Tuesday, April 12, 2016

पुरुष 8 घंटे + नारी 4 घंटे = औसत 6 घंटे वर्किंग आवर्स

पुरुष 8 घंटे + नारी 4 घंटे = औसत 6 घंटे वर्किंग आवर्स
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बच्चे ,माँ के सबसे ज्यादा क्लोज होते हैं , घर परिवार की धुरी हमारे समाज में नारी होती है। समाज में व्याप्त नारी समस्याओं के कटु अनुभव  हमें सीख देते हैं कि नारी की आत्मनिर्भरता और उसका उच्च शिक्षित होना आवश्यक है। इससे नारी सम्मान में वृध्दि ,और उनमें आत्मविश्वास लाया जा सकता है । जिस देश के बच्चे अच्छे बनेंगे , वहाँ का समाज सुखमय होगा। बच्चों के सँस्कार और उसके स्वास्थ्य की मजबूत बुनियाद , माँ (नारी) ही रख सकती है। आत्मनिर्भर , उच्च शिक्षित , आत्मविश्वासी नारी निसंदेह बच्चों के अच्छे लालन-पालन में और' पत्नी एवं बहू' के रूप में परिवार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकती है , बशर्ते वह वर्किंग होते हुए भी  ओवर बर्डेनड न हो। घर परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने पर गृह कलह की संभावना कम होती हैं , जिससे परिवार टूटने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोकथाम लग सकती है। अतः इस पेज पर पूर्व में उठाये गए आव्हान को एक बार पुनः दोहराया जा रहा है
"नारी को 4 घंटे कार्य के लिए पुरुष के फुल टाइम जितनी सैलरी दी जानी चाहिए "
स्पेन ने परिवार न टूटने देने के उपाय में , वर्किंग आवर्स घटाये हैं , देखिये शीर्षक 'स्पेन ने काम के दो घंटे घटाए ,ताकि घर न टूटे'
ऐसी पहल भारतीय पृष्ठभूमि में  "पुरुष 8 घंटे + नारी 4 घंटे = औसत 6 घंटे वर्किंग आवर्स " ज्यादा उचित होगी । 
यह देश सोचे , इस देश की सरकार विचार करें , और समाज सुधारक इस पर मंथन करें , यह अपेक्षा हम करते हैं
--राजेश जैन
 13-04-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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