बाहुबली ..
बहुत सुनने /पढ़ने के बाद 2 दिनों में बाहुबली 1 और बाहुबली 2 बारी बारी से मैंने देखी। मूवीज देखने में लगे 6 घंटे अखरे नहीं। कल्पनायें , उसका पिक्चराइजेशन , अभिनय , भव्य सेट्स और कहानी में लय सभी खूबसूरत रही। आलेख इस तारीफ़ के ख्याल से नहीं लिख रहा हूँ बल्कि सब कुछ देखने के बाद जो प्रश्न दिमाग में आये उसकी चर्चा के लिए लिख रहा हूँ.
दोनों ही पार्ट (मूवीज) को देखते हुए दर्शक के मन को अमरेंद्र , महेंद्र की अविश्वसनीय शक्ति ,शूरवीरता , कटप्पा की आज्ञाकारिता , शिवगामी के त्याग , देवसेना की सुंदरता आदि अत्यंत प्रभावित करती है। साथ ही भल्लालदेव और उसके पिता के लिए घृणा उत्पन्न करती है। कल्पनातीत कहानी में राज परिवार के कुछ सदस्यों की महत्वकाँक्षा ,हवस , अहं और जिद के खातिर जनता और सैनिकों की जिस तरह और जितनी मात्रा में मारकाट दिखलाई गई है उतनी मारकाट को देखने पर भी हमारे मन में ,मारे गए के परिवार के प्रति दुःख की वेदनीय अनुभूति और उसका जरा भी विचार नहीं आता है. हम दर्शक उसे सहज देखते हैं ।
ऐसी मारकाट को देख -पढ़ एवं भुगतने पर भी दुःख - वेदना का उत्पन्न न होना ही दुनिया में व्याप्त अनवरत हिंसा का कारण है। हम अंधश्रृध्दा और अंधभक्ति में किसी से इतने प्रभावित होते हैं कि उसके किये हिंसात्मक कार्य की भी समालोचना नहीं करते हैं।
क्या, अमरेंद्र एवं महेंद्र बाहुबली का बचाव में हिंसा का अपनाया मार्ग ही एकमात्र विकल्प होता है ?? मेंरे विचार से नहीं। जितनी अविश्वसनीय शारीरिक शक्तियाँ बाहुबली में दिखाई गई और उसे हीरो स्थापित किया गया , उसके स्थान पर उसे मानसिक शक्तियों से सम्पन्न दिखला कर भी हीरो बताया जा सकता था। जो घृणा के कार्यों के आदी भल्लालदेव , बिज्जलदेव को अपनी तर्कशक्ति से प्रभावित कर सुधारने में सक्षम हो सकता था और अपने विश्वसनीय और प्रेम के व्यवहार और सहयोग से वह अपने शत्रुओं को मन जीत , उनमें मित्रता के भाव पैदा कर सकता था । किंतु , तब फिल्म में एक्शन के स्कोप नहीं होते और दर्शक मूवीज को वह जिज्ञासा ,ध्यान और धन नहीं देते । इसलिए मूवीज ऐसी बनती रहेंगी। हम ,हिंसक किंतु हमारे मन को प्रभावित करने वालों के समर्थक बनते रहेंगें।
बहुत सुनने /पढ़ने के बाद 2 दिनों में बाहुबली 1 और बाहुबली 2 बारी बारी से मैंने देखी। मूवीज देखने में लगे 6 घंटे अखरे नहीं। कल्पनायें , उसका पिक्चराइजेशन , अभिनय , भव्य सेट्स और कहानी में लय सभी खूबसूरत रही। आलेख इस तारीफ़ के ख्याल से नहीं लिख रहा हूँ बल्कि सब कुछ देखने के बाद जो प्रश्न दिमाग में आये उसकी चर्चा के लिए लिख रहा हूँ.
दोनों ही पार्ट (मूवीज) को देखते हुए दर्शक के मन को अमरेंद्र , महेंद्र की अविश्वसनीय शक्ति ,शूरवीरता , कटप्पा की आज्ञाकारिता , शिवगामी के त्याग , देवसेना की सुंदरता आदि अत्यंत प्रभावित करती है। साथ ही भल्लालदेव और उसके पिता के लिए घृणा उत्पन्न करती है। कल्पनातीत कहानी में राज परिवार के कुछ सदस्यों की महत्वकाँक्षा ,हवस , अहं और जिद के खातिर जनता और सैनिकों की जिस तरह और जितनी मात्रा में मारकाट दिखलाई गई है उतनी मारकाट को देखने पर भी हमारे मन में ,मारे गए के परिवार के प्रति दुःख की वेदनीय अनुभूति और उसका जरा भी विचार नहीं आता है. हम दर्शक उसे सहज देखते हैं ।
ऐसी मारकाट को देख -पढ़ एवं भुगतने पर भी दुःख - वेदना का उत्पन्न न होना ही दुनिया में व्याप्त अनवरत हिंसा का कारण है। हम अंधश्रृध्दा और अंधभक्ति में किसी से इतने प्रभावित होते हैं कि उसके किये हिंसात्मक कार्य की भी समालोचना नहीं करते हैं।
क्या, अमरेंद्र एवं महेंद्र बाहुबली का बचाव में हिंसा का अपनाया मार्ग ही एकमात्र विकल्प होता है ?? मेंरे विचार से नहीं। जितनी अविश्वसनीय शारीरिक शक्तियाँ बाहुबली में दिखाई गई और उसे हीरो स्थापित किया गया , उसके स्थान पर उसे मानसिक शक्तियों से सम्पन्न दिखला कर भी हीरो बताया जा सकता था। जो घृणा के कार्यों के आदी भल्लालदेव , बिज्जलदेव को अपनी तर्कशक्ति से प्रभावित कर सुधारने में सक्षम हो सकता था और अपने विश्वसनीय और प्रेम के व्यवहार और सहयोग से वह अपने शत्रुओं को मन जीत , उनमें मित्रता के भाव पैदा कर सकता था । किंतु , तब फिल्म में एक्शन के स्कोप नहीं होते और दर्शक मूवीज को वह जिज्ञासा ,ध्यान और धन नहीं देते । इसलिए मूवीज ऐसी बनती रहेंगी। हम ,हिंसक किंतु हमारे मन को प्रभावित करने वालों के समर्थक बनते रहेंगें।
ओसामा बिन लादेन (हिंसा और नफरत के कार्यों में लिप्त हैं ) तरह के लोगों से हमें नफरत और ओबामा तरह के लोग (जो हिंसा से हिंसा की रोकथाम के तरीके ढूँढते हैं ) को हम हीरो मानते रहेंगें। मानव प्रजाति को शीघ्र ही समझना होगा कि हिंसा और प्रति हिंसा के सिलसिले यदि यों ही चलते रहे तो नफरत दिलों से कभी ख़त्म नहीं होगी। साथ ही मनुष्य के मन की सुख शांति के जीवन की सहज चाह हमेशा अधूरी रहेगी। चिंता और तनाव कायम रहने से हम कभी भी जीवन और उसमें चरम आनंद को अनुभव नहीं कर सकेंगे उससे हमेशा वंचित ही रहेंगे. हमें हिंसा का समाधान प्रति हिंसा में नहीं - अपितु प्रेम और विश्वास के स्थापना में खोजना और करना होगा। हर हमारी प्रस्तुतियों और मूवीज में भी इसी प्रेरणा को स्थान देना होगा.
--राजेश जैन
26-05-2017
--राजेश जैन
26-05-2017
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