Thursday, November 28, 2013

भारतीय मूल्य

भारतीय मूल्य
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यथा सँस्कार ,जीवन चुनौतियों को नेक और न्याय के मार्ग से अर्जित धन से पार करते जीवन यापन किया था . विवाह उपरान्त जीवन संगिनी का सहर्ष साथ इस तरह जीवन मार्ग तय करने के लिए मिला था . संतोषी उस पिता ने ,सपत्नीक बच्चों का लालन -पालन मितव्ययिता और गुणवत्ता की प्रमुखता के साथ किया था . बेटी की शिक्षा पूर्ण होने तथा विवाह योग्य वय होने के कारण ,बेटी का यह पिता आज योग्य वर ढूंढने निकला था . जिस प्रतिष्ठित घराने ने अपने चिरंजीव के लिए इस बेटी में रूचि दर्शाई वह सभी दृष्टिकोण से उपयुक्त था .

यह चिरंजीव गुणवान ,उच्च शिक्षित ,शालीन और सुलझे विचारों का था . माता-पिता भारतीय संस्कृति समर्थक तो थे ही आधुनिक उच्चता को भी जीवन और परिवार में यथा स्थान देने वाले थे . सभी कुछ अच्छा और अनुकूल था . हालांकि लड़के पक्ष से आर्थिक स्थिति पर महत्त्व नहीं दर्शाया गया था किन्तु किसी को ना कहते वह स्वयं हीनता बोध से घिरा हुआ था . वास्तव में आर्थिक दृष्टि से उसका स्वयं का स्तर दूसरे पक्ष से बहुत कम था .



स्वयं से वार्तालाप में उसने एक समाधान, हीनता दूर करने के लिए प्राप्त किया था . जिसमें उसका तर्क था उसकी बेटी आज के वातावरण में आधुनिकता से शिक्षित होते हुये भी भारतीय मूल्यों को निभा लेने का संकल्प रखती थी . बेटी के गुण और सुशीलता वह निधि थी जो आर्थिक स्थिति के अंतर को पाटने के लिए काफी थी .

 यह तर्क कभी तो आत्मविश्वास बढ़ा देता था . लेकिन अधिकांश समय अन्य विचार पुनः हीनता में उसे डालता था . दरअसल सफलता का जो पैमाना आज स्थापित है जिसमें अच्छा ,सभ्य ,उन्नतिशील और आधुनिकता का प्रमाण पत्र सुलभता से आर्थिक संपन्न को मिल जाता है इस पर वह असफल दिख रहा था .. पैमाने पर चढ़ी इस कंसनट्रेटेड केमिकल (-सान्द्र रासायनिक तत्व) की  मोटी परत को , भारतीय मूल्य का सॉफ्ट केमिकल ( तनु रसायन ) मिटा नहीं पा रहा था .

देखना है "भारतीय मूल्य" उस स्वाभिमानी बेटी के स्वाभिमानी पिता (स्वाभिमानी परिवार)  को आज के इस पैमाने पर समतुल्य कर पाते हैं अथवा नहीं ?

-राजेश जैन
29-11-2013

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