मनुष्य जीवन की सफलता
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मनुष्यों में पिछली भूलों से सीख लेकर आगामी जीवन में सुधार करने की अद्भुत प्रवृत्ति होती है. प्राचीन अनेकों बुराई और अज्ञान से निजात उसे इसी कारण मिला है. जब कोई सुविधाजनक स्थिति में ज्यादा समय रह जाता है तो उस पर लापरवाही छाने लगती है. लापरवाही का परिणाम नई भूलों और नई बुराइयों में परिलक्षित होने लगता है. आज के उन्नत हुए मनुष्य समाज में , जो सभ्य भी कहा जाता है , सुविधाजनक स्थिति जनित कई बुराई उत्पन्न हुई हैं ,हो रही हैं. हमें सजग हो लापरवाही छोड़ इन पर काबू पाना है.
आज सर्वप्रथम जिस बुराई पर नियंत्रण की आवश्यकता है वह, मनुष्य जीवन की सफलता की परिभाषा सही करने की है.
वास्तव में आज सुविधा और अनुकूलताओं के वश में अपने पर से आपा जीवन के अधिकांश समय में हटा हुआ है. जीवन में सफलता ,"वैभव और भव्यता" को ही परिभाषित कर दिया गया है . हर किसी का लक्ष्य इस तरह जीवन को सफल कर लेने का हो गया है. जीवन व्यस्ततायें इस हद तक बढ़ा ली गई हैं कि क्या खा रहे हैं ,क्यों खा रहे हैं इस तक की सुध नहीं है.
ना तो खाना ,पहनना ,सुविधा इत्यादि संतोष देता है , ना ही मुहँ पर मिलता झूठा मान सम्मान ही संतोष कारक है. जीवन उत्तर्राद्ध में स्वास्थ्य गत विपरीतता और अकेलेपन में यह अनुभव करते मनुष्य को जब यह सच समझ आता है तब तक देर हो चुकी होती है. कुछ मानवता और समाज के लिए रचनात्मक ,सृजनात्मक और निस्वार्थ परहितों के लिए कुछ करने का उसका सामर्थ्य बहुत हद तक समाप्त हो चुका होता है.
मनुष्य जीवन जीने का अभिप्राय सिर्फ धन ,सुविधाओं का बटोरना ही नहीं होता है. जीवन के कुछ सार्थक उद्देश्य होते हैं , जीवन सफलता की परिभाषा परिवर्तित करने की आवश्यकता है. समाज में व्याप्त बुराई इस तरह से ही नियंत्रित की जा सकेंगी.
अन्यथा खाने का क्या है ? कितना ही अच्छा खा लिया अगले समय फिर भूखे के भूखे ,जीवन भर खाते रहे अतृप्त के अतृप्त. अच्छा पहना , कल फिर नया चाहिए ……
"मृग मरीचिका और मृग तृष्णा को मृग में तो देखा ,समझा , किन्तु स्वयं में उत्पन्न हो गयी, यही नहीं समझ सके. ....
नहीं ऐसी भ्रम सफलता से निकलना और निकालना होगा.
-- राजेश जैन
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मनुष्यों में पिछली भूलों से सीख लेकर आगामी जीवन में सुधार करने की अद्भुत प्रवृत्ति होती है. प्राचीन अनेकों बुराई और अज्ञान से निजात उसे इसी कारण मिला है. जब कोई सुविधाजनक स्थिति में ज्यादा समय रह जाता है तो उस पर लापरवाही छाने लगती है. लापरवाही का परिणाम नई भूलों और नई बुराइयों में परिलक्षित होने लगता है. आज के उन्नत हुए मनुष्य समाज में , जो सभ्य भी कहा जाता है , सुविधाजनक स्थिति जनित कई बुराई उत्पन्न हुई हैं ,हो रही हैं. हमें सजग हो लापरवाही छोड़ इन पर काबू पाना है.
आज सर्वप्रथम जिस बुराई पर नियंत्रण की आवश्यकता है वह, मनुष्य जीवन की सफलता की परिभाषा सही करने की है.
वास्तव में आज सुविधा और अनुकूलताओं के वश में अपने पर से आपा जीवन के अधिकांश समय में हटा हुआ है. जीवन में सफलता ,"वैभव और भव्यता" को ही परिभाषित कर दिया गया है . हर किसी का लक्ष्य इस तरह जीवन को सफल कर लेने का हो गया है. जीवन व्यस्ततायें इस हद तक बढ़ा ली गई हैं कि क्या खा रहे हैं ,क्यों खा रहे हैं इस तक की सुध नहीं है.
ना तो खाना ,पहनना ,सुविधा इत्यादि संतोष देता है , ना ही मुहँ पर मिलता झूठा मान सम्मान ही संतोष कारक है. जीवन उत्तर्राद्ध में स्वास्थ्य गत विपरीतता और अकेलेपन में यह अनुभव करते मनुष्य को जब यह सच समझ आता है तब तक देर हो चुकी होती है. कुछ मानवता और समाज के लिए रचनात्मक ,सृजनात्मक और निस्वार्थ परहितों के लिए कुछ करने का उसका सामर्थ्य बहुत हद तक समाप्त हो चुका होता है.
मनुष्य जीवन जीने का अभिप्राय सिर्फ धन ,सुविधाओं का बटोरना ही नहीं होता है. जीवन के कुछ सार्थक उद्देश्य होते हैं , जीवन सफलता की परिभाषा परिवर्तित करने की आवश्यकता है. समाज में व्याप्त बुराई इस तरह से ही नियंत्रित की जा सकेंगी.
अन्यथा खाने का क्या है ? कितना ही अच्छा खा लिया अगले समय फिर भूखे के भूखे ,जीवन भर खाते रहे अतृप्त के अतृप्त. अच्छा पहना , कल फिर नया चाहिए ……
"मृग मरीचिका और मृग तृष्णा को मृग में तो देखा ,समझा , किन्तु स्वयं में उत्पन्न हो गयी, यही नहीं समझ सके. ....
नहीं ऐसी भ्रम सफलता से निकलना और निकालना होगा.
-- राजेश जैन
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