Wednesday, February 26, 2020

सोशल ईक्वलिब्रीअम ..

किसे हम सभ्यता की परिभाषा कहें ? .. 

मैंने मिलावट सामग्री विक्रय करके ज्यादा मुनाफा कमाया।
फिर मेरी बाइक ख़राब हुई, सुधारने वाले जितनी खराबी नहीं थी, उससे ज्यादा खराबी बताई और ज्यादा मुनाफा कमाया।
बाइक वाले का टीवी ख़राब हुआ, सुधारने के लिए जितने पार्ट्स ख़राब नहीं थे, उससे ज्यादा कीमत बता कर बाइक वाले से ज्यादा मुनाफा कमाया।
टीवी वाले का बेटा कम मार्क्स लाया था, कॉलेज में एडमिशन देने के लिए, प्राइवेट कॉलेज ने ज्यादा महँगी फीस वसूल कर ज्यादा मुनाफा कमाया।
फिर कॉलेज ओनर की पत्नी बीमार हुई, वह हॉस्पिटल में भर्ती की गई, वहाँ डॉक्टर्स ने अकारण महँगी दवायें और परीक्षण करवा कर ज्यादा मुनाफा कमाया।
डॉक्टर्स फल/अनाज/दूध और अन्य खाद्य लेने मार्केट गये, उन्होंने मुझ जैसे विक्रेता से मिलावटी सामग्री खरीदी और मुहमें झे ज्यादा मुनाफा दिया।
अर्थात हमने अपने अपने लिए खींचातानी करते हुए एक संतुलन बनाया जिससे समाज जिसमें छल व्याप्त हुआ।
एक अन्य परिदृश्य -
मैंने शुध्द खाद्य समाग्री विक्रय की, क्रयकर्ता ने मेरी तय कीमत से, पचास रूपये ज्यादा देते हुए कहा रखिये, आपके बाल-बच्चे परिवार है।
मेरी बाइक ख़राब हुई, सुधारने वाले ने मेहनत से सुधारी, दाम बताये, मैंने पचास रूपये ज्यादा देते हुए कहा रखिये, आपके बाल-बच्चे परिवार है।
बाइक वाले का टीवी ख़राब हुआ, रिपेयर्स के सही दाम लगाये, बाइक वाले ने पचास रूपये ज्यादा देते हुए कहा रखिये, आपके बाल-बच्चे परिवार है।
टीवी वाले का बेटा कम मार्क्स लाया था, प्राइवेट कॉलेज ने यथोचित फीस लेकर एडमिशन दिया, कहा ऐसे बच्चों की उचित शिक्षा हमारा दायित्व है।
कॉलेज ओनर की पत्नी बीमार हुई, उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाया, अच्छा और उचित कीमत पर उपचार और दवायें दीं गईं, उसने हॉस्पिटल को दान देना चाहा, उसे अस्वीकार करते हुए कहा गया, हमें, ईश्वर ने सभी का 'स्वास्थ्य रक्षक दूत' नियुक्त किया है
डॉक्टर्स हमारे पास फल/अनाज/दूध और अन्य खाद्य सामग्री खरीदने आये, हमने पौष्टिक और गुणवत्ता वाली ताज़ी सामग्री उन्हें विक्रित की, डॉक्टर्स खुश हो, अतिरक्त कीमत देने की पेशकश करते, हम कहते आपके बाल बच्चों को वही पौष्टिकता चाहिए जो हमारे बच्चों को चाहिए।
हमारे परस्पर देने की भावना से एक संतुलन हमने बनाया जिसमें समाज जिसमें सौहार्द्र व्याप्त हुआ।
हम बतायें, कौनसा विकल्प हमें उचित लगता है - 'सोशल ईक्वलिब्रीअम' दोनों ही तरह से बनता है। 


-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
22.02.2020





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