Monday, August 23, 2021

सीजन 2 - मेरे पापा (2)…

 

सीजन 2 - मेरे पापा (2)…

सुशांत के कॉल को आया जानकर, मेरे हृदय में उत्पन्न प्रथम प्रतिक्रिया यह हुई कि आज मेरे प्रियतम के मुख से प्रस्फुटित वाणी में, मैं प्यार की वे बातें सुनने का सुख पाऊँगी। जिसे सुनने के लिए मेरे कर्ण सहित तन का रोम रोम, पिछले 20 दिनों में तरस गया था। मैंने पहले मोबाइल को अपने हृदय से लगाया था फिर मेरी ऊँगली ने स्क्रीन पर बटन को स्वाइप कर कॉल रिसीव किया था। 

तुरंत ही स्क्रीन पर मेरी आँखों के समक्ष भारतीय वायुसेना की वर्दी में, मेरे सुशांत दिखाई दिए थे। इसे देखकर मेरे नयनों को वैसी अभूतपूर्व तृप्ति मिलती प्रतीत हुई थी जिससे मिल रहा सुख कदाचित मेरे जीवन में मुझे कभी मिला हो, मुझे स्मरण नहीं आता था। 

जो दिखाई पड़ रहा था, उससे लग रहा था कि सुशांत ने अपना मोबाइल फोन टेबल पर रखा हुआ है। लग रहा था कि वे अभी ही ड्यूटी से लौटे हैं और अभी अपनी यूनीफार्म चेंज कर रहे हैं। उन्होंने यह करते हुए मोबाइल से दूर रहकर ही, मुझे देखा और फ्लाइंग किस किया था।   

पिछले कई दिनों से वीडियो कॉल पर, मैं उन्हें देखते रहने एवं उनकी मीठी बातें सुनने को मर रही थी। अभी जब प्रत्यक्ष ही, वे कॉल लगाकर मुझे दिखाते हुए अपने कार्य कर रहे थे तब मुझे लगा कि जैसे मैं और वे एक ही कक्ष में हैं। उनके फ्लाइंग किस का उत्तर मैं वाणी से देती, उसके पहले ही मेरी आँखे छलक आईं थीं। अच्छा हुआ तभी वे तौलिया लिए वॉशरूम में चले गए थे। 

मैं उन्हें रोते हुए नहीं दिखना चाहती थी। भारतीय सीमाओं की रक्षा के अपने कर्तव्य निभाने में, मेरे अश्रुओं के कारण मानसिक रूप से उनकी कठिनाई बढ़ जाए, यह मैं कदापि नहीं चाहती थी। मैं सोचने लगी थी कि इस कॉल पर मुझे, उनसे सुनना और उनसे कहना, क्या क्या अच्छा लगने वाला है। यह मेरे पापा, मम्मी एवं सुशांत से मिली संगत का प्रभाव था कि तभी मेरे मन ने कहा - 

रमणीक, तुम सुशांत से अपनी मानसिक पीड़ा बयान करने की कैसे सोच सकती हो? जब सीमाओं पर, सुशांत अत्यंत ही कठिन ड्यूटी निभा रहे हैं उस समय तुम्हें, यह सोचना और करना चाहिए जो उनको अच्छा लगे। यह विचार आते ही तत्क्षण मैंने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाया था। 

तब सामने स्क्रीन पर वॉशरूम से नाईट सूट का पैजामा एवं नीली बनियान पहने, बालों को तौलिए से पोंछते हुए, सुशांत दिखाई पड़ने लगे थे।

अब वे अपने मोबाइल के सामने खड़े थे मुझे मुस्कुराते हुए देखते हुए उन्होंने शर्ट पहनी थी। जब वे उसकी बटन लगाने लगे तब मैंने गौर किया कि उन्होंने, वह नेवी रोमांटिक सिल्क नाईट सूट, पहन लिया था जो मैंने भी इस समय पहने हुआ था। दरअसल यह उन सेट में से एक वह कपल सूट था जो हमने, विवाह वाले दिन ही ऑनलाइन बुलवाए थे। मुझे पहने देखकर तुरंत ही, उनका चपलता से यह सूट पहन लेना मेरे लिए अत्यंत ही मनभावन प्रसंग था। मुझे गर्व की अनुभूति हुई कि मेरे वीर योद्धा पतिदेव, मुझे प्रसन्न करने के कितने ही अनूठे ढंग जानते हैं। हम में अब तक कोई बात नहीं हुई थी तब भी सुशांत ने अपने को जिस तरह दिखाया था - यथा वायुसेना पोशाक में, फिर फ्लाइंग किस करके एवं अब मेरे से मैचिंग कपल नाईट सूट में, उससे मैं इतनी आनंदविभोर हुई थी कि मुझे लग रहा था कि क्या कोई कहे गए शब्द मुझे इतना आनंदित कर सकने में समर्थ हो सकते थे जितनी आनंदित मैं उनकी भाव भंगिमाओं (बॉडी लैंग्वेज) से हो रही थी!

वे मुझे प्रेम परिपूर्ण दृष्टि से निहार रहे थे, तब मैंने ही बात प्रारंभ की थी। मैंने पूछा - आप अभी ही ड्यूटी से लौटे लग रहे हैं और आपने नाईट सूट पहन लिया है, क्या आप रात्रि भोजन के लिए नहीं जा रहे हैं?

सुशांत ने हँसते हुए कहा - 

रमणीक, दूर बैठी वहाँ से भी आपको मेरी कितनी चिंता लगी रहती है। टेंशन ना करो मैं आते हुए मेस से खाना पैक करवा लाया हूँ। मैं, तुमसे बात करते हुए अभी ही भोजन ग्रहण करना आरंभ करने वाला हूँ। 

मैंने प्रतिरोध सा करते हुए कहा - 

जी नहीं, आप पहले तसल्ली से भोजन कर लीजिए, बहुत थके हुए आए होंगे। आप कॉल बाद में कर लीजिए, मैं प्रतीक्षा कर लेती हूँ। 

सुशांत ने अपने को दुखी दिखाते हुए कहा - 

इतनी निर्मोही न बनो, रमणीक! क्यों अपने दीवाने को इतना तरसाती हो। प्रतीक्षा तुमसे तो हो जाएगी मगर प्रतीक्षा में मेरा हाल बुरा हो जाएगा। 

यह कहते हुए सुशांत ने डिनर पार्सल खोल लिया था। मैं सोचने लगी थी कि निर्मोही मैं हूँ या वे? इन्होंने तो, मुझे 20 दिन से सूरत तक देखने को तरसा रखा था! फिर तत्क्षण ही मेरे मन में विचार कौंधा कि अगर इन्हें यूँ ही मुझे छेड़ना अच्छा लग रहा है तो यह अच्छी ही तो बात है। जब मुझे कुछ बोलते हुए नहीं सुना तो, सुशांत ने ही फिर कहा - 

रमणीक, मैं खाऊँ और आपको बस देखते रहना पड़े तो क्या, आपको अच्छा नहीं लगेगा? आपने अब तक भोजन तो कर ही लिया होगा, ना?   

मैंने अपनी वाणी को अधिकतम मृदुल रखते हुए कहा - 

सुशांत, आपको खिलाते हुए मुझे जितनी हार्दिक प्रसन्नता होती है, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आपको भोजन करता देखने से ही नहीं, अपितु कुछ भी करते देख लेने से मेरे संतप्त हृदय को शीतलता मिलती है। मैं चाहती हूँ कि अभी आप कॉल पर बने रहते हुए, बोलें कुछ नहीं सिर्फ भोजन का रसास्वादन करें।  

सुशांत ने कहा - रमणीक, आपकी ऐसी ही बातों से तो मुझे यह दूरी सहन नहीं होती है।

इस पर मैंने प्रेम से उन्हें झिड़कते हुए कहा - 

नहीं कोई बात की अनुमति अभी नहीं है आपको! आप अभी सिर्फ अच्छे से चबा चबा कर भोजन ग्रहण कीजिए ताकि भोज्य से आपको पर्याप्त पौष्टिकता मिलना सुनिश्चित हो। आपको अभी अपनी अत्यंत कठिन ड्यूटी निभाने के लिए भरपूर बलवान रहने की आवश्यकता है। 

यह सुनकर सुशांत ने मुझे देखते हुए अपने दोनों कान पकड़े थे। फिर होंठों पर ऊँगली रखके, ‘अब न बोलूँगा’ वाली मुख मुद्रा बनाने के बाद भोजन आरंभ कर दिया था। अब उन्हें देखते हुए मेरे मन में उन्हें साथ लेकर कई विचार चलने लगे थे। मैं मन ही मन तय कर रही थी कि यूँ तो मेरा मन कितना कुछ, सुशांत से कह देना चाहता था मगर आज मैं सिर्फ उनके मन की ही सुनूँगी। उनको वह सब कह लेने दूँगी, जिसे वे इस 20 दिन के अंतराल के बाद मुझे कहना चाहते हैं। उन्हें, अपनी कह लेने का सुख प्रदान करते हुए मैं उनके सुख में ही अपनी हर्ष अनुभूतियों का सुख लेने के निर्णय पर पहुँच गई थी। तत्पश्चात मुझे विवाह बाद के पाँच दिनों के उनके साथ का स्मरण आ गया था। 

सुशांत अपने साथ, अपनी बातों और अपने प्यार से उन दिनों में जिस तरह से मेरे पोर पोर को सुख पहुँचाने के उपाय करते थे, उन बातों के, असीम मधुर स्मरण से मैं रोमाँचित हो रही थी। अपने आप में ही लजा रही थी। मैं देख रही थी कि कौर चबाते हुए सुशांत मुझे देखते जा रहे थे।  

भोजन समाप्त करने के बाद सुशांत ने मुझसे कहा - निकी, तुम्हारे सुंदर सलोने मुखड़े के बदलते रंगों को अभी मैं देख रहा था। तुम्हें पता है मुझे तुम्हारे मुखड़े पर आया कौन सा रंग सबसे अच्छा लगता है?

इनसे यह सुनकर मुझे लग गया था कि मेरे मनोनुभूतियों को इन्होंने भाँप लिया है। यह समझते हुए मैं लजा गई थी। मैंने पलकें झुका लीं थीं। मैं कुछ नहीं कह पाई थी। हमारे बीच कुछ पलों का मौन व्याप्त हो गया था। मैं यह भी अनुभव कर रही थी कि थी उनकी दृष्टि मेरे पूरे तन मन का अवलोकन कर रही है। इससे मेरी लाज और गहरा गई थी। 

मैं इनकी पत्नी होते हुए भी, अपनी नारी सुलभ लज्जा से अपने शरीर को इनकी शरारती दृष्टि से छुपा लेना चाहती थी। मैं अपने आप में सिमट जाने का प्रयास कर रही थी। तभी मुझे इनका स्वर अपने कानों में मिश्री घोलता सा सुनाई पड़ा। ये बोल रहे थे - 

निकी, हाँ बिलकुल यही वाला, आपके मुखड़े का गुलाबी रंग, मुझे बहुत अच्छा लगता है। पता है कोई भी कृत्रिम रंग, इस गुलाबी आभा जितना सुन्दर नहीं बन पाया है। यह जो श्रृंगार नारी पर प्रकृति रच देती है, कोई कृत्रिम श्रृंगार इसके पासंग भी नहीं होता है।   

मुझे लगा अब तो यह अति हो गई है। ना चाहते हुए मेरी वाणी में शिकायत आ ही गई, मैंने कहा - 

जी सुनिए, यह बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। एक तो आपने, मुझे अभी अपने से दूर कर छोड़ा है उस पर मुझमें, आपसे एकाकार होने की ललक जगा दे रहे हो।

सुशांत ने तब कहा - 

चलो, मेरी प्यार की बातें तुम्हें आकुलित करती है तो इसे छोड़ अब मैं अपने मन की राष्ट्र प्रेम की भावना बयान करता हूँ। 

शायद वे कहने के लिए शब्द तय करते हुए चुप हुए थे। तब मेरे मन में उनको लेकर शिकायत बढ़ गई थी। कैसे भोले भाले हैं मेरे सुशांत! झूठमूठ की आपत्ति को भी नहीं समझ पा रहे हैं। अब मैं अपने को ही कोसने लगी, ये इतनी प्यारी प्यारी बातें कर रहे थे। मुझे ऐसा कहने के लिए उन्हें बढ़ावा देने वाली बात कहनी चाहिए थी ताकि वे आगे भी और कुछ कहते। मैंने अपने सुख में भावविभोर होने के अवसर को स्वयं खो दिया था। 

मैंने स्क्रीन पर देखा तो सुशांत जो अब तक एक निराले प्रेमी दिखाई दे रहे थे। अब उनके मुख पर एक दृढ़ प्रतिज्ञ वीर पुरुष सुलभ भाव उभर आए थे। अब उन्होंने कहना आरंभ किया था - 

पता है रमणीक, मैं कैसे एक अच्छा पति हो पाता हूँ? वास्तव में राष्ट्र के लिए मेरा प्रेम बिलकुल वैसा होता है, जैसा एक भारतीय पत्नी का, अपने पति को लेकर होता है। यथा जैसे एक पत्नी, करवा चौथ, शुक्रवार, छठ पूजा के तरह और भी ऐसे, कई व्रत अपने पति के दीर्घ और सुखमय जीवन के लिए करती है वैसे ही मैं अपने भारत के दीर्घ कालिक प्रभुत्व और सुखद भविष्य की कामना किया करता हूँ। अभी देखो भारत पर संकट की घड़ियों में मैं, बीस दिन तक पापा, मम्मी और तुम्हें अपने मन से दूर रख सिर्फ इसकी सेवा में लगा रहा हूँ। इन दिनों में न मुझे भोजन की सुध होती, ना ही निद्रा या विश्राम की कामना होती थी। यह बीस दिन, मेरे बिलकुल एक पत्नी के अपने पति के व्रत जैसे होते थे। मैं दिन रात ‘कॉम्बेट एयर पैट्रोलिंग’ में फाइटर जेट्स राफेल उड़ाता रहा था। आज जब शत्रु ने अपने कदम पीछे खींचे हैं, तब जाकर मैं अपने जीवन के लिए सोचना शुरू कर पाया हूँ। इसे तुम ऐसे समझ सकती हो कि आज जाकर मैंने अपने व्रत का उद्यापन, मोबाइल पर आपकी शक्ल देखते हुए किया है। 

मैं उसे शब्दों में वर्णित नहीं कर सकती, सुशांत के शब्द सुनते हुए, मेरे तन मन का पोर पोर जैसे पुलकित हो रहा था। मैं उनके शब्दों के आनंद में खोई हुई थी तब अपने कर्णों में मुझे उनकी वाणी पुनः सुनाई पड़ी थी। वे अब कह रहे थे -

ऐसे भारत की, पत्नी सी मेरी भावना होने पर मैं समझ पाता हूँ कि अपने पति से एक पत्नी की अपेक्षा क्या होती है। इसलिए अगर आप मुझे, अपना अच्छा पति अनुभव करती हो तो इसके मूल में भारत के लिए मेरी यह वर्णित की गई भावना है। 

अब मैंने कहा - 

सुशांत, आप मेरे अच्छे पति ही नहीं हैं अच्छे बेटे एवं देशवासियों के अच्छे भाई भी हैं। जब बात बेटे या भाई होने की आती है तब आप अपने भारत देश को माता-पिता एवं भाई जैसा अनुभव कर लेते हैं। फिर एक बेटे एवं भाई से अपेक्षित भाव से, आप अपने कर्म एवं आचारण करने लगते हैं। 

तब सुशांत ने कहा - 

निकी, तुम मुझे, स्वयं मुझसे भी अधिक अच्छे से समझती हो। तुमने मुझे अनुभव करा दिया है कि मुझे पापा, मम्मी से भी बात करनी चाहिए। अभी रात अधिक हो गई है कल सुबह मैं, उनसे बात करता हूँ। अब तुम भी सो जाओ। 

कॉल पूरा किया जाने वाला है जानकर, अब पहले फ्लाइंग किस मैंने किया था, इसके आदान प्रदान के बाद, शुभ रात्रि कहते हुए हमने कॉल डिसकनेक्ट किया था। 

बिस्तर पर लेट कर मैं सोच रही थी, विश्व में वैसे तो आठ अरब से अधिक लोग जी रहे हैं मगर पिछले 45 - 50 मिनट को मैंने, जिस असीम प्रसन्नता से जिया है वैसे अन्य किसी ने शायद नहीं जिया होगा। 

इस विचार और सुशांत की बातों से मिली सुख अनुभूतियों में मेरे मग्न रहते हुए ही, सुखद निद्रा ने मुझे अपनी गोद में ले लिया था …             

 --राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

23-08-2021


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