Sunday, March 23, 2014

नारी पर अनाचार ,अत्याचार को फाँसी

नारी पर अनाचार ,अत्याचार को फाँसी 
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नारी जबरन उठवा ली गई.
नारी पर अनाचार ,अत्याचार किये गए .
नारी गृह हिंसा में निरुपाय एकांत में सिसकती रही.
एकांत राह में नारी के साथ छेड़छाड़ हुई .
नारी जबरन नृत्य , देह प्रदर्शन इत्यादि को बाध्य की गई .
विवाह और अन्य प्रलोभन दे नारी का दैहिक शोषण के बाद उसे अपनाने से मना किया गया .
उसके भूखे बच्चे की रोटी के लिए नारी पर जबरन अवैध दैहिक सम्बन्ध थोपा गया .
मन बहलाव के लिए बाहुबली ,धनबली द्वारा गृह में पत्नी से अलग अन्य नारी को रखा  और पत्नी तथा  उस अन्य नारी दोनों का असम्मान किया  गया.
नारी को दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया गया
ऐसे और भी अनेकों अपराध नारी पर ......
नारी का ऐसा अपमान आज ही नहीं , कम अधिक रूप में हर काल में ,हर समाज ,हर क्षेत्र ,हर धर्मावलंबियों द्वारा ,  पढ़े लिखे या अनपढ़ द्वारा किया जाता रहा है .

वह तब , जब मानव समाज के अस्तित्व के लिए उसका महत्त्व ,योगदान पुरुष  के ही समतुल्य है , बल्कि पुरुष से ज्यादा ही था/ है.

नारी और पुरुष दोनों के जन्म के जिससे मानव अस्तित्व और निरंतरता सुनिश्चित होता है, के लिए दोनों ही जिम्मेदार होते है , जननी के रूप में पुरुष से अधिक श्रम साध्य ,समयसाध्य , कष्टप्रद कार्य को नारी अंजाम देती है. शिशु को पहले गर्भ में रखकर और प्रसव वेदना सहकर . प्रसव के समय उसके प्राण पर बन आती तब  .
नारी के इस त्याग का नारी की संतान होने से ऋण हमपर होता है. जिस की ऋणमुक्ति के लिए नारी ने ज्यादा हमसे चाहा भी नहीं , लेकिन धिक्कार हमें , हम  उनका ठीकठीक सम्मान भी नहीं कर पाते हैं .
नारी पर अत्याचार ना हों , उसके लिए हमारी संस्कृति ,हमारे धर्म , हमारे संस्कार हमें जागृत करते हैं .
समय समय पर रहे राजतन्त्र , लोकतंत्र या अन्य व्यवस्थाओं में नारी पर के इन अत्याचारों की रोकथाम के लिए दंड प्रावधान किये गए हैं. 
आज नारी में जागृति आई है . अपने ऊपर होते इन अत्याचारों के विरुध्द उनके स्वर बुलंद हुए हैं.  नारी अत्याचारों पर कठोरतम दंड का दबाव आज न्यायपालिका और व्यवस्था पर है. 
व्यवस्था तय कर रही है .  अनाचार ,दुराचार पर फाँसी हो या नहीं तय होगा , फाँसी दी भी जाती रही है. तब भी ये अपराध अस्तित्व में बने हुए हैं.

इन अपराधों का सदाकाल के लिए निर्मूल होना , आवश्यक है.  नारी संतान होने के कारण हम पर दायित्व भी है.

नारी अत्याचार या अनाचार के दोषी को फाँसी हो या नहीं तय करने वाले तय करें.  लेकिन "नारी पर अत्याचार , अनाचार को फाँसी " अवश्य होनी चाहिए.  अर्थात पुरुष ह्रदय में उत्पन्न होते उस विचार का समूल नाश होना चाहिए जो पुरुष को ऐसे कृत्य के लिए उकसाता है.

असम्भव लगती यह चुनौती "नारी पर अत्याचार , अनाचार को फाँसी "  हमें स्वीकार करनी  होगी .
इसके लिए मनोवैज्ञानिक शोध करें.
चिकित्सा विज्ञान खोज करे , इस रोगी मस्तिष्क ग्रंथि को ठीक करें .
साहित्यकार प्रेरणा दें .
धर्म और समाज सुधारक संस्कारित करें.
और हममे से प्रत्येक का  जिसका जो सामर्थ्य है , उस अनुरूप योगदान करे.
यह पेज "नारी- चेतना और सम्मान रक्षा" मात्र इस अपेक्षा निर्मित है.  इससे जुड़ें और अपना दायित्व निर्वाह करने में समर्थता अनुसार (धन से नहीं)  वैचारिक रूप से प्रेरणा और उपाय पर विमर्श करते हुए इसे पुष्ट करें .चुनौती ग्रहण किये  जाने हेतु इसे प्रचारित और प्रसारित भी करें

" नारी पर अनाचार ,अत्याचार को फाँसी " होनी ही चाहिए .

--राजेश जैन
24-03-2014

 

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