Saturday, July 21, 2012

शुभ प्रभात , मेरा हार्दिक अभिवादन

शुभ प्रभात , मेरा हार्दिक अभिवादन ..........

                                 शुभ यह कामना कि आज वह प्रेरणा मिले जिससे  जीवन  में ऐसा परिवर्तन  (टर्निंग पॉइंट ) आरम्भ हो जिससे आप आत्मिक उन्नति की ओर प्रशस्त होकर आत्मिक वैभव बढ़ा सकें . आपके भौतिक वैभव और आत्मिक वैभव में एक बेहद ही उचित संतुलन बन जाए. 

                          यह महत्वपूर्ण उतना नहीं कि कोई अन्य किसी को  भला व्यक्ति जाने और माने , जितना यह कि कोई स्वयं यह मान सके  कि वह भला है. अगर निशंक कोई अपने बारे में ऐसा कह सकता है तो समझें कि उन्होंने अपने मनुष्य जीवन को सार्थक रूप से जिया है   .

               भौतिक वैभव से हमारा इस लोक का जीवन सुविधाजनक बनता है. आत्मिक वैभव से हमारा परभव (परलोक) सुधरता है. आत्मिक और भौतिक वैभव के उचित संतुलन से हम ऐसा योगदान कर सकते हैं जिससे प्रथ्वी पर समग्र मानव समाज को सुविधाजनक जीवन का स्वस्थ वातावरण उपलब्ध करवा सकें .

                      7-8 अरब के वर्तमान मानव समाज में हम आधा सैकड़ा ही हैं .हम अपने भौतिक और आत्मिक संतुलन उचित बनाने का प्रयास करें.साथ ही परस्पर संतुलन और सहमति भी स्थापित करें.इनसे ही हम अपने तय लक्ष्य की दिशा में बढ़ते और निरंतर कुछ नयों का साथ लेते हुए मानवता को पुष्ट करने की दिशा में हर नए दिन कुछ पग बढ़ाते जाएँ.

                ग्रुप पर जिस किसी भी संयोग और प्रेरणा से जो प्रबुध्द साथी आ जुड़े हैं. इनमे से एक का भी ग्रुप  से हटने का निर्णय "मानवता को मजबूत करने के" हमारे प्रयत्नों में एक जोड़ी सहयोगी   हाथ का अभाव बढ़ा देगा .हमारी चुनौती तब और कठिन हो जाएगी. लेकिन इसे दुखद मानने के बाद भी हम इस निर्णय  का स्वागत यह सोच कर करेंगे की निश्चित ही यहाँ से बेहतर अपनी जीवन संभावनाओं के हित में उन्होंने इस ग्रुप पर समय न दे पाने की बाध्यता के कारण यह किया होगा .

                          वस्तुतः कोई एक तरीका ही नहीं है जिससे मानवता मजबूत  की जा सकती है.मानवता मजबूती की पवित्र भावना को ज्यादा प्रभावशील करने वाले और भी तरीके हो सकते हैं ,लेकिन जब तक कोई ठोस सफलता को हम ना देख लें हम ग्रुप के आजमाए जा रहे प्रयोग में सहयोग कर सकें तो ख़ुशी होगी. समय समय पर पूर्व में महा मानवों ने सहयोग कर मनुष्य समाज के लिए मानवीय द्रष्टिकोण विकसित किये हैं .जिससे उस समय का और अब तक का समाज लाभान्वित होता रहा है. नयी समस्याओं के उत्पन्न होने से और  उनकी अनुपलब्धता से हमें यह दायित्व मिलता है , हम उनके स्थापति आदर्शों का आश्रय और अपना विवेक भी लगते हुए हम अपना "रोल प्ले "  करें.

                        महिमा मंडित हम किसी को नहीं करेंगे. लेकिन हजारों मानव जितना कुछ एक की सहयोग क्षमता रखने वाले कुछ विद्वान् हमें ग्रुप पर भाग्यवश मिले हुए हैं.ऐसे एक का ग्रुप छोड़ने के निर्णय पर पहुँचने का आभास हमें मिल रहा है. हमारा ग्रुप इससे दो महीने पहले की स्थिति में पहुँच जायेगा (जब यह अस्तित्व में ही नहीं था ) .यह स्थिति हमारे कुछ सदस्य को अप्रिय तो होगी ही . लेकिन उससे ज्यादा कटु यह बोध होगा की इस ग्रुप पर हम उनका अपेक्षित सम्मान बनाये रखने में विफल हुए.उनकी जीवन में हासिल उपलब्धियों जनित उनकी गरिमा को हमने क्षति पहुंचाई .उनको गहन मानसिक पीड़ा में हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जिम्मेदार हुए. 

                     यह व्यवहार हमें सबक देता है हम ग्रुप पर सतर्क शब्द और पवित्र लेखांश ही रखें अन्यथा हमारा स्वप्न टूट ,बिखरते जरा भी समय नहीं लगेगा .अपने अपने क्षेत्र में सफल कुछ महा विभूतियाँ यह ग्रुप अनायास ही पा गया था .भौतिक इन सफलताओं से उनकी आस्था और विश्वास में द्रढ़ता एक सहज प्रवत्ति ही है. उसे किसी भी तरीके से प्रभावित करना एक बेहद ही कठिन कार्य है.उनकी प्रतिभा ने उन्हें जीवन में एक अत्यंत सफल कहे जाने वाले स्थान पर स्थापित किया है.हम उनकी आस्था परिवर्तन भी नहीं चाहते. हम उन सफल विभूतियों से उनका सृजन क्षमता वाली प्रतिभा का उपयोग और अमूल्य समय समाज सुधार की दिशा में सहयोगी के रूप में चाहते हैं.

                  हम अपने हर अच्छी कट्टरता बनाये रखने के समर्थक हैं लेकिन हम वह पहचान भी चाहते हैं जिससे किसी को "कट्टर मानवता हित का समर्थक " का विशेषण मिलता है.ग्रुप पर यदि हम किसी को महिमा मंडित ना करेंगे तो साथ ही इस बात का गंभीर चिंतन और व्यवहार भी रखेंगे जिससे कोई भी किसी बात के लिए स्वयं में कोई हीन दिखाए जाने की कटु स्थिति में ना पहुँच जाता हो.

             हम यहाँ इस बात को बहुत ही गंभीरता से अपने चिंतन और व्यवहार में लेंगे कि जब यह ग्रुप किसी को कुछ दे नहीं सकता तो उससे उसका अपमानित अनुभव करते हुए स्वाभिमान बोध न ले ले ,जो किसी के लिए एक विषम और ग्लानि पूर्ण स्थिति होती है.

               हम ग्रुप में किसी को बहुत उचाईयों पर स्थापित नहीं करेंगे.स्वयं उचाईयों पर जाने की तमन्ना नहीं करेंगे क्योंकि उचाईयों पर पहुँच कोई इस द्रष्टि से नीचे  या पीछे देखने की भूल उत्पन्न कर सकता है कि उसके कितने अनुयायी अनुकरण कर रहे हैं, ऐसा उनका भाव विलक्षण उनकी प्रतिभा और क्षमता का मानवता को मिलने वाला उनके सहयोग की मात्रा को बुरा प्रभावित कर सकता है.

                हमें मंचासीन होने में भी खतरा दिखाई देता है. मंचासीन आदरणीय में अहम् भावना बढ़ जाने की आशंका होती है.हम व्यक्तिगत श्रेय किसी का मानें तो भी ऐसे उल्लेख से बचना चाहते हैं .कहीं ग्रुप सदस्य में श्रेय  अपेक्षा/ प्रेरित कर्म  की कमजोरी उत्पन्न न हो जाये .
                fb ग्रुप संरचना में admin होना जरुरी होने से डिफाल्ट यह विशेषाधिकार मुझे मिला है. यह विशेषाधिकार  त्याग कर एक सदस्य बनना चाहता हूँ .मुझे भय है की कभी इस विशेषाधिकार के कारण  ऐसे किसी निर्णय को ना अंजाम दे दूं जो ग्रुप (और साथ ही मानवता ) को हानिकारक हो.   

                हम इतना धैर्य हर सदस्य में चाहेंगे की ग्रुप को अभी सिर्फ दो महीने में ख़त्म होने की स्थिति निर्मित ना होने पाए .कोई पवित्र शुरुआत कर पाना  कठिन होता है. और हतोत्साहित ऐसे में आत्मग्लानि   वह कारण न पैदा कर दे जिससे थोड़ी जो मेरी क्षमता है वह  वर्तमान मानव समाज और आगामी मानव संतति की भलाई में उपयोग न हो सके.

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