Sunday, July 22, 2012

कडुवे उपचार

कडुवे उपचार

                 कभी कभी करेले के कडवे ग्रास या दवाओं का कडवापन  हमारे लिए लाभकारी होता है. शारीरिक परिश्रम स्वास्थ्यकारी होता है .अपमान के कडवे घूँट सहन करना भी जीवन में कभी लाभकारी सिध्द होते हैं . अभावों के कारण मिलती विषम परिस्थिति और चुनोतियाँ भी कडवी तो होती हैं पर व्यक्तित्व निर्माण की द्रष्टि से ये भी उपयोगी   हो  सकती हैं ,यदि उसे हम सकारात्मकता से ले सकें .

                  इनसे विपरीत श्रम अभावों और अत्यंत सुविधाजनक साधनों के आश्रय की जीवन शैली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं. इसमें मधुरता तो  प्रतीत होती है पर जिस तरह अधिक शक्कर सेवन शारीरिक व्याधि उत्पन्न कर सकता है उसी तरह जीवन अनुकूलताएँ मानसिक संतुलन के लिए हानिकारक हो सकती है. यहाँ मानसिक असंतुलन पागलपन के अभिप्राय से उल्लेखित नहीं किया जा रहा है. लेकिन अनुकूलता प्रधान जीवन हमारी प्रतिकूलताओं से संघर्ष कर बिना हानि अपने को उनसे निकाल सकने के आत्म-विश्वास और मानसिक शक्ति के लिए अहितकारी  हो सकता है.  ऐसी विपरीतताओं को हम उनकी तुलना में जिन्होंने जीवन विपरीतताओं का जब तब सामना किया होता है उतने सहज तरीके से नहीं ले पाते हैं .कभी कभी इनसे हम टूट जाते हैं और हमपर अवसाद ग्रस्त हो जाने का खतरा मंडराता  है. तब मेरी कामना अनुकूलताओं से जिनका जीवन गुजर रहा है उनको सदैव ये उपलब्ध हों ऐसी है .पर मेरी  या किसी की ऐसी कामनाओं से इनकी सुनिश्चितता नहीं होती है.

                    मनुष्य में दमखम और कैसी भी परिस्थिति में सीखने ,उसके अभ्यस्त होने और उनमे अपने अस्तित्व बचा  लेने की अदभुत क्षमता प्रकृति प्रदत्त है .लेकिन बहुत वैभव और सुविधा मिलने से शारीरिक श्रम की आदत जाती रहती है. ये अक्सर मनुष्य में अभिमान भी भर देते हैं. तब यदि कभी अभाव आन पड़ें तब यह अभिमान और श्रम हीनता की आदत जार जार रुलाती है.  अपने वैभव शाली इतिहास का स्मरण दुःख देता है. जिनसे जीवन में वैभव के मामलों में अग्रणी था उनसे पिछड़ना दर्दनाक लगता है. जो कृपा पात्र रहे थे उनसे सहयोग लेते शर्म आती है. मुझे खुशी होती है जब किसी को बहुत बहुत समर्थ देखता हूँ. इनका वैभव पूर्ण और अनुकूल जीवन और उससे हर्षित दमकते चेहरे किसी पुष्प भांति आकर्षक होते हैं.लेख का प्रमुख अभिप्राय यह रेखांकित करने का है कि जीवन में सफलताओं में अपने पर ऐसा आत्मनियंत्रण हो की अभिमान हम पर हावी न हो पाए.

                       हम वैभव परिपूर्ण अपने जीवन में भी शारीरिक श्रम के कुछ अपने दैनिक कार्य स्वयं करते रहें ,अपनी जिव्हा पर नियंत्रण रख कभी कभी सदा भोज्य में भी रूचि से सेवन की आदत बनाये रखें. जवान पर नियंत्रण रख बड़े बोल ज्यादा न बोला करें. अभाव ना होने पर भी कभी कभी साधारण परिधान में भी घर से बाहर निकला करें. यात्रा में संभव हो तो कभी साधारण श्रेणी में भी यात्रा करें कभी कतारों में लग साधारण व्यक्ति की भांति अपने कार्य संपन्न कराएँ. इनसे हम में न्यायप्रियता बढ़ेगी . उन कठिनाइयों का सही अनुमान हमें होगा जिन्हें साधारण व्यक्ति सहज जी लेता है . कभी कभी ऐसा करते रहने से  हमारी आदत बनी रहेगी . एवं  कभी अनचाहे विपरीत समय आ जाये तो इन से जूझ कर हम अपने जीवन को वापस सफल दिशा में अग्रसर करने में सहजता अनुभव कर सकेंगे.

                  हमने सफाई कर्मी और जूते चप्पल सुधारते (और पोलिश) करते स्त्री पुरुष रोज देखे हैं. परंपरा से उनसे समाज में हेय व्यव्हार होता आया है.शायद हमारी भी उनके प्रति वही द्रष्टि हो. हमने शायद ही कभी सोचा हो कि उन्हें यदि हमारे जैसा वैभव,सम्मान ,सुविधा और अनुकूलताएँ उपलब्ध हो जाएँ तो क्या ऐसे में जीवन यापन में उन्हें कोई कष्ट अनुभव होगा  ? विपरीतता से अनुकूलता की दिशा में चलना आसान होता है. जबकि हमें तो इसकी कल्पना मात्र कि यदि हमें जीवन में ऐसा करना पड़ता तो ,हमें हिला देगी हम सिहर जायेंगे .सफाई और पैरों कि रक्षा के ये सामान बहुत महत्पूर्ण हैं जिन्हें हमारे लिए वे करते हैं . ऐसा कठिन कार्य हम नहीं करना चाहेंगे .उनकी योग्यता कम है इस कारण ऐसे कार्य करते हैं पर बदले में पारिश्रमिक तो कम पाते हैं. पर हम उन्हें सम्मान कि द्रष्टि से भी नहीं देख पाते . एक कमी के लिए दो ख़राब प्रतिफल देना अनुचित है उन्हें . पारिश्रमिक भले कम दिया हो पर सम्मान तो दिया ही जा सकता है. आज ऐसे तर्क सुनने मिल रहे हैं जिसमे अर्धनग्न शरीर प्रदर्शन ,अश्लील मंचन और यहाँ तक के देह व्यापार को ( उनमे लिप्त  )  स्त्री- पुरुष व्यावसायिक आवश्यकता बताते हैं और उसे उचित ठहराते हैं .इनके पास धन हो जाने से असहमत होते हुए भी प्रकट में कोई अपमान का साहस नहीं करता . तब क्या पेट भर लेने को कमा लेने के लिए सड़कों ,प्लेटफार्मों और फुटपाथों पर कार्यरत मजबूर लोगों को हम सम्मान दे दें तो क्या गलत होगा . अभावों को सहते इनके तन मन के घाव शायद थोड़ी शीतलता ही अनुभव करें हमारे सम्वेदना और सम्मानीय व्यवहार से.

                   हमारे द्रष्टिकोण और व्यवहार में यह परिवर्तन समाज में स्वस्थ वातावरण  के निर्माण में बेहद उपयोगी होगा .

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