Thursday, April 21, 2016

आश्रिता ..

 
समाज में नारी हितों की ज़िम्मेवारी हमने ले रखी थी ,वह घरों में हमारी आश्रिता हो घुँघटों-नकाबों में , अनपढ़ और बहुत सी सामाजिक और धार्मिक वर्जनाओं में जीवन यापन कर रही थी। इन सब में भी वह सुखी रह पाती अगर उन पर गृह-हिंसा , दैहिक शोषण और अपमानित जीवन को हम विवश नहीं करते। यदि किसी ज़िम्मेवारी के निर्वहन में कोई असफल होता है तो बेहतर यही होता है वह ज़िम्मेवारी छोड़े।
नारी अपने जीवन के लिए निर्णय स्वयं लेने को उत्सुक है तो लेने दें हम ,इसमें सहयोगी हों हम। नारी जब सुखी -सम्मानित जीवन जी सकेगी तभी , हम सभी भी ज्यादा सुखी हो सकेंगे।
--राजेश जैन 22-04-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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