जीवन पहलू
मेरी पत्नि विवाह पूर्व अपेक्षाकृत ज्यादा धनवान परिवार में पली बढ़ी हैं.
मुझे यह भली जानकारी है कि मेरे साथ की आर्थिक कुछ कमियों को बखूबी निभाया
है. यह भी अनुभव है कि उन्होंने मध्यम वर्गीय सोच और मानदंडों का और हमारे
परिवार की उनसे अपेक्षाओं का पूरा ध्यान रख मेरा साथ दिया और हमारे बच्चों
का बेहद उचित संस्कारित पालन पोषण किया है और व्यावहारिक शिक्षा के साथ
नैतिक शिक्षा का संतुलन उनमे लाने का भरपूर प्रयास पूरे समय किया है. यह में बहुत अच्छी तरह जानता हूँ कि उन्हें सार्वजानिक जीवन में अवसर
हासिल होते तो वहां सफल हो उनसे आसपास समाज को बहुत ही लाभ होता.पर
पारिवारिक दायित्वों में व्यस्त रहने के बाद प्रत्यक्ष न सही पर
अप्रत्यक्ष समाज का योगदान उनसे मिला. उन्ही के सहयोग के कारण में विभाग
के प्रति मेरे कार्य के माध्यम से में समाज सेवा (हमारे विभाग से जन अपेक्षा) को
बेहतर ढंग से ज्यादा समय कार्य पर उपस्थित रहते और करते हुए करता रह सका
हूँ.हमारे बच्चे पढाई तो अच्छी करते रहे हैं साथ ही उनमे राष्ट्र के अच्छे
नागरिक कहलाने की पूरी संभावनाएं अभी दिखाई देती हैं .आशा है प्राप्त
शिक्षा और संस्कारों से आगे के उनके जीवन में वे देश और समाज को अच्छा
योगदान दे पाएंगे.
हमारे बच्चों की स्कूली शिक्षा पूरी होते होते मेरे से दूर रह रहे कस्बाई
मेरे पिता और भाई के परिवार की एक अपेक्षा हमसे हुयी है.मेरे भाई का बेटा
जो कसबे के स्कूल में पढ़ रहा था वहां के शिक्षा स्तर में कमी से और
पारम्परिक लाड दुलार के बीच पलते हुए अपेक्षित रूप से प्रदर्शन नहीं कर पा
रहा था.मेरे भाई और उनकी पत्नि ने यह चाहा कि उसे हम अपने साथ रख आगे
पढ़ायें और उचित कोचिंग दिलवाएं.आजकल ऐसी पारिवारिक जिम्मेदारी लेते और देते शिकवे शिकायतों से बाद में
आपसी कटुता के उदाहरण जो द्रष्टव्य होते हैं उनका विचार कर मैं और पत्नि
प्रारंभ में दुविधा में थे. हमने भाई और उसकी पत्नि की अपने बेटे की भविष्य
की खुशियों की लालसा को पहचाना . हमारे किशोरवय भतीजे की आँखों में तैरते
उन सपनों को देखा जिसमे वह भविष्य में बहुत कुछ कर गुजर एक सफल व्यक्ति
होना चाहता है.जबकि अब तक उसकी मेहनत और शिक्षा उस स्तर की नहीं हो सकी है
जो उसे उन बुलंदियों पर पहुंचा सके .हमने हमारे माता पिता की हमसे अपेक्षाओं को पहचान में कोई भूल नहीं की
.वतुतः मेरे माता पिता के लिए उनके पोते पोतियाँ चाहे वे हमारे बच्चे हों
या मेरे भाई के बच्चे हों एक बराबर हैं.
हमने यह भी समझा कि नौकरी के कारण हम दूर रहते हैं और अपने माता पिता को वह सहारा नहीं दे पाते हैं जो वृध्दावस्था में बेटे बहु से अपेक्षित होता है .यह सहारा मेरे भाई और मेरे बेटे परिवार और व्यवसाय में उनके साथ रह निभा पाते हैं.हमने यह भी समझा कि मेरे शिक्षा पर मेरे पिता ने भाई कि तुलना में ज्यादा व्यय किया था . माता पिता के ऋण जीवन में कुछ भी कर देने से पूरे नहीं उतारे जा सकते . हमें लगा कि आशंकाओं के बाद भी परोक्ष रूप से मेरे माता पिता की ही सेवा होगी अगर भतीजे की पढाई आगे हम अपने क्षत्र-छाया में कराएँ .आगे आकर हमने उनकी दुविधा आसान की और स्वयं उनके कम कहे को ज्यादा समझ भतीजे को अपने पास रख स्कूल और कोचिंग में उसका प्रवेश दिलवा दिया .
हमने यह भी समझा कि नौकरी के कारण हम दूर रहते हैं और अपने माता पिता को वह सहारा नहीं दे पाते हैं जो वृध्दावस्था में बेटे बहु से अपेक्षित होता है .यह सहारा मेरे भाई और मेरे बेटे परिवार और व्यवसाय में उनके साथ रह निभा पाते हैं.हमने यह भी समझा कि मेरे शिक्षा पर मेरे पिता ने भाई कि तुलना में ज्यादा व्यय किया था . माता पिता के ऋण जीवन में कुछ भी कर देने से पूरे नहीं उतारे जा सकते . हमें लगा कि आशंकाओं के बाद भी परोक्ष रूप से मेरे माता पिता की ही सेवा होगी अगर भतीजे की पढाई आगे हम अपने क्षत्र-छाया में कराएँ .आगे आकर हमने उनकी दुविधा आसान की और स्वयं उनके कम कहे को ज्यादा समझ भतीजे को अपने पास रख स्कूल और कोचिंग में उसका प्रवेश दिलवा दिया .
मेरी पत्नि को स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ तकलीफें हैं . हामी तो मेरी रही पर
विभागीय मेरी व्यस्तताओं के कारण बच्चे की सारी आवश्यकताओं चाहे वह
स्कूल,कोचिंग की व्यवस्थाओं में मार्केट की दौड़ा भागी हो चाहे सुबह जल्दी
उठ टिफिन तैयार करते घरेलु दैनिक दिनचर्या हो या बच्चे की बोलचाल से लेकर
नैतिक शिक्षा हो सारे ही कर्तव्य पत्नि ही निभा पा रही है.
लेख अपने गौरव गाथा के लक्ष्य से नहीं प्रस्तुत कर रहा हूँ पर व्यस्तताओं
में जो इस गहराई से जीवन पहलुओं को नहीं देख या सोच पाते हैं वह उनकी आसानी
के लिए लिखा गया है.
कुछ कर्तव्य जो आज कम निभाए जा रहे हैं उस पर विवेक बुध्दि आकृष्ट करना
चाहता हूँ. इन्हें निभाने में थोडा त्याग लगेगा यह तो निश्चित है लेकिन
पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.थोडा थोडा सब इस दिशा में करें . परिवार की सेवा के माध्यम से हम समाज और
राष्ट्र की ही सेवा करेंगे . फिर समाज ज्यादा अच्छा हमें ही लगेगा और
व्यवस्था और दूसरों से हमारी शिकायतें तभी कम होगीं . हम दूसरों की
अपेक्षाओं की पूर्ती करेगें तो हम और दूसरों को परनिंदा की आवश्यकता न
पड़ेगी . ऐसे उदाहरण सभी के प्रेरणाकारी होगें . सोचिये छोटी ये बातें थोड़े
ये पारिवारिक त्याग क्या सामाजिक वातावरण को सुधारने में बेहद मददगार होगें
या नहीं.
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