Monday, May 18, 2020

हेतल और मेरा दिव्य प्रेम .. (3)

हेतल और मेरा दिव्य प्रेम .. (3)

अपने दो बच्चों के बड़े होते जाने के साथ, मेरा और हेतल का समय अत्यंत प्रसन्नता से गुजर रहा था। इस बीच मुझे सेना में विभिन्न अवसरों पर अपने पराक्रमी प्रदर्शन से, पहले कीर्ति चक्र और बाद में महावीर चक्र का सम्मान मिला था।
पिछले इन 10 वर्षों में मेरे मोर्चे पर होने के समय, के अलावा हेतल को सर्व अनुकूलतायें मिली हुई थीं। अतः इस दौरान मैंने, अपनी शक्ति का प्रयोग भी नहीं किया था।
तब हमें खुशहाली की आदत हुई थी। हमारा बेटा 13 एवं बेटी 10 वर्ष की हुई थी। हेतल एवं मेरे मार्गदर्शन में, दोनों बच्चे, स्कूल में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे।
जीवन का यथार्थ स्वरूप, हमारी अपेक्षाओं से भिन्न होता है।
तब जून 2017 का दुर्भाग्य पूर्ण महीना आया था। हेतल 38 वर्ष की हुई थी, हेतल कुछ दिनों से परेशानी अनुभव कर रही थी। हमने अस्पताल जाकर जाँच कराई थी। तब, हेतल को, ब्रेस्ट कैंसर का होना पता चला था।
मैंने पत्नी के गंभीर रोग के आधार पर, दो माह का अवकाश स्वीकृत कराया था।
कोई मनुष्य, ज्यादा अनुकूलतायें नहीं होती तब, जीवन रहे - न रहे, इसकी ज्यादा फ़िक्र नहीं करता है। लेकिन हेतल, अपने दो बच्चों एवं मेरे साथ इतनी अधिक खुश एवं संतुष्ट थी कि, दीर्घ जीवन जीना चाहती थी।
वैसे तो स्तन कैंसर, उतना घातक नहीं होता है, मगर, कैंसर शब्द, किसी भी पीड़ित को, भयाक्रांत कर देता है।
हेतल का उपचार शुरू कर दिया गया था। फिर भी हेतल, हम सब से बिछुड़ जाने की कल्पना से घबड़ा जाती थी। वह रो रो पड़ती थी। मुझसे पूछती- आपने 16 वर्ष में इतनी खुशियाँ मुझे दीं हैं, इससे मेरी खुशियों का कोटा खत्म हो गया, क्या? जो मैं, काल के गाल में समाने जा रही हूँ!
मैं उसे आश्वस्त कराने का प्रयास करता कि तुम ठीक हो जाओगी। अभी तुम्हें बहुत खुशियाँ मिलनी शेष हैं।
मेरी पिछली बातों के अनुभवों से, हेतल पर मेरे आश्वासन कुछ क्षणों के लिए प्रभावी होते, मगर फिर, हम सब को छोड़ जाने का भय, उस पर हावी हो जाता।
उसकी रात की नींद सुनिश्चित करने डॉक्टर स्लीपिंग पिल्स देने कहते थे। इनके साइड इफेक्ट्स होते हैं, अतः मैं ये सेडेटिव ड्रग, हेतल को देना नहीं चाहता था। तब मैंने, विशेषकर रातों में, पुनः हेतल और अपनी आत्मा की अदला बदली शुरू कर दी थी।
हेतल पर कीमो उपचार आरंभ किये गए थे। कीमो की तकलीफ के दिनों में, उसके शरीर में मेरी आत्मा का होना, मैं, सुनिश्चित कर लेता था। तब हेतल की आत्मा मेरे शरीर में होती थी।
ऐसे में, मेरे बेटे एवं बेटी को, पापा के द्वारा, मम्मी सा व्यवहार किया जाना, अनुभव होता था। वे चकरा जाते थे, पूछते- पापा, आप तो मम्मी हो गए हो। मम्मी वाले सारे काम, अच्छे से करते हो, अपने काम भूल जाते हो।
हेतल की आत्मा, स्वयं चकित रहती, उसे पिछले समय के भी, ऐसे अनुभव थे।
बच्चों पर किसी तरह का हानिकर प्रभाव न पड़े, इस आशय से वह, उनसे बनावटी बात कहती, अभी आपकी मम्मी बीमार है ना! इसलिए मुझे आपकी मम्मी बनना होता है। ताकि आपको कोई कमी न लगे।
बच्चे तब कहते- आप, मम्मी की तरह होते हो तो, हम पापा को मिस करते हैं।
प्रत्युत्तर में हेतल की आत्मा, सावधानी रखते हुए कहती कि-
बच्चों, आपकी मम्मी जल्द ठीक हो जायेगी तब, आप दोनों में से, किसी को मिस नहीं करोगे। साथ ही वह उन्हें कहती कि-
ऐसी कोई बात, आप दोनों बाहर न करना, नहीं तो लोग हमारी मजाक बनायेंगे। वे छोटे एवं हमारे आज्ञाकारी भी थे, दोनों ऐसा ही करते थे।
कीमो के तीन डोज़ ही हुए थे तब मुझे पता चला था कि
"एक नई तकनीक आई है, जिससे स्तन कैंसर की गांठ से, 15 मिनट के उपचार से ही, राहत मिल सकती है। इसमें, डॉक्टर एक बेहद ठंडी सुई को कैंसर कोशिकाओं के अंदर दाखिल करते हैं। कैंसर की गांठ को इससे, बर्फ की बॉल में बदल देते हैं। जिसके बाद इसे सरलता से नष्‍ट कर दिया जाता है।"
ऐसा ज्ञात होते ही, मैं हेतल को उस अस्पताल ले गया था, जहाँ इस तकनीक के विशेषज्ञ चिकित्सक थे। नई तकनीक होने से, यह तब बहुत महँगी थी, लेकिन वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की कृपा होने से, हेतल का ट्रीटमेंट संभव हो सका था।
मेरे एवं बच्चों के भाग्य से, उपचार उपरांत हेतल पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर लौट आई थी।
घर लौटने पर, पुनः हेतल ने मुझमें दिव्य शक्ति के होने संबंधी, प्रश्न किया था। मैंने फिर हेतल को, ऐसा होना नकारा था। मेरे नकारने पर भी उसने नहीं माना था। उसने कहा था कि-
"पति के अति स्वार्थी रवैय्ये से आज कुछ ही और कोई ही पत्नी होती है, जो अपने पति को, परमेश्वर मानती है।"
फिर उसके चेहरे पर असीम श्रध्दा के भाव परिलक्षित हुए थे। उसने अत्यंत मृदु एवं प्रेममय स्वर में मुझसे, आगे कहा था कि-
मगर, मैं वह सौभाग्यशाली पत्नी हूँ, जिसे अपने पति परमेश्वर रूप में आप मिले हैं। 
उन महात्मा पुरुष के द्वारा कही गई बातों का, तब मुझे स्मरण आया था। मुझे हर हाल में अपनी शक्ति का राज, राज ही रखना था। मैंने हँसते हुए कहा था कि-
हेतल, यह कैसी बातें करती हो। मुझमें कोई शक्ति वक्ति नहीं है। यह तुम्हारा मुझसे अगाध प्रेम है जिससे तुम्हें ऐसा लगा करता है।
मेरे लिए तो तुम देवी हो, जिसने मेरे जीवन में आकर मुझे, एक सफल आदमी बनाया है।
मेरे हर साहासिक और अच्छे कर्म, तुम्हें खुश रखने की भावना से प्रेरित होते हैं। हाँ, मेरे हिस्से में पराक्रम और उससे अर्जित बड़े सम्मान आये हैं। लेकिन यह सब, मेरे साथ तुम्हारे होने से संभव हुए हैं।
वास्तव में तुम्हारे रूप में, मुझे, वह विलक्षण नारी मिली है जो पीछे रहकर, मुझ जैसे साधारण पुरुष को, एक सफल पुरुष बनाती है।
मेरे इस उत्तर पर, स्वयं उसने, मेरे समीप आकर मेरी बाँहे, अपने इर्द-गिर्द लीं थीं और मेरे सीने पर, अपने सलोने मुखड़े को रख, अपनी आँखें, मेरी आँखों से मिलाते हुए, मुझसे अगाध प्रेम की मुख मुद्रा के साथ, उसने कहा था-
आपको सच छुपाकर, बहुत बातें बनाना आता है। मैं, आप से बातों में नहीं जीत पाती हूँ।
उस पर, अपनी बाँहों का थोड़ा दबाव बनाते हुए, मैंने पूछा था- हेतल, क्या तुम्हें, मेरा प्रेम झूठा लगता है?
वह शरमाई थी कहा था, मैं प्रेम पर सवाल नहीं कर रही, वह तो अभूतपूर्व है। शायद ही, कोई ऐसी पत्नी होगी, जिसे आपसा चाहने वाला पति, मिला होगा।
हेतल से, प्रेम की ऐसी बातें सुनकर, मैं गदगद हुआ था।
फिर मैंने, उसे बाँहों में उठाकर, पलंग पर लिटाया था, ताकि उसे चिकित्सक द्वारा निर्देशित आराम, सुनिश्चित हो सके।   
कुछ दिनों में, हेतल की दिनचर्या सामान्य हुईं थी। हमारे बच्चे अब मम्मी-पापा दोनों में से किसी को मिस नहीं कर रहे थे। हम, फिर एक अत्यंत खुशहाल परिवार, अनुभव करने लगे थे।
मैंने, सेना में अपनी सेवायें, पुनः ज्वाइन कर ली थी। 
हममें से किसी को नहीं मालूम था लेकिन, "समय" यह जानता था कि-आगे वह, हमें क्या दिखाना चाहता है ... 
(क्रमशः)
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
18-05-2020
  

   



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