दवा की शीशी में जहर
राजनीति देश-समाज और व्यवस्था निर्माण को उत्तरदायी होती है। जनसेवा की समस्त एजेंसी / विभाग - नागरिक को सेवा देने के निमित्त हैं। धर्म - अपने अनुयायी के उचित आचरण ,व्यवहार और कर्मों के सँस्कार को पुष्ट करने वाले हैं। शिक्षा - अकेले धनार्जन ही नहीं अपितु विधार्थी को कर्तव्यनिष्ठ बनाने की दृष्टि से आवश्यक होती है। न्यायपालिका - विवादों को हल और अपराधों के रोकथाम के उपाय के लिए है। स्वास्थ्य सुविधा से जीवन रक्षा के प्रयास अपेक्षित हैं। ऐसे ही व्यवसाय -कृषि आदि क्षेत्र वस्तु और भोज्य सामग्रियों के गुणवत्ता सहित ग्राहक संतुष्टि के ध्येय सहित जीविकापार्जन हेतु है।
आज राजनेता - अपने परिवार की आर्थिक उन्नति में व्यस्त , सेवा कर्मी - बिना रिश्वत के कार्य न करने की शपथ लिए , धर्म - निज मान पुष्टि और स्वयं को चर्चित करने के साधन जैसे , कार्य करते हैं। शिक्षा का प्रथम ध्येय स्वयं का - धन वैभव हो गया है , विद्यार्थी कितना योग्य बन सकेगा यह गौड़ कर दिया गया है। व्यापार और कृषि आदि में प्रमुख अपना लाभ कर लिया गया है। सामग्री स्वास्थ्य को हानिकर होगी या अपेक्षित समय तक ठीक भी रहेगी या नहीं इससे कोई सरोकार नहीं बचा है।
निष्कर्ष यह निकलता है कि हम जिसे दवा की शीशी जानते हैं - उसमें दवा नहीं जहर भरा है। हम भूल गये कि यह देश - यह समाज हमारा है- जिसमें हमारे अपने बच्चों को जीवन जीना है और जिनके सुखद जीवन के लिए सिर्फ धन ही नहीं वातावरण भी सुखद चाहिए होगा।
--राजेश जैन
15-09-2017
https://www.facebook.com/PreranaManavataHit/
राजनीति देश-समाज और व्यवस्था निर्माण को उत्तरदायी होती है। जनसेवा की समस्त एजेंसी / विभाग - नागरिक को सेवा देने के निमित्त हैं। धर्म - अपने अनुयायी के उचित आचरण ,व्यवहार और कर्मों के सँस्कार को पुष्ट करने वाले हैं। शिक्षा - अकेले धनार्जन ही नहीं अपितु विधार्थी को कर्तव्यनिष्ठ बनाने की दृष्टि से आवश्यक होती है। न्यायपालिका - विवादों को हल और अपराधों के रोकथाम के उपाय के लिए है। स्वास्थ्य सुविधा से जीवन रक्षा के प्रयास अपेक्षित हैं। ऐसे ही व्यवसाय -कृषि आदि क्षेत्र वस्तु और भोज्य सामग्रियों के गुणवत्ता सहित ग्राहक संतुष्टि के ध्येय सहित जीविकापार्जन हेतु है।
आज राजनेता - अपने परिवार की आर्थिक उन्नति में व्यस्त , सेवा कर्मी - बिना रिश्वत के कार्य न करने की शपथ लिए , धर्म - निज मान पुष्टि और स्वयं को चर्चित करने के साधन जैसे , कार्य करते हैं। शिक्षा का प्रथम ध्येय स्वयं का - धन वैभव हो गया है , विद्यार्थी कितना योग्य बन सकेगा यह गौड़ कर दिया गया है। व्यापार और कृषि आदि में प्रमुख अपना लाभ कर लिया गया है। सामग्री स्वास्थ्य को हानिकर होगी या अपेक्षित समय तक ठीक भी रहेगी या नहीं इससे कोई सरोकार नहीं बचा है।
निष्कर्ष यह निकलता है कि हम जिसे दवा की शीशी जानते हैं - उसमें दवा नहीं जहर भरा है। हम भूल गये कि यह देश - यह समाज हमारा है- जिसमें हमारे अपने बच्चों को जीवन जीना है और जिनके सुखद जीवन के लिए सिर्फ धन ही नहीं वातावरण भी सुखद चाहिए होगा।
--राजेश जैन
15-09-2017
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