Wednesday, August 25, 2021

सीजन 2 - मेरे पापा (3)…

 

सीजन 2 - मेरे पापा (3)…

मेरा प्रफुल्लित मुखड़ा ऐसा था जैसे उस पर लिखा हो कि रात, मेरी सुशांत से बात हुई है। हुआ यूँ था कि अगली सुबह जब मैं नाश्ते के लिए टेबल पर पहुँची तो मेरे पापा ने कदाचित यह बात मेरे मुख पर से पढ़ ली थी। उन्होंने मुझे देखते ही पूछा - बेटी, सुशांत से तुम्हारी बात हुई है क्या? 

मैंने इसे समझते हुए, उनके पैर छुए थे। फिर सीधा उत्तर नहीं देते हुए कहा था - पापा, रात अधिक हो गई थी इसलिए उन्होंने मुझे बताया था कि वे सुबह आपसे बात करेंगे। अब तक क्या, उनका कॉल नहीं आया है?

मैं इतना ही कह पाई थी तभी पापा के मोबाइल पर, सुशांत की तस्वीर सहित रिंग बज उठी थी। पापा ने मुझे मुस्कुरा कर देखा, कहा - लो आ गया, बेटे का फोन! 

कहने के साथ उन्होंने कॉल रिसीव किया था। वे बात करने लगे थे। तब मैंने किचन में जाकर मम्मी जी के चरण छुए थे। उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया था। 

फिर कहा था - तुम दोनों, जुग जुग जियो, मेरे बेटे!

उनके आशीर्वचन में मम्मी जी ने, सुशांत को मेरे साथ जोड़ा था। इसे सुनकर मेरी  आनंद अनुभूति चरम पर पहुँच गई थी। मैं सोचने लगी थी, जैसे मम्मी जी के आशीर्वचन में, सुशांत मेरे साथ हैं वैसे ही जीवन में सदा वे मेरे साथ रहें। 

मैंने, उन्हें बताया - मम्मी जी वीडियो कॉल पर पापा, सुशांत से बात कर रहे हैं। आप भी उन्हें जॉइन कर लीजिए। मैं टेबल पर जलपान लगाती हूँ। 

यह सुनकर मम्मी जी, खुश होकर टेबल पर पहुँच गईं थीं और मैं, बनाए जा रहे नाश्ते-चाय का काम करने लगी थी। जब सब तैयार हो गया तो मैंने टेबल पर जलपान लगा दिया था। मम्मी-पापा, दोनों ही अब तक, सुशांत से बात करने में व्यस्त थे। मुझे देखकर, पापा ने सुशांत से कहा - 

बेटे लो तुम, रमणीक के दर्शन कर लो। देखो तो मेरी बेटी, आज साड़ी में कितनी दमक रही है। इसके मुख पर कांति यूँ विद्यमान है ज्यूँ साक्षात किसी देवी पर देदीप्यमान होती है।

पापा की बात सुनकर मुझे लाज आ गई थी। मेरे मुखड़े की आभा ने गुलाबी रंगत ले ली थी। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुशांत के, मेरे मुखड़े की इस रंगत को पसंद करने के राजदार, ‘मेरे पापा’ भी हैं। इस कारण उन्होंने, इंटेंशनली यह कहा है। 

आज मैं इतनी प्रसन्न थी कि अपने लजाने के भाव को नियंत्रित करने की मैंने, कोई कोशिश नहीं की थी। मैंने लजाते हुए ही पापा के द्वारा मेरी ओर बढ़ाया गया  मोबाइल लिया था। मुझे यूँ लजाता देखकर सुशांत, हर्षातिरेक से हँस रहे थे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर, मुझे नमस्कार कहा था। 

आज उदित हुए सूरज की नव किरणें मुझ पर भिन्न तरह का असर कर रहीं थीं। मैं सबके बीच लजा तो रही थी मगर संकोच मुझे तनिक भी नहीं हो रहा था। मैंने मोबाइल टेबल पर ऐसे रखा था कि मैं, सुशांत को अच्छे से दिखाई दे पाऊँ। तब मैंने, उन्हीं की तरह दोनों हाथ जोड़े थे और कहा था - प्रणाम, मेरे पतिदेव! 

देव दर्शन के मेरे इस अभिनय पर सुशांत सहित सब खिलखिलाकर हँस रहे थे। सबकी हँसी थमी तब पापा ने कहा - 

हमारी भाषा में, पतिदेव शब्द से पति को देव बता दिया गया है मगर इसमें पत्नी शब्द के साथ ऐसा कोई प्रत्यय (Suffix) नहीं है। 

सुशांत कॉल पर बने हुए थे। वे हमारी बातें सुन रहे थे। सुशांत और मैं पापा की कही बात पर विचार करने लगे तब मम्मी जी ने कहा - 

देखिए जी, आप भाषा में दोष निकाल कर साधारण बात को, फेमिनिज्म का रंग नहीं दीजिए। हमारी संस्कृति में सामान्यतः वर, वधु से आयु में बड़ा होता है। इसलिए जैसे बड़ों के लिए आदरपूर्ण संबोधन होते हैं, यथा - बड़ी बहन एवं बड़े भाई के लिए दीदी, भाईसाहब, वैसे ही पति के लिए पतिदेव शब्द है। 

मम्मी जी के तर्क से हम सहमत हो रहे थे। तब सुशांत कहते दिखाई दिए - पापा, पापा!

मैंने समझते हुए कि सुशांत, पापा जी से कुछ कहना चाहते हैं, मोबाइल पापा जी के सामने कर दिया। तब सुशांत कहते सुनाई दिए -

पापा, मम्मी तो सही कह रही हैं मगर आप भूल कर रहे हैं। आप किसी को मम्मी का परिचय कराते हैं, याद कीजिए तब यही कहते हैं ना, ये, मेरी ‘धर्म’पत्नी हैं। आपके ऐसा कहने में गूढ़ अर्थ होता है कि ‘मेरा धर्म, पत्नी है’, अर्थात पत्नी में ही बस मेरी श्रद्धा है। 

मैंने सुशांत का साथ देते हुए आगे कहा - पत्नी के साथ भाषा में उपसर्ग (Prefix) ‘धर्म’ है।  

हम दोनों की बात पर सब हँसने लगे थे। पापा ने अपनी हँसी पर काबू करते हुए कहा - ये लो शरारतियों, तुम दोनों भी मम्मी की टीम में शामिल होकर मेरी लेग पुलिंग करने लग गए हो। 

ऐसी हँसी ठिठोली के बीच अंत में सुशांत ने कहा - रमणीक, मैं आपसे बाद में बात करूंगा। अभी मुझे ड्यूटी पर जाना है। 

फिर ‘शुभ दिन’ कामना के आदान प्रदान के बाद कॉल खत्म किया गया था। आज बहुत दिनों बाद घर में हर्ष, उल्लास व्याप्त था। हमने आनंद पूर्वक नाश्ता किया था। फिर सब दैनिक कार्यों में लग गए थे। मैं भी ऑफिस जाने की तैयारी करने, अपने कक्ष में आ गई थी। 

अब दिन, प्रतिदिन भारत और चीन के बीच एलएसी पर स्थिति सुधरते जा रही थी। मुझे, सुशांत के कॉल, पूर्व की भांति नियमित आने लगे थे। रात्रि सोने के समय तो उनका कॉल आ ही जाता था। हम सभी के मन में से आशंकाएं एवं भय छँट गए थे। तब भी ‘मेरे सईया बिना की सेज’, मुझे अखरती थी। अब तो मेरा तन-मन सुशांत से मिलने को अत्यंत व्याकुल रहता था। मगर मुझे उनसे मिलने का, कोई उपाय नहीं सूझता था। 

ऐसे में ही एक दिन समाचार आया कि फ्रांस से भारत को पाँच नए राफेल मिल रहे हैं। उस दिन मेरे ऑफिस में इसे लेकर चर्चा गरम थी। 

हमारा विवाह कोरोना काल में सीमित अतिथियों की उपस्थिति में सादगी में हुआ था। यद्यपि मेरे विवाह हो जाने की जानकारी ऑफिस में थी। तब भी मेरे पतिदेव एयरफोर्स में हैं, यह कोई नहीं जानता था। दोपहर बाद, मैं जब कैंटीन में कॉफी ले रही थी, तब पास की टेबल पर मेरे चार सहयोगी भी राफेल को लेकर चर्चा कर रहे थे। राफेल का नाम सुनते ही मेरे कान उनकी बातों पर लग गए थे। 

मेरा एक सहकर्मी जिसका और मेरा प्रोजेक्ट एक ही था वह, मुझे विचित्र बात कहता सुनाई पड़ा - 

भारत, फ़्रांस से इतने कीमती राफेल क्रय तो कर रहा है, मगर पता है यह पाकिस्तान को डराने का प्रोपेगेंडा मात्र है। चीन इससे डरने वाला नहीं है। चीन जानता है कि अभी राफेल जेट, भारत के लिए फ्रेंच पॉयलट ही उड़ा रहे हैं। जो युद्ध होने की स्थिति में भारत के लिए नहीं लड़ेंगे। 

यह सुनकर मेरे मन में जो प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई थी। उसे शब्द रूप में शेष तीन सहयोगी में से एक ने कह दिया था - 

सुन यार, तेरे तरह के लोगों को मैं अच्छे से जानता हूँ। तुम ऐसे लोग हो जिसे भारत के समर्थ, शक्तिशाली और विकसित होने की बात पसंद नहीं आती है। आप तरह के लोग, भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से बड़े शत्रु हैं। यह तथ्य जानकर भी भारत, तुम लोगों को सम्मान और उन्नति के समान अवसर देता है। हम आशा करते हैं कि कभी तो तुम जैसे लोग सुधरेंगे। अपनी मातृभूमि के लिए कभी तो तुममें श्रद्धा जाग्रत होगी।  

मुझे लगा कि यह बात उनमें चल रही बहस को गर्म कर देगी। अतः मैंने कॉफी का अंतिम घूँट लेकर तुरंत टेबल छोड़ी थी। कैंटीन से बाहर निकलते हुए, मैंने अपने सहकर्मी की बात सुनी थी - 

मैं समझ रहा हूँ कि तुम कहना क्या चाहते हो। मुझे सीधे गद्दार कहते हुए तुम्हें डर लग रहा है, है ना? 

अपने क्यूबिकल की ओर बढ़ते हुए मैं सोच रही थी कि ऐसे भी लोग होते हैं, ‘चित और पट’ दोनों, उनकी ही होती है। ये लोग भारत के वीरों की क्षमता और साहस को नकारने में सुख पाते हैं। ये ऐसे भारतीय होते हैं जो अपने छोटे छोटे मंतव्यों के लिए, भारत का समग्र विकास एवं सुखद समाज देखना पसंद नहीं कर पाते हैं। तिस पर कोई इन्हें ऐसा बता दे तो ये अपने को पीड़ित (Victim) बताने लगते हैं। मैं सोच रही थी कि अच्छा है यहाँ के लोग, यह नहीं जानते हैं कि भारत के पराक्रमी राफेल पॉयलेटों में से एक, सुशांत मेरे पतिदेव हैं। 

उस रात कॉल पर अपने सहकर्मी की बात, सुशांत से कहते कहते मैंने अपने को रोक लिया था। मैंने तब सोचा था कि ‘नहीं’, यह समय उन्हें ऐसी बातें बताने का नहीं है। इसे सुनकर कहीं उन्हें, यह विचार व्यथित न कर दे कि अपने प्राण दाँव पर लगाकर, वे ऐसे भारतीयों की भी रक्षा करते हैं, जिनके हृदय में राष्ट्रप्रेम या अपनी मातृभूमि के लिए आदर नहीं होता है। 

फिर क्रमशः दिन व्यतीत होते जा रहे थे। एक रविवार मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि मेरे जीजू और मम्मी, हमारे घर आए थे। पापा एवं मम्मी जी उनकी आवभगत कर रहे थे। मैं मम्मी के चरण स्पर्श एवं जीजू का अभिवादन कर हँसते हुए उनके साथ थी। तब मम्मी बता रहीं थीं कि - 

जीजू, एक शुभ समाचार के मिष्ठान लेकर यहाँ आए हैं।  

पापा और मम्मी जी ने, मम्मी के आगे कहे बिना समझ लिया था। वे मम्मी एवं जीजू को बधाई देने लगे थे। तब नासमझ मैं पूछ बैठी थी - जीजू, समाचार क्या है यह भी तो बताइए? 

जीजू ने उत्तर में बताया - तुम्हारी दीदी, आगामी नए साल में, हमारे बच्चे को जन्म देने वाली है। 

इसे सुनकर दीदी की सोचते हुए, मैं अत्यंत प्रसन्नता अनुभव कर रही थी। मैंने जीजू से कहा - 

बधाई जीजू, मैं दीदी से लड़ाई करुँगी कि कॉल पर बात कर उन्होंने इतना शुभ समाचार मुझे पहले क्यों नहीं बताया। 

सब हँसने लगे थे। जीजू ने कहा - हाँ निकी, अवश्य लड़ाई करना। यह तुम्हारा अधिकार है, मगर तुम मुझसे न लड़ो, मेरा तो तुम आदर सत्कार करो। तुम्हारे विवाह के बाद यहाँ मैं पहली बार आया हूँ। 

उत्तर पापा ने दिया - जी, अवश्य ही आपका सत्कार किया जाएगा। पहली बार ही नहीं हर बार आपके आगमन पर, हमें हार्दिक प्रसन्नता होगी। 

फिर वे सब बातें करने लगे थे। मैं किचन में आ गई थी। यह समाचार मेरे अंतर्मन में रही अभिलाषा को बल प्रदान करने वाला हुआ था। मैं किचन में काम करते हुए अपनी कल्पनाओं में खो गई थी। अभी, मैं चाहने लगी थी कि सुशांत जितनी शीघ्रता से घर आ सकें आ जाएं। मैं यद्यपि प्रसव वेदनाओं के सुने गए किस्सों से, बच्चे को जन्म देने की बात से, अब तक डरती आई थी। मेरे पतिदेव सुशांत जैसे, अतिवीर अत्यंत भले व्यक्ति हैं सोचकर मुझमें यह भावना जाग्रत होने लगी थी कि मैं उनका अंश पाकर अपने गर्भ में, हमारे बच्चे को पोषित करूं। दीदी का गर्भवती होना सुनकर भी, मेरे सभी भय मिट रहे थे। अब मुझमें माँ बनने की भावना बलवती हो रही थी।   

ऊपर से सामान्य दिख रही मैं, मगर मन ही मन मुझमें यही कामना चलती रही थी। सुशांत के बच्चे की माँ होने की, मेरे मन में उतावली मच रही थी। इस बीच मम्मी एवं जीजू सबके साथ बड़ी आत्मीयता से रहकर, संध्या के समय चले गए थे। उनके जाने के बाद मैं रात होने की प्रतीक्षा कर रही थी। ताकि सुशांत से मेरी कॉल पर बात हो और मैं अपनी हार्दिक कामना, उनसे कह पाऊँ। 

रात बिस्तर पर लेटे हुए मैं अपनी अभिलाषा को लेकर विचार में पड़ी हुई थी। मैं सोच रही थी कि क्या सुशांत का मन पापा होने को नहीं करता होगा। पहले कभी मैंने इस गंभीरता से इस विषय पर नहीं सोचा था मगर आज मेरा मन चाह रात था कि हमारा छोटा सा एक बेबी हो जो सुशांत को पापा और मुझे तुतला कर मम्मा सा कुछ कहे।

फिर मेरे मन में विचारों ने करवट ली थी। अब मैं सोचने लगी कि सुशांत जब दूर लद्दाख में देश की रक्षा में लगे हुए हैं, ऐसे समय में उनको अपनी अभिलाषा बताना क्या उचित है। क्या, इससे देश रक्षा के उनके कर्तव्य के मार्ग में कोई रुकावट तो खड़ी नहीं हो जाएगी। मैंने तय किया कि मुझे भावनाओं में ऐसे नहीं बहना होगा। इस राष्ट्र विपत्ति के समय में सुशांत के कर्तव्य में, मुझे आड़े नहीं आना होगा। कॉल पर न कह कर, अपनी इस अभिलाषा को सुशांत से कहना मैं, उनके यहाँ आने तक स्थगित रखूंगी। मैं यह सोच रही थी तभी सुशांत का कॉल आया था। हममें सामान्य, वियोग श्रृंगार की बातें हुईं थीं। फिर सुशांत ने मुझसे पूछा - 

निकी, एक बात बताओ कि मुझे, अभी दस दिनों के लिए या दिसंबर में महीने भर के अवकाश पर, तुम्हारे पास आना चाहिए।  

अब मुझे सुखद अचरज हो रहा था। यह शायद टेलीपैथी का चमत्कार था कि मेरे मनोवेग बिन कहे उनको मिल रहे थे। मैं उनसे मिलन की कल्पना में खो गई थी। बात वियोग से संयोग श्रृंगार की बनते दिखाई देने लगी थी। आशा की किरणों से मेरा मनोमस्तिष्क आलोकित हो रहा था। सुशांत की कोमल वाणी सुनकर मैं सपने से यथार्थ में लौटी थी। वे कह रहे थे - उत्तर तो दो, रमणीक!  

मैं सपनों में खोई हुई सी कह रही थी - चार माह हमारे विवाह को हो गए। हम सिर्फ 5 दिन साथ रह पाए हैं। दिसंबर तक चार और माह यूँ बिना मिले रहने का मेरा मन नहीं होता। संभव हो तो आप अभी दस दिनों के लिए आ जाइए, प्लीज …                                          

 --राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

25-08-2021

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