Saturday, July 14, 2012

समाज के प्रति नैतिक कर्तव्य में कोताही

समाज के प्रति  नैतिक कर्तव्य में कोताही

                                        हमारे साथ कोई अन्याय करता है या बुराई करता है . हमसे वह शक्तिशाली या ज्यादा प्रभाव रखता है अथवा बदतमीज़ है . ऐसे में हम अपना रास्ता बदलकर या अनदेखी कर उससे विवाद से बच निकलना आरम्भ करते हैं. विवादों से बचना तो उचित होता है . पर उसे सुधारने का उपाय न करना तीन तरह की खराबी उत्पन्न करता है . पहला उसे बुरा ही छोड़ देना सर्वप्रथम उसके प्रति ही अन्याय है. दूसरा अन्याय सह लेना अपने आप पर अन्याय है. तीसरी और बढ़ी खराबी इस तरह की खराबियों को प्रश्रय देना समाज के वातावरण की दूषितता बढ़ाना है और समाज के प्रति हमारे नैतिक कर्तव्य में कोताही भी है.

                                      किसी से लड़ कर अपने हाथ पाँव तुडवा लेना भी कहीं ठीक नहीं है .विवाद और संघर्ष तो उसको ,हमें और आसपास वातावरण में अशांति जन्म देगा. अतः एक मात्र उपाय जो लम्बी अवधि और हमारा धैर्य और दिमागी कसरत मांगता है. वह अप्रत्यक्ष अच्छे सन्देश उस तक किसी उपाय से पहुंचाते रहने का बचता है. इस प्रयास में पहले तो हमारी ही नैतिकता बढ़ेगी.फिर धीरे धीरे बुरे व्यक्ति में सुधार परिलक्षित होता दिख सकता है. हमारे में नैतिकता बढ़ने से दूसरे जो हमसे चर्चा या संपर्क में रहते हैं, वे तुलनात्मक रूप से बेहतर सोच समझ वाले होते जायेंगे .हमारे आसपास जब अच्छे व्यक्तियों का समूह होगा तो हमसे कोई अन्याय या बुरा बर्ताव की हिम्मत करे ये संभावनाएं स्वतः कम होती जाएगी  और दीर्घ काल में शायद वह भी बदल जायेगा जिस को समस्या मान हमने इस तरह का उपाय करना शुरू किया था .

                                 मनुष्य सभ्यता के विकास के प्रारंभ से ही मनुष्य बुराइयों से चिंतित रहता आया है . बुराई मिटाने के तरह तरह के यत्न और उपाय हमेशा से किये जाते रहे हैं .अब तक बुराई मिटाने के लिए जो वार हम करते आये हैं ,वे इतने स्पष्ट और सटीक नहीं हो सके हैं , जो सिर्फ बुराई को मार गिराते हों. इन प्रहारों में बुराई के साथ उसका धारक भी आहत होता आया है . इस आहत बुरे मनुष्य की प्रतिक्रिया में बुराई और प्रखर हो जाती है.जिस दिन हमारा बुराई पर लक्ष्य करता निशाना इतना सटीक हो जायेगा जिससे बुराई का ही खात्मा होगा और बुरे व्यक्ति में से सिर्फ वही निकल जाएगी उसे कोई चोट नहीं पहुंचेगी उस दिन से बुराइयाँ कम होना आरम्भ हो जाएगी. हमें लक्ष्य पर वार में और अधिक अभ्यास की आवश्यकता है.    

                                    विभिन्न  क्षेत्र में सफल व्यक्तियों की आज विश्व ,देश ,किसी भी धर्म या समाज में कोई कमी नहीं हैं. ऐसे सफल सारे व्यक्ति बेहद प्रतिभा के धनी हैं उनका अनुकरण किया जाना भी उचित है . उनका सम्मान किया जाना सर्वथा आवश्यक और उचित है. पर जिस तरह एक दूसरे पर दोषारोपण  एवं आलोचना करते हुए हम अपनी और समाज की कई बुराइयों को रोकने में असफल होते जा रहे हैं .ऐसे में हमें ऐसे सफल  कुछ व्यक्तियों की बेहद आवश्यकता है जो अपने कर्मों और आचरण से समाज के सर्व वर्गों ( चाहे वृध्द हों या युवा ,चाहे अमीर हों या गरीब या कुछ और भी) इस तरह प्रभाव उत्पन्न करे कि उनसे हर धर्म ,भाषा ,राष्ट्र या हर उम्र के मनुष्य प्रेरणा ले सकें . जो समाज में एक सुखद संतुलन ला सकें.

                                     दर-असल जो आज मनुष्य करता है वह सारे ही कर्म आवश्यक माने जा सकते हैं . मनुष्य कोई भी चीज करता ही इसलिए है कि समय और परिस्थिति में वे कर्म उसे या तो आनंद या संतोष देते हैं , या उसके अहम् को संतुष्ट करते हैं . अतः अनुचित वे कर्म नहीं हैं . अनुचित जो वस्तु है वे किसी के द्वारा किये जा रहे किसी कर्म की मात्रा है. जैसे आय किसी व्यक्ति या परिवार के जीवन यापन के लिए जरुरी है लेकिन बहुत कम या ज्यादा मात्रा में वह अपर्याप्त या अनुचित हो जाती है. इसी प्रकार स्त्री पुरुष के एक दूसरे से सम्बन्ध भी एक सीमा में आवश्यक हैं. लेकिन यह वह प्रश्न  है जो समाज में असुरक्षित और अशांति बढाने का बहुत बड़ा कारण हो रहा है. किसी भी आयु वर्ग का आज का मनुष्य विपरीत लिंगी को सिर्फ इसी द्रष्टि से यदि देखने लगेगा तो सामजिक संतुलन बिगड़ ही जायेगा .

                         इस प्रकार अनेक उदाहरण लिए जा सकते हैं जहाँ कर्म बुरे नहीं हैं . बुराई है उनकी मात्रा का अधिक या कम होना . कुछ कर्म जैसे दया ,परोपकार और सज्जनता  के व्यवहार समाज में अत्यंत कम मात्रा में अस्तित्व में बच रहे हैं. इनकी ऐसी कमी होना एक बुराई हो गयी है . जबकि बहुत अधिक स्वार्थ , बहुत अधिक विपरीत लिंगी सम्बन्ध तथा उचित या अनुचित तरीके से बहुत अधिक धन-अर्जन बुराई बन जाता है.

                           बुराई ऐसा सक्रमण पहले ना था जैसा अब है .पहले बुराई तरंगों से फैलने वाली वस्तु नहीं थी जब आज के तरह की इन्टरनेट , दूरदर्शन या दूरभाष (मोबाइल फोन) जैसे त्वरित प्रसारित होने वाले साधन सुगम नहीं थे . इन साधनों के आ जाने से बुराई तरंगों से फैलने वाला संक्रमण हो गया है .  दैहिक संबंधों की अधिकतम चाह और सोच वाली बुराई का संक्रमण बढ़ाने में इन्ही साधनों ने (तरंग के माध्यम) से बढ़ा दिया है . अश्लील सामग्री इस के द्वारा अत्यधिक मात्रा में फैलाई और देखी पढ़ी जा रही है.   ऐसा नहीं है की इन माध्यम से सिर्फ बुराई ही फैलाई जा सकती है . अच्छाइयों का प्रसार भी इस पर करने की चेष्टा की जाती है. पर इसे ऐसे समझा जा सकता है जैसे ध्वनि तरंग के मनुष्य की सुनने समझने की सीमा अलग है वहीँ चमगादड़ की अलग. उसी तरह बुराई की तरंग सामन्य मनुष्य सुगमता से सुन समझ रहा है. लेकिन अच्छाई की तरंगों को ग्रहण करने में विशेष यत्न और ज्यादा समय लगता है. इतने धैर्य और यत्न आज के मनुष्यों की आदत नहीं रह गई है.
                       

                              इन सब तथ्यों से स्पष्ट है हमें प्रतिभाशाली ऐसे सफल व्यक्ति आज चाहिए हैं जो सभी के सब तरह के कर्मों में उचित संतुलन लाने की प्रेरणा दे सकें . इस कार्य में हो सकता है की अपने जीवन में वे अधिक धन और सुविधा एकत्रित न कर सकें पर अगर सच्ची प्रेरणा समाज पा सका तो  वह देश एवं समाज के लिए अपार वैभव और अपार सुविधाओं का कारण बनेगा क्योंकि सुखद जीवन किसी के लिए भी सुविधाजनक होता है . और सामजिक संतुलन लाने में यदि कोई सफल होता है तो वह सभी के जीवन सुखों की व्यवस्था में सहयोगी होगा .

कृपया आप अवलोकन करें, अपने आपका  क्या ऐसे सफल व्यक्ति आप बन जाना चाहेंगे ?

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