Monday, September 18, 2017

पितृ-मोक्ष अमावस्या


पितृ-मोक्ष
इस अमावस्या पर हमारी परंपरा - अपने पूर्वजों को स्मरण-आदर और उनके सुखद परलोक की कामना करने की रही है। कर्मकांड से परे यह परंपरा बहुत ही परम-पावन भावना की है। अपने बड़ों के अपने ऊपर ऋण अनुभव करते हुए - वे प्रसन्न होंगें इस लक्ष्य से स्थापित की गई है। जो दिवंगत हो गए के अतिरिक्त पितृ-मोक्ष अमावस्या पर आज जो जीवित हैं - हमें ,उनके बारे में विचार करने की आवश्यकता है। हर परिवार में वह समय आता है जब - किसी समय के बेहद सक्षम-सामर्थ्यशाली माँ-पिता जीवन के अंतिम पड़ाव पर जीवन से संघर्ष करते हैं। वह अवस्था - बहुत दयनीय और दर्दनाक , नितांत अकेलेपन में अत्यंत डरावनी सी भी लगती है। देहांत बाद पितृ-मोक्ष की उनके प्रति हमारी कामनायें तो उत्कृष्ट हैं , किंतु यहाँ उनके जीते जी अच्छी भावनाओं से उनके सेवा का , यह समय होता है। उनकी चिकित्सा की सीमायें हो सकती हैं , किंतु मानसिक सहारा , धन नहीं चाहता। समय जुटा कर हमारा- वह सहारा बनना अपेक्षित है। हम इस कल्पना से भयभीत हो सकते हैं कि हमारी भी दशा कभी ऐसी होगी लेकिन यह कटु सच है कि मिलती जुलती ऐसी कटु दशा हमारी भी किसी दिन होगी।
आज जो बदलाव आये हैं , हम अति व्यस्त हुए हैं , उसमें अगर हम अपने ऐसे मरणासन्न बुजुर्गों का ध्यान कर सकें तो बेहतर होगा। जीते जी उनका आदर - सेवा , वास्तव में वह आवश्यकता है , जो हम सभी की किसी दिन होगी।
--राजेश जैन
19-09-2017 

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