Wednesday, April 6, 2016

मेरी ज़िंदगी ...

मेरी ज़िंदगी
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मै तुमसे जब शिकायत करता हूँ ,ज़िंदगी
तुम रुष्ट तो नहीं होती हो न मेरी ज़िंदगी
रुष्ट हुई इनसे ,मिटेगा अस्तित्व मेरा ही
मुझे तो बनना होता है अरबों की ज़िंदगी
तुम्हें इतना अनुभव है ,बनने का ज़िंदगी
कुछ बताओगी मुझे कैसे जिऊँ मै ज़िंदगी
न पड़ो तुलना में ,न रोओ हासिल नहीं में
मिले लुफ्त उठाओ ,जिओ अपनी ज़िंदगी
लाये न, छोड़ोगे सब पूरी होने पर ज़िंदगी
मिला वह बाँटते चलो यही अंदाजे ज़िंदगी
स्नेह-विश्वास चाहते यही तुम सबसे करो
छोटी ही है हर पल जीकर गुजारो ज़िंदगी
सुना सम्मोहित सोचने लगा मै ज़िंदगी
शिकवे मुक्त समय की अतिरक्त ज़िंदगी
ख़ुश रह कर बढ़ेगी कार्य क्षमता जो मेरी
उपलब्धियाँ निश्चित धन्यवाद हे ज़िंदगी
-- राजेश जैन
07-04-2015

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