कैसा है, भारतीय समाज में नारी जीवन ..
एक नारी के समक्ष पूरी दुनिया पराई होती है। बहुत निकट के रिश्ते के पुरुष - पिता ,भाई , पति और पुत्र उसे सुशीला देखना चाहते हैं। वहीं शेष पुरुषों की दृष्टि और हरकतें उसे सुशीला न रहने देने को बढ़ावा देती हैं। परेशानी 12-13 वर्ष से 50 वर्ष की उसकी अवस्था तक ज्यादा होती है , जब तक उसका रूप लावण्य बना रहता है। माँसलता समाप्त होते ही , आसपास मँडराने वाले स्वार्थी पुरुष की रूचि उसमें समाप्त हो जाती है। नारी के सामने विडंबना यह होती है कि पिता ,भाई , पति ,पुत्र रुपी यही पुरुष जो उसे तो सुशीला रहने का हिमायती होता है वही अन्य नारी के शील बिगाड़ने को तत्पर रहता है। पुरुष के इस दोहरे चरित्र के बीच सच्चे सम्मान एवं प्रेम की तलाश में नारी के प्रयत्न , अनेक बार असफल हो जाते हैं। वह अपने से लगने वाले लोगों के छल की शिकार होती है। पिता ,भाई , पति ,पुत्र का दोहरा चरित्र भी घर-परिवार में उस पर अत्याचार का कारण होता है। पश्चिमी प्रभाव में बदल रही नारी , इस जीवन से मुक्त होने को उत्सुक तो है , किंतु पश्चिमी प्रवृत्ती से भारतीय पुरुष भी ज्यादा चालाकियों से उसे अब ज्यादा शोषित कर रहा है।
नारी को किशोरी अवस्था से ही यह समझने की आवश्यकता है कि 'सब जो कर रहे हैं , उसमें उसकी भलाई नहीं है ' सबकी नकल करने की जगह ,उसे स्वयं अपने विवेक से अपनी भारतीय राह तय करना चाहिए । पुरुष को उसकी सीमा में ही रोकना ,और उसका ऐसा साथ लेना चाहिए ,जो नारी और समाज दोनों के लिए भलाई करने वाला हो।
--राजेश जैन
29-04-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman
एक नारी के समक्ष पूरी दुनिया पराई होती है। बहुत निकट के रिश्ते के पुरुष - पिता ,भाई , पति और पुत्र उसे सुशीला देखना चाहते हैं। वहीं शेष पुरुषों की दृष्टि और हरकतें उसे सुशीला न रहने देने को बढ़ावा देती हैं। परेशानी 12-13 वर्ष से 50 वर्ष की उसकी अवस्था तक ज्यादा होती है , जब तक उसका रूप लावण्य बना रहता है। माँसलता समाप्त होते ही , आसपास मँडराने वाले स्वार्थी पुरुष की रूचि उसमें समाप्त हो जाती है। नारी के सामने विडंबना यह होती है कि पिता ,भाई , पति ,पुत्र रुपी यही पुरुष जो उसे तो सुशीला रहने का हिमायती होता है वही अन्य नारी के शील बिगाड़ने को तत्पर रहता है। पुरुष के इस दोहरे चरित्र के बीच सच्चे सम्मान एवं प्रेम की तलाश में नारी के प्रयत्न , अनेक बार असफल हो जाते हैं। वह अपने से लगने वाले लोगों के छल की शिकार होती है। पिता ,भाई , पति ,पुत्र का दोहरा चरित्र भी घर-परिवार में उस पर अत्याचार का कारण होता है। पश्चिमी प्रभाव में बदल रही नारी , इस जीवन से मुक्त होने को उत्सुक तो है , किंतु पश्चिमी प्रवृत्ती से भारतीय पुरुष भी ज्यादा चालाकियों से उसे अब ज्यादा शोषित कर रहा है।
नारी को किशोरी अवस्था से ही यह समझने की आवश्यकता है कि 'सब जो कर रहे हैं , उसमें उसकी भलाई नहीं है ' सबकी नकल करने की जगह ,उसे स्वयं अपने विवेक से अपनी भारतीय राह तय करना चाहिए । पुरुष को उसकी सीमा में ही रोकना ,और उसका ऐसा साथ लेना चाहिए ,जो नारी और समाज दोनों के लिए भलाई करने वाला हो।
--राजेश जैन
29-04-2016
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