आनंदमय और सार्थक जीवन
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अरबों मनुष्य ,सभी के ह्रदय ,मन में अच्छी-बुरी अंतहीन इक्छायें
निर्वात में इन इक्छाओं-कामनाओं का आमना-सामना
एक की इक्छाओं की पूर्ती दूसरे के अहित का कारण
यानि सभी दिशाओं से एक केंद्र बिंदु पर वैचारिक - लालसाओं के यातायात का अवरुध्द (टकराव) होना
ना तो व्यक्तिगत , ना मानवता और ना ही समाज को विशेष कुछ इससे हासिल।
इक्छाओं को सर्वहित के लिए नियंत्रित और व्यवस्थित करना
अब सभ्यता के दिशा में और उपलब्धि के लिए नितांत आवश्यक है।
अपने जीवन को सुविधाजनक और तुलनात्मक रूप से सुरक्षित कर पूर्व पीढ़ीयों ने अपने दायित्व निभाए हैं और मानव सभ्यता के अनेक कीर्तिमानों पर पहुँचे हैं ,स्थापित किये हैं।
हमारी पीढ़ी को इसे सिर्फ बनाये रखना में ज्यादा श्रम लगाना आवश्यक नहीं है , बल्कि प्रोत्साहन और प्रेरणा "इक्छाओं को सर्वहित के लिए नियंत्रित और व्यवस्थित करने " में देना है। इसमें विशेष मानसिक और शारीरिक श्रम खर्च करना है।
वर्त्तमान और आगामी पीढ़ियों के जीवन को ज्यादा आनंदमय और सार्थक करने का यह अपना दायित्व समझना और उसका निर्वाह करना है।
--राजेश जैन
14-03-2014
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अरबों मनुष्य ,सभी के ह्रदय ,मन में अच्छी-बुरी अंतहीन इक्छायें
निर्वात में इन इक्छाओं-कामनाओं का आमना-सामना
एक की इक्छाओं की पूर्ती दूसरे के अहित का कारण
यानि सभी दिशाओं से एक केंद्र बिंदु पर वैचारिक - लालसाओं के यातायात का अवरुध्द (टकराव) होना
ना तो व्यक्तिगत , ना मानवता और ना ही समाज को विशेष कुछ इससे हासिल।
इक्छाओं को सर्वहित के लिए नियंत्रित और व्यवस्थित करना
अब सभ्यता के दिशा में और उपलब्धि के लिए नितांत आवश्यक है।
अपने जीवन को सुविधाजनक और तुलनात्मक रूप से सुरक्षित कर पूर्व पीढ़ीयों ने अपने दायित्व निभाए हैं और मानव सभ्यता के अनेक कीर्तिमानों पर पहुँचे हैं ,स्थापित किये हैं।
हमारी पीढ़ी को इसे सिर्फ बनाये रखना में ज्यादा श्रम लगाना आवश्यक नहीं है , बल्कि प्रोत्साहन और प्रेरणा "इक्छाओं को सर्वहित के लिए नियंत्रित और व्यवस्थित करने " में देना है। इसमें विशेष मानसिक और शारीरिक श्रम खर्च करना है।
वर्त्तमान और आगामी पीढ़ियों के जीवन को ज्यादा आनंदमय और सार्थक करने का यह अपना दायित्व समझना और उसका निर्वाह करना है।
--राजेश जैन
14-03-2014
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