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हुआ था। मैं लुधियाना का रहने वाला था। मेरी शुरूआती तैनाती, लद्दाख सीमा पर हुई थी। यहाँ का वातावरण, ना तो देश के अन्य भागों जैसा प्रदूषित था और ना ही यहाँ भीड़भाड़, गहमागहमी थी।
वैसे तो यह उम्र अत्यधिक जोश खरोश की होती है। लेकिन ड्यूटी के पहले और बाद के समय में, मुझे प्रकृति से साक्षात्कार के साथ ही, उसकी अनुभूति करने में ज्यादा आनंद मिलता था।
यहाँ मेरे फौजी साथी, जब ड्यूटी के अतिरक्त, मिला समय, अपने अन्य शौक में बिताते थे। तब मेरे दिमाग में जीवन के स्वरूप को, समझने के चिंतन-मनन चला करते थे।
जीवन की ऐसी जिज्ञासा ने, मुझे पास की पहाड़ी के निर्जन स्थान पर, एक कुटीर में तपस्यारत एक साधू से, सानिध्य कराया था। मैं अपने फ्री समय में, उनके पास पहुँच जाता और अपने दिमाग में उत्पन्न प्रश्न, उनसे किया करता था।
मेरे प्रश्नों के प्रकार से, उनकी मुझ में रूचि हुई थी। ऐसे में लद्दाख की, तीन साल की अपनी पोस्टिंग में, मैंने ना सिर्फ अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अपने दायित्व निर्वाह की भावना से प्रभावित किया, अपितु उन सिध्दहस्त महात्मा से एक अद्भुत शक्ति प्राप्त कर ली।
मुझमें इस शक्ति के आ जाने से, मैं जीवन में किसी एक व्यक्ति के और अपने शरीर में, समागत आत्मा को, क्षणांश में अदल-बदल कर सकने की विद्या अर्जित कर सका था। ऐसा कर देने पर, उस व्यक्ति की आत्मा, मेरे तन में और मेरी, उसके तन में रह सकती थी।
ऐसा मैं उस, एक व्यक्ति के साथ, आजीवन और अनेकों बार कर सकता था। मुझे इस शक्ति के होने से, अदला बदली के इस कार्य पर, नियंत्रण मेरी आत्मा को था। अर्थात जिस व्यक्ति से, मैं रूह का ऐसा आदान-प्रदान करता, उस व्यक्ति की मूल आत्मा को, यह शक्ति नहीं मिलती थी। यह सामर्थ्य एक पक्षीय (One sided) था।
उन महात्मा पुरुष ने, मुझे सोच समझ कर, उस एक व्यक्ति को चुनने का निर्देश दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि मुझे, अपना ऐसा शक्तिवान होना पूर्णतः गुप्त रखना था, अपने उस चयनित व्यक्ति से भी, इसे राज ही रखना था, अन्यथा मुझमें यह शक्ति नहीं बचेगी।
लद्दाख में रहते हुए, मैंने वह व्यक्ति तय नहीं किया था। लद्दाख के बाद हेडक्वॉटर से, मुझे कच्छ सीमा पर तैनाती के आदेश दिए गए थे। लद्दाख से बिलकुल अलग, लेकिन प्रकृति का संग, यहाँ भी मेरी आनंदाभूति का कारण था।
तब, दुर्भाग्यजनक रूप से, 7.7 रेक्टर तीव्रता के भूकंम्प में, वहाँ हृदयविदारक तबाही मचाई थी। जिसमें, बीस हजार लोग, काल कवलित हुए थे एवं लाखों बेघरबार हुए थे।
हमें (सेना को) भी, इस आपदा पीड़ितों के बचाव कार्य में, लगाया गया था।
बचाव कार्य के दौरान ही, एक रूपसी कन्या से मेरी भेंट हुई थी। उसके परिवार के सभी सदस्य, उनके गृह के धराशाई होने से दबकर मारे गए थे।वह अनाथ और बेघर हो गई थी। उसे उपचार हेतु, हमने सेना के अस्पताल में, भर्ती कराया था। उसके स्वस्थ होने पश्चात, उसे राहत शिविर में पहुँचाया गया था।
वह रूपसी युवती, तब 22 वर्ष की थी और मेरी उम्र तब 26 थी। उस रूपवान लड़की ने अपना नाम, हेतल बताया था। परिवार को खोने और खुद घायल होने के कारण, हेतल की, मानसिक और शारीरिक वेदना, मुझसे देखी नहीं जाती थी।
मेरे मन में करुणा उत्पन्न होती थी कि इस कोमलांगी पर, भगवान ने इतनी भीषण वेदना क्यों बरपाई थी। मैंने अनुभव किया था कि मुझे, हेतल से प्यार हो गया था। उसके प्रति जन्मे प्रेम से, मेरी भावना यह हुई कि हेतल के कष्टों को मैं सहन कर लूँ, जिससे वह खुश रह सके। उसे प्रसन्न रखना मैंने, हेतल से अपने प्रेम के प्रति कर्तव्यबोध जैसा, अनुभव किया था।
हेतल से अनुभूत प्यार और उससे मेरी संवेदना ने मुझे तब, अपनी अद्भुत शक्ति का स्मरण दिलाया था। यहाँ, मैंने वह एक व्यक्ति तय कर लिया था, जिससे मैं अपनी और उसकी आत्मा का अपने शरीरों में अदला बदली करता।
ऐसा तय कर चुकने के बाद से, अपनी शक्ति के बल पर, जब जब मैं अपनी सैन्य कर्तव्यों को कर चुकता तब, हर दिन-रात, मैं, रूह की अदला बदली कर लेता था।
उस समय, अपने मकान के मलवे में दब घायल हुई हेतल को, शारीरिक कष्ट एवं अपने सभी को खो देने से भीषण मानसिक वेदना थी। ऐसे में हम दोनों की आत्माओं का परस्पर बदले जाने से उसे, उतने समय के लिए, इन वेदनाकारी कष्टों से, छुटकारा मिल जाता था।
वास्तव में हम सभी आत्मा और उसके शरीर संयोग से एक मनुष्य विशेष जाने जाते हैं। एक मनुष्य में, आत्मा उसके ज्ञान को, अपने में समाती है। शरीर सुख दुःख का भोगी होता है।  तथा शरीर संयोगों से, उसके हृदय में होने वाली अनुभूतियों का ज्ञान आत्मा को होता है।
ऐसे में जब हेतल के शरीर में मेरी आत्मा होती, उसकी दुखद अनुभूतियों का ज्ञान मेरी आत्मा में, समाहित होता था।
उसी समय हेतल की आत्मा, मेरे शरीर में होने से, इस कष्टकारी ज्ञान से मुक्त रहती थी।
इस तरह मेरा ऐसा किया जाना, प्रत्येक दिन के कुछ घंटों में, उसे दर्द से निजात दिलाता था। उसके दर्द और दर्दनाक अनुभूतियों को, उसके शरीर में होने से, मेरी आत्मा, सहन करती थी।
मेरे द्वारा आत्मा की यह अदला बदला, उसे मालूम नहीं थी। इसलिए जब मेरे शरीर की अनुभूतियाँ होती तो उसे अचरज होता था। राहत शिविर में वहाँ, उसके कोई अपने नहीं थे, जिनसे ऐसी विचित्र बात को वह शेयर कर सकती।
तीन माह में उसके दुःख काफी कम हए थे। तब मैंने यह अदला बदली बंद कर दी थी। तीन माह तक प्रत्यक्ष में, मेरे द्वारा, अपनी देखरेख को समझ, मेरे प्रति उसके हृदय में भी प्रेम बीज पनप गया था।
मैंने तब, अपने परिवार में उससे विवाह की इक्छा बताई थी। उसकी फोटो से पसंद करके और मेरी चाहत का सम्मान करते हुए, उन्होंने मुझे अपनी ओर से सहमति दे दी थी। तब हेतल से मैंने विवाह का प्रस्ताव किया था।
वह अनाथ हो गई थी और यूँ ही राहत शिविर में कितना और रहना पड़ेगा इस प्रश्न से, अत्यंत परेशान तो थी ही। अतः मेरे प्रस्ताव में, उसे अपना हित दिखाई दिया था। हेतल ने मुझसे विवाह करना स्वीकृत कर लिया था। उसकी स्वीकृति मिलने के बाद, मेरे घरवालों ने, परंपरागत रीति से, हमारी विवाह रस्म संपन्न करा दी थी।
इस तरह भूकंप का आना, परिजन को खो देने की दृष्टि से उसके लिए पीड़ादायी दुर्योग हुआ, तभी, मुझसे विवाह एक सुखद संयोग भी साबित हुआ था। हम विवाह पश्चात के साथ में, बहुत प्रसन्न रहते थे।
विवाह के बाद, एक रात्रि हेतल ने बताया कि उसने मुझसे विवाह इसलिए सहमत नहीं किया कि वह अनाथ या बेसहारा थी। मुझे, उसने बताया कि भूकंप में जब वह घायल हुई और अपने परिजनों को वह खो चुकी तो, उसे विशेष रूप से मुझसे, किसी परिजन की तरह देखरेख और अनुराग मिला था। आगे उसने बताया, इन से भी बढ़कर, एक और कारण था, जिसे बताने पर मैं शायद यकीन न करूं।
तब मैंने पूछा था- ऐसी कौनसी बात है, जिस पर मुझे विश्वास न हो सकेगा?
तब हेतल ने बताया था कि उन दिनों, जब तब उसे ऐसा लगता था, जैसे कि उसे मेरे शरीर, उसमें हृदय अनुभूतियाँ और मेरे हृदय की भावनाओं का ज्ञान होता था। ऐसे ही समय में, अपने को लेकर हेतल ने मेरी हार्दिक भावनाओं और मेरे उसे लेकर प्यार और फ़िक्र का अनुभव किया था। ऐसा अनुभव कर लेने पर ही, जब मैंने प्रस्ताव किया तो, उसने इसे सहर्ष स्वीकार किया था।
हेतल ने फिर मुझसे पूछ लिया था कि आप बतायें, क्या इस पर आपको विश्वास है? क्या आप मानते हैं, ऐसा संभव है?
यह सुनकर मैं अचकचा गया था, मैंने अपने भाव छुपाये थे और फिर कहा था, जब किसी से किसी को, दिव्य प्रेम हो तब ऐसा संभव हो सकता है। मेरे कहने में, मेरे स्वर का अजीब होना, खुद मैंने अनुभव किया था।
शंकित सा तथा विचारों में तल्लीन होने वाला भाव तब, हेतल के मुख पर दिखाई पड़ा था, जिससे वह और भी प्यारी और ज्यादा सुंदर लग रही थी। मगर उसने, फिर आगे मुझसे कुछ नहीं कहा था।
उन दिनों मेरे विचारों में एक ही भावना प्रधान रहती थी कि आगामी जीवन में, मुझे हेतल के सामने अपना आदर्श प्रेम सिध्द करना था। मुझे अपनी, अद्भुत अनूठी शक्ति पर विश्वास था कि इसके बल पर, मैं स्वयं में, उस कल्पित प्रेमी को साकार कर सकूँगा जो अपनी प्रेमिका से उसकी ख़ुशी के लिए आसमान से चाँद तारे तक ला देने के वादे करता है।
(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
16-05-2020

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