स्व-आलोचना
अप्रत्यक्ष अपनी आलोचना स्वयं करते हैं अगर अपने से अन्य की औचित्यपूर्ण
अपेक्षाओं की पूर्ती हम नहीं कर रहे हैं, फिर हम चाहे नौकरीपेशा ,चिकित्सक
,अधिवक्ता व्यवसायी या शिक्षक जो भी हों. ट्विटर ,फेसबुक ,ब्लॉग या सामान्य हमारे वार्तालापों में व्यवस्था के
विरोध में हमारी नाराजगी और शिकायतों का लेख या कथन वस्तुतः स्व-आलोचना है.
हममें से कुछ अपनी कमियों के जानकार और अधिकांश अपनी कमियों से बेखबर हो
ऐसा करते हैं. अगर हमें अपनी कमी अनुभव में न होगीं तो सुधार का प्रयास भी न कर पाएंगे .
अतः सर्वप्रथम अपनी कमी देखने समझने की कोशिश करनी चाहिए , और गंभीरता से उन्हें
दूर करने की कोशिश भी करनी चाहिए . ऐसी हर कमी को द्रढ़ता से मिटाने का प्रयास करें
जिन्हें दूसरों में देख हम नाराज और निंदा को बाध्य होते है. अगर हम अंदाजा कर पायें कि हममें क्या खराबियां हैं तो जल्द ही बहुत हद तक
ठीक कि जा सकती हैं. पर यदि हम ही नहीं जानते अपनी कमियों को , तो उन्हें दूर करना
मुश्किल है. क्योंकि अन्य कोई हमें बताएगा तो हम चिढ जायेंगे .प्रतिक्रिया
में क्रोध में आयेंगे पर सुधार शायद जिदवश न करेंगे.
हमारे अपनी खराबियों को दूर करने के दृढ प्रयत्न न होंगे तो नेट पर प्रष्ट
भरते चले जायेंगे पर व्यवस्थाओं में परिवर्वर्तन द्रष्टव्य न होगा और हमारी
आपत्तियां और शिकायतें आजीवन बने रहेंगी .अगर अपनी खराबियों के जानकार होकर भी हम व्यवस्था और अन्य कि कमी को
लक्ष्य करते हैं तो हमारी यह सोच भी हो सकती है कि जब दूसरे नहीं बदल रहे
हैं तो हमारे अकेले बदलने से क्या फर्क पड़ेगा.काफी हद तक यह तर्क उचित है
पर पहल किसी को तो करनी होगी.किसी दूसरे को हम बदलें उसमे जो प्रयास लगते हैं उससे बहुत कम प्रयासों
में स्वयं को बदल लेना संभव होता है. स्वयं को बदल लेना सबसे आसान होता
है.अपराध या भूल जो अनजाने में कोई भी कर सकता है
कुछ उदहारण यहाँ रखने
के पहले यह लेख उचित होगा कि न तो में कृषक (अन्नदाता ) न चिकित्सक (पुनर्जीवन प्रदाता ) और न ही शिक्षक (ज्ञानदाता ) हूँ
.फिर भी मनुष्य समाज में इनके कर्तव्य और कर्म को सबसे पवित्र मानता हूँ .
ये अगर सच्चे हैं तो मेरे नायक हैं जिनका अनुकरण स्वयं और सारों के लिए
सर्वोपरि मानता हूँ.मेरे ऐसे नायकों में से शिक्षक की कमियों को सबसे पहले लक्ष्य बेहद मजबूरी
में ही कर रहा हूँ. एक शिक्षक विद्यालय या महाविद्यालय में एक लेक्चर 1
घंटे में पूरा करते हैं. कक्षा में 50 विद्यार्थी उपस्थित हैं अगर किसी
कारण शिक्षक अपना विषय ठीक न पढ़ा सके तो अनजाने में 50 विद्यार्थी घंटे के
नुकसान का अपराध उनके खाते में आ जाता है.
एक व्यक्ति अपने कुत्ते के साथ सैर पर निकलता है और स्वच्छ फुटपाथ या सड़क
के बीचोंबीच उसका मलत्याग करवा देता है,उसी तरह अन्य एक व्यक्ति फुटपाथ या
सड़क के बीचोंबीच थूक जाता है. सार्वजानिक शौचालयों (रेल ,स्टेशन या अन्य
स्थान में) कोई व्यक्ति अनुचित प्रयोग से गंदगी छोड़ आता है . इन सभी ने
अपने कार्य तो निपटा लिए होते हैं पर उन्होंने यह नहीं सोचा होता है कि बाद में वहां
आने वाले के मन में उनके लिए कितनी लानतें और अपशब्द आते हैं . एक भी
ऐसी बात सामने कोई कह दे तो क्या सहन की जा सकती हैं पर पीछे इतना अपने
खाते में दर्ज करवा लेते हैं.
अब शायद यह असामान्य नहीं रह गया हो पर कुछ वर्ष पूर्व तक रिश्वत देने वाला
पहले यह सोचा करता था की जिसके सम्मुख वह रिश्वत पेश कर रहा है कहीं उसके
स्वाभिमान को आहत तो नहीं करने जा रहा है.वास्तव में रिश्वत दे या ले कर
हम जो हासिल कर रहे हैं वह हमें न भी मिलता तो हमारे पास से कुछ बहुत नहीं
घट जाने वाला था .पर इसके बाद जो घट गया वह हमारा ऐसा संतोष था जिस पर हम
गर्व से कायम रह सकते थे कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब हमारी नैतिकता
का बूते ही है. आलोचना या टिप्पणियां ख़राब व्यवस्था को लक्ष्य कर बहुतायत में दिखाई और सुनाई दे रही हैं उनमे किसी भी आक्षेप के दायरे से हम बाहर होते.
अनजाने में आज की तुलना में कम व्यवस्था की खराबी का श्रेय शायद हमें प्राप्त रहता.
जो समस्याएँ दूर करना आज असंभव सा लग रहा है वह जादुई रूप में आसानी से दूर हो सकती
है यदि समग्र जाग्रति के विचार और प्रेरणाएं देने का दायित्व हम
स्व-प्रेरणा से ग्रहण कर लें. थोडा थोडा परिवर्तन हम स्वयं में अगर नहीं कर
सकते हैं तो फेसबुक और ब्लॉग और ऐसे ही अन्य माध्यमों पर प्रदर्शित की जाने वाली
चिंता और मनुष्य हितैषी छवि मात्र हमारा एक अभिनय होगा .हम अभिनय छोड़ यथार्थ
हितैषी बने इस हेतु इस लेख में दिए थोड़े ही संकेत समझदारों के लिए
पर्याप्त हैं .
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