Sunday, May 19, 2019

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना 

कोई नेता हार जाता है तो उसकी हार में खुश क्यों होना? उसके जीतने पर क्या हमसे प्रत्यक्ष रूप से छीन लेगा वह? - नहीं। कोई नेता जीत जाता है उसकी जीत में खुश क्यों होना ? उसके जीतने पर क्या हमें प्रत्यक्ष रूप से कुछ दे देगा वह? - नहीं। कोई नेता अपराध में जेल चला गया तो खुश क्यों होना। क्या वह जेल नहीं गया होता तो हमें मारने आता? - नहीं। किसी की हार-जीत में हम एक साधारण व्यक्ति क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवानागी प्रदर्शित करते हैं? 
सिर्फ इसलिए कि अस्वस्थ राजनीति और सिद्धांतहीन राजनेताओं ने इस देश-समाज में एक साधारण सच्चे आदमी का सरलता से जी लेने की छोटी सी चाहत को भी मुश्किल कामना बना दिया है। आज के राजनेताओं ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा से हम देशवासियों के हृदय में ऐसा वर्गीकरण कर दिया है कि किसी का साधारण हितैषी तक कोई नहीं रह जाता है जैसे ही उसे, उसकी जाति या संप्रदाय का ज्ञान होता है। साधारण तौर पर हँस बोल कर हमसे मिलने वाला कोई, आज के दुर्भाग्यपूर्ण परिवेश में  दिल में हमारे लिए दुश्मनी पाले हुए होता है। 
यही एक सीधा सा कारण है कि किसी राजनेता के दुःख में हम दुःखी होने की जगह ख़ुशी मनाते हैं और किसी की ख़ुशी में ऐसे खुश होते हैं जैसे हमें ही मंत्री बना दिया गया हो। हमारा, अब्दुल्ला की तरह दीवाना सा होना सिर्फ इस आशा से ट्रिगर होता है कि चुन के आने वाला नेता शायद देश और समाज के हालात बदलने में सफल हो जाये - जिसमें सच्चा कोई आदमी सादगी से चाहे तो बेखटके जीवन यापन कर पाए और भ्रष्टाचार या किसी के मन में कौम या जातिगत वैमनस्य के कारण से बेवजह हिंसा या लूट की चपेट में आने से बचा रहे। हम ऐसी आशा रखने का वरदान तो पा सकें कि भले ही किसी अपरिचित के दिल में हमारे लिए स्नेह न उमड़े किंतु ऐसा भी न हो कि वह हमें दुश्मन सा देखे। 

rajesh chandrani madanlal jain 

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