Wednesday, September 27, 2017

आँखों देखा सच हो सकता है - पूर्ण सच नहीं

आँखों देखा सच हो सकता है - पूर्ण सच नहीं
इस शीर्षक की पुष्टि में उदाहरण वह विषय लूँगा जिस पर बात करने में ज्यादा रस लिया जाता है। जी हाँ हम - एक नवयौवना रूपसी की बात करते हैं। रूपसी कॉलेज में दिखती है , बाज़ार में दिखती है , ऑफिस में सहकर्मी है ,कभी स्पोर्ट्स - स्विमिंग कास्ट्यूम में होती है। वह मंदिर में भी हो सकती है। रूपसी का रूप-लावण्य लुभावना है - यह सच है। एक अपरिचित युवक का दिल उसके आकर्षण प्रभाव में आ जाता है। वह उसे प्रभावित करने की हर तरकीब करता है। रूपसी - समझने पर उसे नेग्लेक्ट करके पीछा छुड़ाना चाहती है। किंतु युवक पर उसके प्रति मुग्धता इतनी अधिक है कि वह उससे हर हालत में निकटता चाहता है। ऐसे में एक दिन रूपसी को एकांत स्थान में पाकर वह , उससे ज्यादती कर बैठता है। रूपसी प्रतिरोध करती है - उसकी चीख पुकार से लोग आ जाते हैं। युवक की धुनाई होती है , पुलिस केस बन जाता है। रूपसी - निर्दोष होने पर भी विवाद में उलझती है। थाने और न्यायालय के चक्कर में पड़ती है।
अब आँखों देखे सच का उल्लेख करते हैं। युवक ने रूपसी में सौंदर्य देखा यह सच था। युवक यह नहीं देख सका कि 1. रूपसी पहले ही किसी के प्यार में बँधी थी , 2. रूपसी के घर परिवार के प्रति कर्तव्य थे , 3. रूपसी समाज मर्यादाओं से बँधी हुई थी , 4. रूपसी की स्वयं की कुछ पसंद-नापसंद और स्वयं की आदर अपेक्षायें थी और 5. रूपसी जीवन जी सकने की परिस्थितियाँ चाहती थी।
युवक - उसे आँखों से देख मुग्धता प्रभाव में आया - वह विवेक जागृत कर 1 से 5 तक में उल्लेखित विचार करने तथा सच समझ पाने में असमर्थ रहा। वह स्वयं कठिनाई में तो फँसा ही , एक निर्दोष पर विवाद , परेशानी और अपमान थोप देने का अपराधी हुआ। आँख होते हुए युवक में ऐसा अंधत्व होना कि देखे से पूरा सच नहीं समझ सके - मेरे आलेख शीर्षक को प्रूव करता है।
(Hence proved) :)
--राजेश जैन
28-09-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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