Saturday, September 23, 2017

डिवोर्स - तीन तलाक

डिवोर्स - तीन तलाक
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विवाह से स्थापित प्रणय - दाम्पत्य बंधन जब कुछ समय में ही टूटने की कगार पर पहुँचता है तो अनायास ही दोनों पक्ष के लोग उसे बचाने को उत्सुक होते हैं। यही बात जब पाश्चात्य देशों में होती है - तो उसे सहज टूटने दिया जाता है। यहाँ टूटने नहीं दिया जाता ,तब और जब , वहाँ टूटने दिया जाता है - दोनों में ही स्थिति में बाद के समय में जीवन से प्राप्त सुख में कोई खास बदलाव नहीं आता। कारण यह होता है कि समाज में जिस तरह की सोच और संस्कार आज हैं , उससे हमारा दृष्टिकोण बदल नहीं पाता। क्या हैं आज की वह सोच और वे संस्कार ? आज हमारी सोच और संस्कार - कमी या बुराई अपने में नहीं खोज पाती है। किसी भी समस्या के लिए हम दूसरे को गलत या बुरा बताते हैं। जबकि यथार्थ में जब कोई समस्या उत्पन्न होती है - तब आत्मावलोकन दोनों ही पक्षों को करने की जरूरत होती है। किसी में कमी - कम या ज्यादा अवश्य हो सकती है फिर भी दूर किया जाना दोनों की ओर से अपेक्षित होता है।
वास्तव में हमारा समाज और संस्कृति में - तोड़ने में नहीं जोड़ने को महत्व दिया जाता है। तोडना प्रायः विनाश-सूचक और जोड़ना सृजन सूचक होता है। दाम्पत्य बंधन - पूरी सोच समझ के साथ बनाये जाने चाहिए - और बन जाने पर उन्हें सूझ-बूझ ,आपसी समझ और परस्पर विश्वास से निभाए जाने चाहिए। विपरीत लिंगीय आकर्षण ही सब कुछ नहीं है। अति कामुक दृष्टि , बाहर की ओर झाँकती है। बाहर मृग-मरीचिका के अतिरिक्त कुछ नहीं है। जो दायित्व , किन्हीं परिस्थिति में हमने ग्रहण किये हैं , उन्हें निभाना ही उत्कृष्ट होता है। जुड़ाव बनाये रख हम सृजन का प्रतिनिधित्व करें।
देखिये , तीन तलाक की लड़ाई - भारतीय मुस्लिम नारी ने लड़के जीती है। जिस शौहर ने क्रोध या अन्य कारणवश , तलाक दिया है उसी से परिवार बनाये रखने की यह नारी उत्कंठा - उसका सृजनशील होना दर्शाता है। पुरुष भी यही गुण विकसित करे। खुशहाली के पक्ष में - पुरुष से भी जिम्मेदार बनने की अपेक्षा होती है।
--राजेश जैन
24-09-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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