Wednesday, March 20, 2019

पापा का स्पष्टीकरण

पापा का स्पष्टीकरण 

बेटियों की लालन पालन को लेकर हम हमेशा सजग तो थे किंतु कभी भी हमारा उनके प्रति लाड़ दुलार का अतिरेक प्रकट नहीं था. उन्हें दिखता था हमारा सख्त अनुशासन प्रिय होना। उन्हें मालूम रहता कि पढाई में परफॉर्म न करने पर हम नाराज होंगे. वे जानती कि उनकी सभी जिद हम नहीं मानेंगे. वे अनुभव करतीं कि उन्हें बहुत परिधान नहीं दिलाये जायेंगे. उन्हें ज्ञात था कि रात पार्टियों में जाना हम पसंद नहीं करते. उन्हें कई अवसर पर हमसे शिकायत रहती कि हम उनके बचपन या लड़कपन सुलभ थोड़ी चंचलता भी उनमें पसंद नहीं करते. शायद उन्हें हम 'दंगल' वाले पापा लगते थे.

छोटीं थीं वे नहीं समझ पाती थीं कि हम उन्हें जीवन की मजबूत वह बुनियाद देना चाहते थे जिस पर खड़ी होकर वे आत्म निर्भर बन सकें. जिसके होने से आज की दुनिया में मिलने वाली चुनौतियों में सहज जीवन यापन कर सकें. हमने देखा था पुरुषों पर संपूर्ण आर्थिक निर्भरता कभी कभी नारी पर शोषण का कारण होती है. जी हाँ हमारे लालन - पालन की इस विधि से उस समय प्रतीत यह होता कि हमारी बेटियाँ आजकल जितनी स्मार्ट नहीं बन रहीं हैं. हमारे कुछ करीबियों को लगता कि बेटियों को हम जितने आर्थिक कमजोर हैं नहीं उससे ज्यादा अभाव में पाल रहे हैं। ऐसा सब करने के पीछे हमारा उद्देश्य उन्हें घर-परिवार चलाने में अपना (आभासी) संघर्ष दिखाना होता था, जिसे देख वे घर-परिवार और समाज के प्रति ज्यादा उत्तरदायित्व के संस्कार ले सकें. हमारे करीबियों में कुछेक ऐसे चिंतित भी होते कि ऐसे में ये बेटियाँ हमसे मिलने वाले अनुराग अभाव को बाहर तलाश कर भटक सकतीं हैं. 

लेकिन नहीं, हालाँकि हमने डिग्री इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की ली थी मगर हम दक्ष लाइफ इंजीनियरिंग में हुए थे. हमने अपनी बेटियों का लड़कपन जाते जाते उन्हें अपना दोस्त बना लिया था. हम ऐसे दोस्त थे जिससे वे छोटी छोटी से लेकर हर किस्म की शंकाओं को डिसकस करने में संकोच नहीं करतीं. अब तक  दोनों ने यह अहसास कर लिया था कि पापा के परामर्श ही उनकी सबसे ज्यादा भलाई के होंगे. किसी समय स्मार्टनेस पर भी हमने उन्हें बताया था कि आज (पढाई करते हुए) भले ही तुम अपनी फ्रेंड्स जितनी स्मार्ट नहीं किंतु जब योग्यता तुममें स्वयं के बल पर होगी और धन तुम्हारे वॉलेट में होगा, स्मार्टनेस तुममें भी जल्द आ जायेगी. आज तुम दुनिया भ्रमण करने से वंचित हो, अपनी योग्यता ला सकीं तो भ्रमण करते थक जाओगी. हमारा उन्हें ऐसा आश्वस्त करना शायद तब उन्हें संदेह में भी डालता रहा हो.

 खैर साहब- अब बारी आनी थी दो मौकों कि जब हमें बेटियों के रिश्ते करने थे. इन मौकों पर हमें उन पर अपनी बंदिशें याद रहीं कि हमने अपनी- अति अनुशासन प्रियता , पढाई में परफॉर्म की अनिवार्यता, परिधान पर हदें, पार्टियों पर निषेध, बचपन या लड़कपन सुलभ चंचलता के लिए छूट नहीं देना, प्रकट में अनुराग अभाव, और भ्रमण पर रोक आदि से इन बातों के मजे से उन्हें वंचित रखा था. ऐसे में हमें अब इनके लिए वह परिवार चाहिए थे जिनमें सभी चीजें उन्हें उपलब्ध रहें. हमें उनके लिए ऐसे वर चाहिए थे जो उनकी योग्यता का सम्मान करें, उन पर विश्वास कर उनके निर्णयों को सहमत करें और उनसे भरपूर प्यार अपने लिए लेकर उन्हें भरपूर प्यार उन्हें भी दें। यहाँ हमें सही चयन की बुध्दि भी चाहिए थी और नियति का फेवर भी चाहिए था ताकि हमारी सभी बातों पर हमारी बेटियों का विश्वास सही सिध्द हो सके . 

अंत में यह भी लिखना न्यायोचित होगा कि अब तक लालन पालन में हमने मात्र अपने योगदानों का उल्लेख किया है. नियति की बात हम कर रहे हैं तो यहाँ स्पष्ट करते र्हैं कि नियति ने हमें हमारी पत्नी बेहद समझदार दिलाई थी. और उनकी समझदारी से संभव हुआ था कि हमारे बच्चों से हमारी एकतरफा अपेक्षा को वे संतुलित कर देतीं तथा बच्चों के मन में बावजूद सख्ती के हमारा सम्मान सुनिश्चित करतीं.

-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-03-2019

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