निस्वार्थ प्रेम की परंपरा भारतीय संस्कृति के नाम ..
हमारी ईश्वर तक पर श्रृध्दा एवं अनुराग स्वार्थ प्रेरित होता है , हम अपनी भलाई की चाह साथ मंदिर जाते या धार्मिक कार्य करते हैं । दुनिया के हर तरह के संबंध हमारी कुछ न कुछ अपेक्षाओं के साथ होते हैं , अर्थात कुछ न कुछ स्वार्थ प्रेरित होते हैं। ऐसे में भारतीय माँ-पिता का बेटी से और भाई का बहन से ही ऐसा अनूठा अनुराग या प्रेम होता है , जिसमें बेटी या बहन से बहुत कुछ करने के बदले में भी ,सिवाय उसके सुखी जीवन के उससे कुछ अपेक्षित नहीं रहता है। परिस्थितियों के साथ कुछ परिवर्तन हुए हैं , अन्य गरिमामयी परंपराओं की तरह यह परंपरा भी प्रभावित हुई है। उतना आदर्श तो अब नहीं निभ पाता है कि बेटी की ससुराल में माँ-पिता या भाई ,जल के अतिरिक्त कुछ न ग्रहण करें किंतु आज भी बेटी से कुछ ले लेना , आत्मा पर भार सा लगता है।
हमारी कामना है "निस्वार्थ प्रेम की यह मिसाल अनंत तक कायम रहे " , हमारी बहन-बेटियाँ अपने जीवन में हर सुख पाने में सफल रहें।
--राजेश जैन
07-05-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman
हमारी ईश्वर तक पर श्रृध्दा एवं अनुराग स्वार्थ प्रेरित होता है , हम अपनी भलाई की चाह साथ मंदिर जाते या धार्मिक कार्य करते हैं । दुनिया के हर तरह के संबंध हमारी कुछ न कुछ अपेक्षाओं के साथ होते हैं , अर्थात कुछ न कुछ स्वार्थ प्रेरित होते हैं। ऐसे में भारतीय माँ-पिता का बेटी से और भाई का बहन से ही ऐसा अनूठा अनुराग या प्रेम होता है , जिसमें बेटी या बहन से बहुत कुछ करने के बदले में भी ,सिवाय उसके सुखी जीवन के उससे कुछ अपेक्षित नहीं रहता है। परिस्थितियों के साथ कुछ परिवर्तन हुए हैं , अन्य गरिमामयी परंपराओं की तरह यह परंपरा भी प्रभावित हुई है। उतना आदर्श तो अब नहीं निभ पाता है कि बेटी की ससुराल में माँ-पिता या भाई ,जल के अतिरिक्त कुछ न ग्रहण करें किंतु आज भी बेटी से कुछ ले लेना , आत्मा पर भार सा लगता है।
हमारी कामना है "निस्वार्थ प्रेम की यह मिसाल अनंत तक कायम रहे " , हमारी बहन-बेटियाँ अपने जीवन में हर सुख पाने में सफल रहें।
--राजेश जैन
07-05-2016
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