Sunday, August 8, 2021

 सुनहरे पल और राष्ट्रगान … 

अंततः प्रतीक्षा थी जिस बात की, वह सुखद परिणाम आया था। हर भारतवासी की हार्दिक अभिलाषा थी कि टोक्यो ओलिंपिक में, हमारा कोई एक बेटा या बेटी, भारत के लिए कम से कम एक स्वर्ण पदक तो जीते। अंततः हम भारतीयों की यह अभिलाषा, बेटे #नीरज_चोपड़ा के माध्यम से पूर्ण हुई थी। 

वैसे तो हम भारतवासी एक दूसरे की प्रसन्नता में, परस्पर समस्या एवं चुनौती खड़ी कर देते हैं। हमारे समाज में दूसरे की ख़ुशी में, हमारा खुश हो जाना कम ही देखने में मिलता है। यह मगर, इस स्वर्णिम पल की विलक्षणता थी 

कि इस क्षण में हममें से प्रत्येक आनंद विभोर एवं गर्वित अनुभव कर रहा था।  

मैंने भी जैवलिन थ्रो के इस फाइनल का टीवी पर प्रसारण अपनी धड़कनों को नियंत्रित रखते हुए पूरा देखा था। आनंद के इन पलों में, रचना (पत्नी) भी आनंदित हो पाए इस भावना से, जब विक्टरी सेरेमनी आरंभ होने को हुई तब मैंने रचना को टीवी के सामने बुला लिया था। हम दोनों ही टकटकी लगाए स्क्रीन को निहार रहे थे। चेक रिपब्लिक के दो मेडलिस्ट, खिलाडियों को मेडल वितरित किए जा चुके थे।

अब पोडियम पर आने के लिए नीरज ने, अपना प्रथम पग ऊपर रख दिया था। 

हमारे समक्ष, जीवन में कभी कभी आती उस अपार प्रसन्नता की घड़ी, बस आने ही वाली थी। टोक्यो के ओलिंपिक स्टेडियम से, गुंजायमान होने वाली, हमारे #राष्ट्रगान की धुन हमारे कर्णों से होती हुई, हमारे तन मन को प्रसन्नता से ओतप्रोत करने ही वाली थी। तभी बिजली का व्यवधान आ गया। 

विशाल जनसंख्या वाले हमारे देश में, ऐसी सर्व व्याप्त प्रसन्नता के पल कम ही होते हैं। बिजली प्रदाय अवरोध से अभी मिलने वाले आनंद में, हम दोनों के सामने विघ्न उपस्थित हो गया था। इससे हमें अत्यंत खीझ हो रही थी। 

मैंने बिजली विभाग में जीवन भर अपनी सेवा दी हैं। अतः बिजली व्यवधान में मेरे मुँह से ऐसे अपशब्द नहीं निकले थे, जिनकी आजकल की वेब सीरीज में बौछार लगी रहती है। 

अपशब्दों को हम अपनी पुरातन पंथी में अपने बेटे-बेटियों को सुनते-कहते देखना, अच्छा नहीं मानते थे। यहाँ कटुता बोध सहित मैं लिख रहा हूँ कि कुछ ऐसे अपशब्द डिस्ट्रीब्यूशन में सेवा देते हुए, अक्सर दिन रात, मुझे फोन पर सुनना पड़ते थे। 

हमारी सोसाइटी में बिजली का बैकअप उपलब्ध है। व्यवधान के एक मिनट से कम समय में उससे बिजली प्रदाय रिस्टोर कर दिया गया था मगर टीवी फिर स्टार्ट होने में और ‘सोनी लाइव’ आरंभ करने में कुछ समय लग गया था। इस प्रक्रिया में लग गए, लगभग तीन मिनट में प्रसारण पुनः दिखाई देने लगा था, तब तक स्वर्णिम पल में हमारा राष्ट्रगान बज कर समाप्त हो चुका था। स्क्रीन पर वीमेन्स हाई जम्प दिखलाया जाने लगा था। 

एक सहज एवं अभूतपूर्व प्रसन्नता मिलने का अवसर हमारे सामने से खो गया था। हम दोनों मन मसोसकर रह गए थे। शिकायत किससे और क्या लिखूँ, मैं ही नहीं मेरे भारतवासी, आप भी तो मन मसोसकर रह लेने के आदी हैं। 

हममें से हर कोई व्यक्तिगत सुख तो चाहता है। फिर भी हम ऐसा समाज निर्मित कर पाने में सहयोग कहाँ कर पाते हैं, जिसमें हम सभी का सुख और हमारे बच्चों का सुखद भविष्य सुनिश्चित होता हो। 

कुछ प्रश्न रख कर मैं, अपने #मन_की_बात समाप्त कर रहा हूँ कि -

हम में से वे लोग जो अपशब्द के चलन को आधुनिकता जैसे परोस रहे हैं, क्या वे इस देश या इस समाज को, वास्तव में अपना मानते हैं? 

क्या ऐसा किया जाना, उनके राष्ट्र और समाज दायित्व बोध का द्योतक है?

और - 

क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कि जिन गालियों एवं अपशब्दों में हमारी माँ, बहन और बेटियों की अस्मिता, शाब्दिक रूप से तार तार की जाती है, वे अपशब्द, हमारी बहन, बेटियाँ भी स्वयं उनके अर्थ समझे-नासमझे (आधुनिक कहलाने के लिए) प्रयोग करने लगी हैं?  

हमें गौर करना होगा कि हमारी हर पुरानी परंपरा त्याज्य और आधुनिक चलन ग्राह्य करने योग्य है या नहीं …. 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

09-08-2021  

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