अच्छे मम्मी-पापा ..
सुखद 'मानव जीवन' के लिए अच्छा अपना घर-परिवार ही नहीं बाहर अच्छे पास-पड़ोस और अच्छे समाज-व्यवस्था की आवश्यकता होती है। परिवार अच्छा रखने के लिए सदस्यों से ज्यादा , बड़ों का दायित्व होता है कि वह अनुकूल पारिवारिक वातावरण बनाये। जब बात पास-पड़ोस या समाज-व्यवस्था पर आती है तो सयुंक्त रूप से यह जिम्मेदारी उसमें रहने वाले हर परिवार के बड़े सदस्यों की होती है कि वे बच्चों और नारी को सुरक्षित जीवनयापन का वातावरण निर्मित करने की भूमिका निभायें।
जब तक, इस लेखक को जीवन का यह सच स्पष्ट हुआ , लेखक दो बच्चों का पापा बन चुका था। उसे अपने सीमित सामर्थ्य का अनुभव भी तभी हुआ कि वह परिवार और समाज में पिता होने के इस अहं दायित्व का निर्वाह अपेक्षित कुशलता से नहीं कर सकता। सच मानिये अगर इसे वह पहले समझ जाता तो बच्चों का पिता होना पसंद नहीं करता। वह ,इस हेतु उतने नये जन्मों की प्रतीक्षा कर लेता जितने जीवन के बाद उसका यह सामर्थ्य विकसित हो जाता।
इतनी लंबी बेकार की बातें पढ़ने वाले इस लेख के आठ पाठकों से लेखक स्पष्ट करना चाहेगा कि उसका यह अभिप्राय कदापि नहीं की वे अपने बच्चे पैदा न करें। वे अवश्य माँ-पापा बनें ,किंतु यह जागरूकता रखें कि अपना घर-परिवार तो अच्छा रखने का कार्य हर कोई करता है ,वे भी करते होंगे लेकिन बाहर समाज को इस तरह विकसित करने में अपनी भूमिका समझें और निभायें।
वास्तव में घर में बंद होकर ही ना नारी रह सकती ना ही छोटे बेटे-बेटियाँ रह सकते , उन्हें विश्राम और पारिवारिक साथ के लिए घर में रहना और शिक्षा ,कार्य और भ्रमण-विचरण और मेल-मिलाप के लिए बाहर जाना होता है। यह हम सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य के लिए बाहर गया घर का सदस्य जब तक वापिस लौट घर नहीं आता , हमारे देश में हमारे अंतर्मन में उसके सकुशल होने की चिंता बनी रहती है।
निर्जन या रात्रि के सूने में हमें यह भय लगा होता है कि हमारे साथ लूटपाट और उसमें हिंसा न कर दे। हम यदि नारी हैं तो असामाजिक तत्व के लिए सॉफ्ट टारगेट होते हैं , जिनसे कम प्रतिरोध में लूटपाट तो की ही जा सकती है इसके अतिरिक्त शारीरिक शोषण भी किया जा सकता है। यह सभी मानेंगे की दुनिया में निर्जन मनोरम स्थल अनेकों हैं , जिनका आनंद हम निर्भय होकर नहीं उठा सकते।
यह लेख करना भी यहाँ उचित होगा कि उस देश और समाज में कमजोर व्यवस्थायें भी कारगर होती हैं जहाँ के नागरिक देश-समाज के प्रति कर्तव्य बोध रखते हुए कर्म और आचरण करते हैं। हम भारतीय सभी अपने देश और समाज में व्याप्त बुराई से रुष्ट हैं। अगर हम कानून व्यवस्था के सहयोगी तथा देश के अच्छे नागरिक बनेंगे तो हमारे देश में कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार नेता-मंत्री और लोक सेवक भी हम अच्छे नागरिकों में से होगा। वह सेवा देने के अपने कर्तव्य को भ्रष्टाचार बिना निभायेगा। लेने और देने वाले अच्छे होंगे तो सहज ही शिकायतें और बुराई कम होंगी।
जब हम उपर्युक्त अनुसार आचार-विचार और कर्म कर सकेंगे तभी बेटे-बेटियों के सही मायनों में हितैषी माँ-पापा होंगे। और मनुष्य जीवन के उत्कृष्ट आनंद लिए जा सकने की दुनिया और वातावरण बना सकेंगे
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