Wednesday, September 11, 2019

अपेक्षा ही क्या करें किसी से
सामर्थ्य कहाँ हम (मानव) बेचारों की
जब तलाशे कोई हममें हमदर्द अपना
हमसे न बन सके मदद बेचारों की

था भ्रम कि हैं कुछ अपने तो
जी लेने में मन लगा
हमदर्द नहीं मिला कोई तो
मर जाने का भय हटा

किरदार बड़ा निभा लें हम
हैसियत छोटी कुबूल कर लें हम
ना रहेगा गिला ज़िंदगी से यूँ फिर
कि थोड़ा जी कर चल पड़े हम

सूरज की रोशनी बिन कोई प्राणी स्वस्थ नहीं जी सकता
कुंठित रहे नारी जिसमें वह समाज स्वस्थ नहीं हो सकता




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