Friday, March 28, 2014

परिणय सूत्र में बंध , सुपुत्री की विदाई की कल्पना से द्रवित पितृ-ह्रदय

परिणय सूत्र में बंध , सुपुत्री की  विदाई की कल्पना से द्रवित पितृ-ह्रदय
------------------------------------------------------------------------------------
प्राण से प्यारी ह्रदय गगन पर छाती है
नन्ही कृति भेंट प्रकृति से हमें होती है

भेजी विधि ने दे काया नन्ही सी
अब बढ़ी हुई ले सुंदरता चंदा सी
बचपन में खेले खेल अनूठे और
ज्ञान ,संस्कारों से बनी निधि सी

भविष्य हेतु पितृ सपनों से बढ़ कर
बेटी बनी अमोल निधि लिख पढ़ कर
पसंद किसे दे देना निधि का होता है
सौंप रहा संजोई निधि खुश दिख कर

पिता हर्ष मनाये ये समझ न पाया
बेटी विवाह का अब समय जो आया
लाया था हर्षित हो फेरे कर वधु को
बेटी रिचिका के विदा पे रोना आया

पहली नहीं बेटी जो ससुराल जाती है
रही प्राण पिता की पराई हो जाती है
देखे कई विवाह न रीति कटु लगी थी
फूटा ह्रदय बाँध आँख रोये ही जाती है


अप्रिय जन्मना बेटी का अचम्भा क्यों?
क्या इसलिए? ये विदाई अप्रिय होती है.

--राजेश जैन
28-03-2014

No comments:

Post a Comment