Friday, February 21, 2020

ज़िंदगी! ...

ज़िंदगी! ... 

तू थी तो कुछ आशायें थी न रही तो आशा कहाँ रही और न रही तो निराशा कुछ होना नहीं तू थी तो कुछ खुशियों की दरकार थीतू रही तो ग़मगीन किसे होना रहातू थी तो कुछ मंजिलें तय कीं थींतू न रही तो मुसाफिर को पहुँचना कहाँ रहातू थी तो अरबों में एक हम भी थे तू नहीं तो अरबों को कुछ होना नहीं तू थी तो समय हमारा भी था तू नहीं फिर भी समय को चलना ही था तू थी तो अच्छाइयाँ हमें जीनी थींतू नहीं तो अच्छाई का बिगड़ना क्या था तू थी तो कुछ बोल मेरे होते थे तू नहीं तो भी बोल तो रहने ही थे तू थी तो ये झरने, पर्वत दिखते थे तू नहीं तो भी इन्हें होना ही थातू थी तो जीवन में बसंत देखते थे तू नहीं फिर भी बसंत लौट लौट आने थे तू थी तो किन्हीं आँखों के अश्रु पोंछ देते थे नहीं तू तो खुद रोने वाले ने पोंछ लेने थे तू थी तो मेरी कल्पना की उड़ानें थींनहीं तू तो क्या! कल्पना साकार कहाँ होनी थीं तू थी तो हमारे लिए पहेली थी नहीं तू तो हल ढूँढने की उत्सुकता नहीं तू थी तो हमारी एक आकृति थी तू नहीं तो निराकार सही मगर अब भी तो हम हैं

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
22.02.2020

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