Friday, May 20, 2016

क्या है , एक मनुष्य जीवन ?

क्या है , एक मनुष्य जीवन ?
संसार में मनुष्य जन्म , एक छोटे से शिशु रूप में होता है। उसकी आरंभिक पहचान , एक परिवार के बच्चे , एक देश के एक नागरिक ,एक मातृभाषा और एक धर्म के उपनाम के साथ होती है ,वह नारी या पुरुष लिंगीय होता है।
उसे मिले परिवेश और शिक्षा से उसकी जीवन शैली , समझ और उसका कर्म क्षेत्र तय होता है। 80-100 वर्ष के एक सामान्य जीवन में उसका भौतिक स्वरूप बना रहता है। उसको जानने और समझने वालों का एक दायरा होता है , कुछ मित्र और कुछ उसके बैरी होते हैं , और अनेकों उससे अपरिचित और उसके सुख दुःख से उदासीन होते हैं।
फिर एक दिन उसकी मौत हो जाती है , उसकी स्थूल काया संसार से विलुप्त हो जाती है। उसका निराकार अस्तित्व  कुछ अपनों और कुछ अपने दुश्मनों के हृदय में रहा आता है। उन हृदयों में उसकी स्मृति ,अच्छाई एवं बुराई और चर्चा शेष रहती है. फिर जिन्होंने उसको देखा ,समझा और जाना होता है ,वे भी अपने हृदयाधीन स्मृति सहित काल के गाल में समा जाते हैं।  इस तरह एक सामान्य मनुष्य का आकार और निराकार अस्तित्व लगभग 150 वर्ष में पूर्णतया समाप्त हो जाता है।
उसने अपने जीवन में क्या अच्छाई और क्या बुराई कीं वह उस तरह मिट जाती है , जैसे किसी समय किसी भवन की ईंट भवन टूटने के बाद पृथक होकर चूर चूर हो जाती है और जल धार और चलने वाली निरंतर बयार के थपेड़ों में धरती की माटी में इस तरह एकाकार हो जाती है ,जैसे कि उसकी कभी कोई अलग पहचान रही ही नहीं थी।
ध्यान दीजिये ,हम अपने चार पीढ़ी पहले के पूर्वजों के बारे में कोई जानकारी नहीं रखते। उनके जीवन उपलब्धियाँ क्या थी ,उसे जानने की हमारी न तो कोई रूचि रहती है और ना ही इसके लिए हमारे पास समय होता है।
हम नारी या पुरुष थे ,धनवान या निर्धन थे , सुंदर या कुरूप थे , हिंदू जैन ,बुध्द ,सिक्ख ,ईसाई या मुसलमान थे , हिंदी या अन्य भाषी थे , हमारे सारी पहचान महत्वहीन हो जाती है। परोक्ष-अपरोक्ष महत्व सिर्फ इस बात का ही रह जाता है कि मानव सभ्यता के विकास के क्रम में हमने क्या और कितना योगदान किया था?
उदाहरण एक दिव्य आत्मा , ऐपीजे अब्दुलकलाम साहब का लें। 84 वर्ष के जीवन में उन्होंने ऐसे कर्म और आचरण किये की मरने के बाद उनकी स्मृति अनेकों (करोड़ों) के हृदय में विध्यमान है। अगले सैकड़ों वर्ष उनके योगदान की चर्चा इतिहास पृष्ठों पर रहने वाली है। उनके योगदान देश से भी ऊपर , मानवता के लिए हैं , उनके कर्म न नारी हैं , न पुरुष हैं , न हिंदू , न मुसलमान हैं , न हिंदी न उर्दू हैं , और ना ही धनवान , न गरीब हैं। उनके कर्म सिर्फ और सिर्फ मानवता हितकारी हैं।
यह एक मनुष्य के जीवन का सम्पूर्ण अस्तित्व है , यही उसकी अनंत क्षमता होना भी उल्लेख करता है , चाहे कोई अपने जीवनकाल में उस अनुरूप जी सके अथवा नहीं।
--राजेश जैन
21-05-2016 
https://www.facebook.com/events/1790783784484813
 

No comments:

Post a Comment