Monday, May 30, 2016

भारतीय रिश्तों एवं संस्कृति के हम दुश्मन

भारतीय रिश्तों एवं संस्कृति के हम दुश्मन ..
पुरुष को - श्वसुर  , पिता ,पति , बेटे और भाई आदि के रूप में  बेटी ,बहू ,पत्नी ,बहन और माँ आदि के लिए स्वयं कम खा कर ,भोजन में से उनके लिए बचाते हुए देखा है। यही और इससे बड़े त्याग - माँ , सासु माँ ,पत्नी , बहन , बेटी और पत्नी के रूप में नारी ने भी प्राचीन समय से पुरुष के लिए किये हैं।
फिर क्यों आज इन भारतीय रिश्तों एवं संस्कृति के हम दुश्मन बन रहे हैं?
बाजार और दानवी प्रवृत्ति ने यह भ्रम जाल फैलाया हुआ है कि घर-परिवार ,नारी-पुरुष के परस्पर सुख और उन्नति को बाधित करता है। इस जाल में फँस हममें से अनेक अनायास इनके एजेंट बन गए हैं। और ये गरिमा सम्मान और प्यार के रिश्ते नित हमारे जोक्स , मजाक और रोष के शिकार हो रहे हैं। जबकि पुरुष और नारी के सच्चे सम्मान इन रिश्तों में ही सुरक्षित होते हैं।
घर-परिवार में यदि खराबी आ गईं हैं , तो उन्हें गिरा या सुधार कर पुनः वह घर-परिवार एक बेहतर बुनियाद पर निर्मित करने की जरूरत है , ना कि इन्हें गिरा , इनसे बाहर निकल - पुरुष के लिए अलग और नारी के लिए अलग दुनिया रचाने की। जिसमें पुरुष और नारी एक दूसरे के बैरी होकर आमने-सामने होते हों।
हम यदि प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में परिवर्तित करने के मनुष्य सामर्थ्य का प्रयोग करें तो , इन्हीं रिश्तों में नारी-पुरुष मधुर साथ सहित सभी का जीवन सुखद बनाने के उपाय कर सकते हैं।
अधीर हो समस्या को विकराल रूप देने की नहीं -आज आवश्यकता समस्या का सही समाधान निकालने की है।
--राजेश जैन
31-05-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman

 

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