Saturday, July 28, 2012

चापलूसी

चापलूसी

                                  चापलूसी की बात आती है हर कोई निंदनीय मानता है. जबकि कभी कभी वह खुद किसी की चापलूसी करता हो सकता है.  ऐसा हो सकता है हम चापलूस न हों. पर ऐसे होते हुए भी हम चापलूसी को पुष्ट करते हैं , यदि अपनी स्वयं की चापलूसी पसंद कर रहे हों या की जा रही अपनी चापलूसी को चापलूसी पहचान जाने में चूकते हों .वास्तव में चापलूसी एक स्वार्थ प्रेरित प्रक्रिया है , जो करने वाला अपने कुछ हित साधने की संक्षिप्त रास्ते बतौर अपनाते हैं . चापलूस बनने के लिए किसी को अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता है . चापलूस होने का गुण किसी में उत्पन्न होने के कारण में से कुछ ये हैं. 1.जल्दी से जल्दी अपने मंतव्य सिध्द करने के लिए , 2 . जिस का सामर्थ्य नहीं वह कार्य संपन्न करवा लेने के लिए तथा 3 . बचपन से अपने बड़ों में यह आदत देखे जाने के कारण.

                                चापलूसी सफल ,धनवान और समर्थों के आसपास पनपती है . इतिहास में चापलूसों ने ऐसे उदहारण पेश किये हैं जब उन्होंने अपने छोटे किसी प्रयोजन के लिए संस्कृति ,समाज और देश को बड़ा एवं लम्बे समय अहित इन समर्थों को बरगला कर किया है. इस तरह से देखा जाये तो चापलूसी किसी असमर्थ की कमी के कारण अस्तित्व में नहीं है , बल्कि यह  समर्थों की कमी से बनती है. समर्थ जब यह समझने में नाकाम होते हैं कि उनकी प्रशंसा झूठी है और प्रशंसा  का कुछ छुपा उद्देश्य है.    ऐसे में चापलूसी का अर्थ  हम असमर्थ की मज़बूरी और समर्थों की मूर्खता बताएं तो कुछ गलत नहीं होगा .

                      चापलूसी पर इतना लेख इसलिए आवश्यक है कि लेखक इसे भी सामाजिक सुखद वातावरण के निर्माण में अवरोध के कारणों में से एक के रूप में देखता है. स्वार्थ प्रेरित उत्पन्न मनुष्य की इस बुराई पर नियंत्रण आवश्यक है . अन्यथा व्यवस्था और ओहदों पर विद्यमान समर्थों के निर्णय चापलूस प्रभावित करते रहेंगे अपना कोई छोटा प्रयोजन सिध्द करेंगे पर संस्कृति ,देश और समाज को बड़ी हानि पहुंचाते  रह कर समाज को दिनोदिन और बुरा बनाते जायेंगे.
चापलूसी ख़त्म उस दिन की जा सकेगी जब समर्थ अपने आसपास एकत्रित ऐसे लोगों के जाल से निकलना शुरू करेंगे . सही और गलत की जा रही प्रशंसा की पहचान करेंगे. गलत अपनी प्रशंसा को हतोत्साहित करेंगे.

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